उत्तर प्रदेशबस्ती

10 साल से परशुरामपुर CHC में जमे भास्कर राज, ट्रांसफर नीति को ठेंगा!

जन एक्स्प्रेस/बस्ती : मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ट्रांसफर नीति को अफसरो ने मजाक बनाकर रख दिया है। जब नियम सिर्फ कागजों में रह जाए और जमीन पर रसुखधारी हावी हो जाए तो ऐसे ही उदाहरण सामने आते हैं। इसका जीता जागता उदाहरण परशुरामपुर सीएचसी अधीक्षक भास्कर यादव है। जो एक ही ब्लॉक में एक ही सीएचसी परशुरामपुर में लगातार 10 वर्षों से अंगद की तरह पैर जमाए हैं। यह उत्तर प्रदेश की ट्रांसफर नीति के सिस्टम के मुंह पर तमाचा है। परशुरामपुर सीएचसी अधीक्षक डॉक्टर भास्कर यादव के रसूख का अंदाजा इस बात से लगा सकते है कि लगभग 11 वर्षों से परशुरामपुर सीएचसी पर अंगद की तरह पांव जमाए है और स्वास्थ्य विभाग की ट्रांसफर नीति को खुलेआम चैलेंज कर रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग के किसी भी अधिकारी अथवा कर्मचारियों की हिम्मत नहीं है जो उनके पांव को तिल मात्र भी हिला सके। 11 सालों से परसरामपुर में स्वास्थ्य अधीक्षक के रूप में भास्कर यादव का राज है।

जब भी जिले में स्वास्थ्य विभाग की ट्रांसफर पोस्टिंग की लिस्ट जारी होती है तो उसमें परशुरामपुर के सीएचसी का नाम नहीं रहता। मतलब साफ है कि परशुरामपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से विभाग को हर महीने चढ़ौती चढ़ जाती है। जिसके चलते विभाग के लोग अथवा सीएमओ साहब परशुरामपुर के सीएचसी प्रभारी पर अपनी मेहरबानी कायम रखते हैं। यही नहीं बल्कि नाम न छापने की शर्त पर कुछ संविदा कर्मचारियों ने बताया कि प्रभारी चिकित्साधिकारी अपने से छोटे कर्मचारियों को बात ही बात में गाली तक भी दे देते हैं। लेकिन कर्मचारी बेचारा क्या करें उसे तो साहब के अंडर में ही नौकरी करनी है। बड़े अधिकारी छोटे कर्मचारियों की बात को मानेंगे नहीं इसलिए चुप रहकर नौकरी करना पड़ता है। क्योंकि बड़े अधिकारी तो परशुरामपुर सीएचसी के बड़े साहब पर मेहरबान हैं।‌‌

स्थानीय गठजोड़, अवैध हॉस्पिटल पैथालोजी व मेडिकल स्टोरो से होती है काली कमायी
लंबे समय से एक ही जगह पर तैनाती अक्सर स्थानीय माफिया प्राइवेट हॉस्पिटलों दवा कंपनियों और ठेकेदारों से संबंधों की रूपरेखा तैयार करती है। 10 वर्षों से जमे परशुरामपुर के प्रभारी चिकित्साधिकारी का अवैध मेडिकल स्टोर तथा अवैध हॉस्पिटल, पैथोलॉजी सेंटर पर मेहरबान है। लोग बताते है कि सीएचसी पर आने वाले मरीजों को नॉर्मल बीमारी में 1 हजार से 15 सौ रुपये तक की दवा बाहर से लिख देते हैं। साहब इतनी चालाकी से काम करते है कि इनकी चालाकी को कोई पकड नही सकता है। पकड़ में न आ सके कमी इसलिए साहब दवा का पर्चा नहीं लिखते बल्कि मरीज को बताते हैं कि मेडिकल स्टोर पर जाकर अपना नाम बता दीजिए उसके बाद मेडिकल स्टोर वाला डॉ साहब को फोन करके साहब से दवा का नाम पूछता और साहब इमला बोल मेडिकल स्टोर वाले को बता देते है। इससे बाहर की दवा लिखने का पर्चा भी आउट नहीं हो सकता है।

भास्कर यादव पर निजी अस्पताल चलाने का कई बार लग चुका है आरोप
मुख्यमंत्री का सख्त आदेश है कि सरकारी डॉक्टर अपना निजी अस्पताल नहीं खुल सकता लेकिन यह सब डॉक्टर भास्कर यादव के लिए कोई मायने नहीं रखता। तत्कालीन डीएम आंध्र वापसी ने ऐसे तमाम डॉक्टरों की लिस्ट जारी की थी उस लिस्ट में जिले के तमाम डॉक्टर थे जो निजी अस्पताल संचालित करते थे। उसमें से डॉक्टर भास्कर यादव का भी हॉस्पिटल था। लोगों का कहना है कि डॉक्टर भास्कर यादव ने अपने निजी अस्पताल पब्लिक हॉस्पिटल के नाम को बदलकर जीवन ज्योति हॉस्पिटल रख दिया है जिससे लोगों को यह भरम बना रहे कि डॉक्टर भास्कर यादव ने अपना हॉस्पिटल बंद कर दिया है।

रसूख है हावी! नियम-नियमवाली ताख पर
उत्तर प्रदेश स्वास्थ्य विभाग की सेवा नियमावली रहती है कि किसी भी डॉक्टर की एक ही जिले में अधिकतम 5 से 7 साल की तनाती हो सकती है तो सवाल उठना लाजिमी है कि जिले मे 10 वर्षों से एक ही जगह पर तैनात डॉक्टर भास्कर यादव को आखिर किसका संरक्षण प्राप्त है।

क्या कहते है मुख्य चिकित्सा अधिकारी राजीव निगम
जन एक्सप्रेस ने सीएमओ राजीव निगम से डॉक्टर भास्कर यादव के 10 साल से एक ही जगह पर तैनाती के बारे में पूछा तो सीएमओ ने कहा की अगर कोई शिकायत या कमी मिलती हैं तो ज़रुर कार्यवाही, तबादला किया जाएगा। जिले के बाहर का तबादला शासन से होती हैं, इसमे मेरा कोई रोल नही है।

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