उत्तर प्रदेश की राजधानी में हुश्न की मंडी बने स्पा सेंटरों में होता है जिस्म का सौदा…!
स्पा सेंटर के नाम पर चल रहे देह व्यापार के धंधे पर सफेदपोशों की सरपरस्ती
जन एक्सप्रेस/विश्वामित्र पांडेय
लखनऊ। इसमें कोई संदेह नहीं कि योगी आदित्यनाथ की सरकार ने बीते सात सालों में लगभग हर क्षेत्र में नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं, लेकिन राजधानी में मसाज सेंटर और नेचुरल थेरेपी के नाम पर संचालित स्पा सेंटरों में जिस तरह जिस्मफरोसी का गंदा खेल खेला जा रहा है, उससे वह दिन दूर नहीं जब अदब और तहजीब के शहर के नाम से मशहूर लखनऊ अय्याशी का पर्याय बन जाएगा। जहां प्राकृतिक चिकित्सा और नेचुरल मसाज का प्रयोग अक्सर लोग अपनी थकान दूर करने व ताजगी महसूस करने के लिए करते थे, वहीं ज्यादातर स्पा सेंटर और मसाज पार्लर में इस काले धंधे की एंट्री होते ही अब ये बदनाम जगह में तब्दील होने लगे हैं। सबसे ज्यादा दुख की बात यह है कि प्रशासन व्यवस्था को मजबूत बनाने वाली प्रदेश की पुलिस भी इस खेल में बराबर की हिस्सेदार होती जा रही है। एक केंद्र की पूर्व संचालिका ने नाम का खुलासा न करने की शर्त पर कई बड़े राज से पर्दा उठाया है। सूत्रों की मानें तो पक्ष विपक्ष के कई माननीय भी इस धंधे में अपना हाथ डाल चुके है जिनमे कुछ वर्तमान विधायक व सांसद भी शामिल हैं।
कैसे होता है स्पा सेंटर का संचालन…!
पहचान गोपनीय रखने कि शर्त पर एक स्पा सेंटर की पूर्व संचालिका ने बताया कि एक मसाज सेंटर शुरू करने के लिए पांच से सात लाख रुपए का एक बार खर्च आता है, जिसमें फर्नीचर व डेकोरेशन के साथ ही अन्य चीजें शामिल होती हैं। जिसके बाद मसाज पार्लर या नेचुरल थेरेपी का एक लाइसेंस लेना होता है और इसी लाइसेंस की आड़ में जिस्म के सौदे का काला खेल शुरू होता है। वहीं महिला स्टाफ के लिए प्रतिदिन के हिसाब से एक हजार से पंद्रह सौ रुपए एक स्टाफ को देना होता है, जिसमें एक स्टाफ को एक दिन में न्यूनतम छः सर्विस देनी होती है। जबकि सेंटर के मैनेजर को एक हजार रूपए प्रतिदिन के हिसाब से भुगतान किया जाता है। साथ ही सहुलियत से काम करने के लिए एक सेंटर से स्थानीय थाने चौकी को दश हजार रुपए से लेकर पचास हजार रुपए तक प्रतिमाह दिया जाता है, जिसमें थाने व चौकी का हिस्सा अलग अलग जाता है, ताकि पुलिस का खतरा न रहे। पूर्व संचालिका ने कहा कि सेंटर पर बैठने वाले लोग नाम मात्र के संचालक होते हैं बाकी सारी बागडोर बड़े लोगों के हाथ में होती है। एक तथा कथित बड़े नेता का नाम लेकर बताया कि उनकी सरपरस्ती में लखनऊ के करीब बीस से ज्यादा सेंटर संचालित हो रहे हैं। जबकि पूरे लखनऊ में पांच सौ से ज्यादा स्पा सेंटर संचालित हो रहे हैं, जिनमे कई सिर्फ कथित नेताओं और स्थानीय पुलिस के संरक्षण से बिना लाइसेंस के ही संचालित हो रहे हैं।
ग्लैमर और पैसों के लालच देकर इस धंधे में धकेली जाती हैं लड़कियां!
जानकारों की माने तो कहीं पैसों की जरूरत तो कहीं महिलाओं की मजबूरी का फायदा उठाकर उन्हें इस धंधे में उतारा जाता है। कई बार बाहर की लड़कियों को ऑफिस वर्क बताकर लाया जाता है और उन्हें जिस्म फरोशी के दलदल में फेंक दिया जाता है। जबकि उन्हें जबतक इस बात का पता चलता है तबतक उनकी आईडी व जरूरी दस्तावेज सिंडिकेट द्वारा जप्त कर लिए गए होते हैं।
कुछ इस तरह फसाए जाते हैं ग्राहक!
शौकीन मिजाज लोग ऑनलाइन के साथ ही जस्ट डायल जैसी ऑनलाइन सेवा प्रदाता कंपनियों का सहारा लेकर क्वॉरी करते हैं, उसके बाद विभिन्न सेंटर्स से ग्राहकों के पास फोन कॉल आने शुरू हो जाते हैं। टेलिकालर द्वारा ग्राहकों से पहले थेरेपी की बात की जाती है, उसके बाद सर्विस की बात बताई जाती है। सेक्स के लिए सर्विस शब्द जैसे कोड वर्ड का प्रयोग किया जाता है। टेलिकालर द्वारा ग्राहकों को लुभाने के लिए शहर के प्रतिष्ठित स्कूल और कॉलेज की लड़कियों का भी जिक्र किया जाता है। ग्राहक द्वारा मांग करने पर फोटो भी भेज दी जाती है, ताकि वे अपनी पसंदीदा लड़की का चुनाव कर सकें। यदि उम्र की बात करें तो ज्यादातर इस धंधे में सोलह वर्ष से तीस वर्ष की लड़कियों और महिलाओं का स्टाफ रखा जाता है। एक हजार से तीन हजार रुपए प्रति ग्राहक से चार्ज वसूल किया जाता है, जिसमें मसाज के साथ अन्य अनैतिक कार्य का शुल्क भी शामिल होता है।
दलालों के माध्यम से बाहर से लखनऊ लाई जाती हैं लड़कियां!
सूत्रों की मानें तो लखनऊ के कई प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों की छात्राओं के साथ ही हैदराबाद, बैंगलोर, मुंबई, दिल्ली, असम, कोलकाता, पटना, आंध्र प्रदेश व नेपाल जैसे शहरों से दलालों के माध्यम से लड़कियों की खरीद फरोख्त की जाती है। जिसमें कुछ बड़े घरानों की लड़कियां अपनी पॉकेट मनी के लिए स्वेक्षा से इस काम में शामिल होती हैं। यदि कोई लड़की या महिला बाद में इस गंदे काम से निकलना भी चाहे तो उन्हें बदनामी का डर दिखाकर ब्लैकमेल किया जाता है। विश्वसनीय सूत्रों की मानें तो इस काले धंधे में सफेदपोश भी शामिल हैं, जिसके कारण इस गंदे कारोबार को खत्म करने में अक्सर पुलिस व प्रशासन भी बौना साबित होता नजर आ रहा है।
योगी सरकार के लिए चुनौती बनी स्पा सेंटर्स के नाम पर फैली गंदगी!
पूर्व संचालिका ने आगे बताया कि कई बड़े नेता हैं जो इन्हीं सेंटर की लड़कियों का इस्तेमाल पहले खुद करते हैं और जरूरत पड़ने पर अपने खास मेहमानों के लिए भी मंगवाते हैं। इतना ही नहीं बल्कि कई बड़े अधिकारी व कई पुलिस अधिकारी भी चोरी छिपे रासलीला करने पहुंच जाते हैं। पूर्व संचालिका ने आगे कहा कि शहर में स्पा सेंटर के नाम पर हो रहे देह व्यापार की गंदगी ने इस कदर अपनी जड़ जमा ली है कि वर्तमान सरकार के लिए इसे साफ कर पाना नामुमकिन है।
कई कथित बड़े नेता सहित पुलिस के नुमाइंदे बने हैं कलंकित स्पा सेंटरों के सरपरस्त
लखनऊ के पुलिस कमिश्नरेट में पांच जोन हैं। पश्चिमी जोन में 13 थाने, उत्तरी जोन में 11 थाने, मध्य जोन में 10 थाने, पूर्वी जोन में 9 थाने, दक्षिणी जोन में 9 थाने।
लखनऊ पुलिस कमिश्नरेट में कुल 52 पुलिस थाने हैं। इनमें से दो महिला थाने हैं। एक शहरी क्षेत्र के लिए और एक ग्रामीण क्षेत्र के लिए। लखनऊ ग्रामीण के बख्शी का तालाब, इटौंजा, मलिहाबाद, माल, रहीमाबाद, निगोहां थाने को भी कमिश्नरेट में शामिल किया गया है। जिनमे से कृष्णानगर, गोमतीनगर, पारा, नाका हिंडोला, आलमबाग, इंदिरा नगर, सरोजनीनगर, हजरतगंज, हुसैनगंज, आशियाना थानों में सबसे ज्यादा स्पा सेंटर संचालित हो रहे हैं, जबकि कई सेंटर ऐसे हैं जो थानों के सामने ही बेखौफ होकर संचालित हो रहे हैं, ऐसा लगता है मानो इन्हें न पुलिस का खौफ है न सरकार का। सबसे दिलचस्प बात ये है कि थाने के पुलिस कर्मी बराबर स्पा सेंटर संचालकों के संपर्क में रहकर उन्हें समय समय पर आगाह भी करते रहते हैं। वहीं कृष्णा नगर थाने के दो सौ मीटर के अंदर तीन तो आलमबाग थाने के पांच सौ मीटर के दायरे में पांच ऐसे मसाज सेंटर हैं जहां मसाज के नाम पर जिस्म फरोसी का धंधा चलाया जाता है। इसी प्रकार आशियाना थाने के पांच सौ मीटर के दायरे में चार सेंटर संचालित होते हैं। इसके बावजूद चंद पैसों की खनक के आगे कई जिम्मेदार अपने घुटने टेकने को मजबूर नजर आते हैं।
जिम्मेदारी से क्यों भागते है जिम्मेदार!
पहला कारण साफ करते हुए एक पुलिस अधिकारी के अनुसार ऐसी बदनाम जगह पर छापेमारी के दौरान जो महिलाएं पकड़ी जाती हैं उनकी पुनर्वास की पूरी जिम्मेदारी उठानी पड़ती है, जिसके कारण ज्यादातर अधिकारी खुद को बचाते हुए झंझट मोल नहीं लेना चाहते। वहीं दूसरा कारण यह है कि स्थानीय पुलिस टीम की संलिप्तता के कारण बाहरी छापेमारी की सूचना पहले ही सेंटरों तक पहुंचा दी जाती है, जिससे ज्यादातर सेंटर संचालक पहले ही सचेत हो जाते हैं और छापेमारी करने वाली टीम खाली हाथ लौट जाती है।
इस संबंध में फिलहाल कोई जानकारी नहीं है लेकिन सूचना मिलने पर तत्काल प्रभाव से कार्यवाही की जाएगी।
– डीसीपी दक्षिण जोन लखनऊ कमिशनरेट