उत्तर प्रदेशचित्रकूट

दीपावली पर चित्रकूट में उमड़ा आस्था का सागर: 50 लाख श्रद्धालुओं ने लगाई कामदगिरि की परिक्रमा

त्रेतायुग की परंपरा आज भी जीवित, मंदाकिनी में स्नान कर भक्तों ने लिया पुण्य लाभ

जन एक्सप्रेस चित्रकूट (हेमनारायण हेमू):दीपावली पर्व पर लगने वाला पांच दिवसीय मेला धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से अद्वितीय माना जाता है। धनतेरस से शुरू होकर गोवर्धन पूजा और अन्नकूट तक चलने वाले इस महोत्सव में देशभर से लगभग 50 लाख श्रद्धालु पहुंचते हैं। मंदाकिनी नदी में स्नान कर श्रद्धालु श्रीकामदगिरि की 5 किमी परिक्रमा करते हैं।

त्रेता युग से जुड़ा है चित्रकूट का ऐतिहासिक महत्त्व

बाल्मीकि रामायण, रामचरितमानस, श्रीमद्भागवत, स्कंदपुराण और पद्मपुराण जैसे ग्रंथों में चित्रकूट की महिमा का उल्लेख है। यही वह स्थान है जहाँ भगवान श्रीराम ने वनवास काल का सर्वाधिक समय बिताया था। मंदाकिनी तट, कामदगिरि, सती अनुसूया आश्रम, हनुमान धारा, सीता रसोई सहित अनेक स्थलों पर प्रभु की स्मृतियाँ आज भी जीवित हैं।

मंदाकिनी तट पर दिव्य दीपोत्सव

ब्रह्मपुराण की मान्यता के अनुसार, देवता, ऋषि, महातीर्थ और स्वयं ब्रह्मा चित्रकूट आए थे श्रीराम से दीपावली मिलन के लिए। तब से लेकर आज तक यह धर्मनगरी चित्रकूट वैदिक दीपोत्सव का केंद्र बनी हुई है।

हनुमान धारा: जहाँ राम ने बुझाई थी हनुमान की अग्नि

हनुमान धारा पर स्थित शिला से शताब्दियों से गिर रही जलधारा आज भी चमत्कार मानी जाती है। मान्यता है कि लंका दहन के बाद हनुमानजी का शरीर अग्नि से जल रहा था, जिसे प्रभु श्रीराम ने इसी स्थान पर शीतल किया था।

सती अनुसूया आश्रम: जहाँ से फूटी मंदाकिनी

जब अत्रि मुनि को प्यास लगी और कहीं जल नहीं मिला, तब सती अनुसूया ने अपने तपोबल से मंदाकिनी नदी की उत्पत्ति की। आज भी यह आश्रम श्रद्धा, शक्ति और सेवा की प्रतीक है।

पौराणिक तीर्थों और देवताओं का चित्रकूट में समागम

ब्रह्मा, विष्णु, महेश से लेकर इंद्र, चंद्र, सूर्य, वशिष्ठ, वाल्मीकि, विश्वामित्र, दुर्वासा जैसे सैकड़ों ऋषि-मुनियों का चित्रकूट आगमन श्रीराम से दीपावली मिलन के लिए हुआ था। मान्यता है कि यहाँ तक कि प्रयागराज, बद्रीनाथ, केदारनाथ, मानसरोवर, हरिद्वार, अयोध्या, मथुरा जैसे प्रमुख तीर्थों ने भी मंदाकिनी तट पर स्नान कर श्रीराम को प्रणाम किया।

कामदगिरि – कामनाओं की पूर्ति का पर्वत

शास्त्रों में श्रीकामदगिरि को त्रिकूट, नील पर्वत, पद्मगिरि आदि नामों से जाना गया है। यह पर्वत मुक्ति, मोक्ष, सिद्धि और इच्छा पूर्ति का प्रतीक माना जाता है। यहां की परिक्रमा करने से पुण्यफल की प्राप्ति होती है।

तपोवन की देवकन्याएं और नौ सिद्धियाँ

रामायण में वर्णन मिलता है कि दीपावली पर देव कन्याएं मां सीता से मिलने चित्रकूट आई थीं, साथ ही अणिमा, महिमा, लघिमा जैसी नौ सिद्धियाँ आज भी सती अनुसूया की सेवा में विराजमान मानी जाती हैं।

विविध वन, सरोवर और दिव्य वृक्षों का क्षेत्र

चित्रकूट की वनों में आज भी कदंब, अशोक, पारिजात, मंदार, बेल, आम, पीपल जैसे दिव्य वृक्ष मौजूद हैं। विभिन्न दिशाओं में धर्मराज, वरुण, कुबेर और अन्य लोकपालों का पौराणिक रूप से वास बताया गया है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button