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हॉस्पिटल के बाहर चालान या चेतावनी, जिम्मेदारी केवल जनता की नहीं

जन एक्सप्रेस/जौनपुर: जौनपुर शहर के ज्यादातर सरकारी और निजी अस्पतालों के बाहर रोज एक जैसी तस्वीर दिखाई देती है मरीजों के परिजन, रिश्तेदार या मित्र इलाज के लिए अस्पताल पहुंचते हैं और मजबूरी में अपनी गाड़ियां अस्पताल के बाहर या आस-पास खड़ी कर देते हैं।
कुछ ही देर में ट्रैफिक पुलिस पहुंचती है और चालान काट देती है। कानून के लिहाज से यह कार्रवाई भले सही हो, पर सवाल यह है कि क्या यह न्यायसंगत भी है?

मरीज का परिजन कोई मौज-मस्ती के लिए नहीं, बल्कि मानवीय कर्तव्य निभाने के लिए अस्पताल आता है। अधिकतर अस्पतालों में न तो पर्याप्त पार्किंग की सुविधा है, न स्पष्ट निर्देश। ऐसे में यदि कोई वाहन सड़क किनारे खड़ा कर दिया जाता है, तो यह गलती नहीं बल्कि व्यवस्था की कमी का परिणाम है।

अस्पतालों की जिम्मेदारी से इनकार नहीं

Clinical Establishments (Registration and Regulation) Act, 2010 और नगर नियोजन नियमों के अनुसार किसी भी अस्पताल को लाइसेंस तभी मिलना चाहिए जब भवन का नक्शा नगर पालिका या विकास प्राधिकरण से स्वीकृत हो, और उसमें मरीजों, स्टाफ, एम्बुलेंस तथा आगंतुकों के लिए पार्किंग की पर्याप्त व्यवस्था अनिवार्य हो।
अगर अस्पताल में यह सुविधा नहीं है और सड़क ही पार्किंग का विकल्प बन रही है, तो यह जनता नहीं बल्कि अस्पताल प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही है।

मुख्य चिकित्सा अधिकारी (CMO) और नगर पालिका को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बिना पर्याप्त पार्किंग व्यवस्था वाले किसी भी अस्पताल को स्थायी लाइसेंस न मिले। पहले से संचालित अस्पतालों का निरीक्षण कर, जहां कमी मिले वहां चेतावनी और नोटिस जारी किए जाएं।

सिर्फ चालान काटने से नहीं बनेगा समाधान

ट्रैफिक पुलिस का दायित्व यातायात को सुचारू रखना है, लेकिन इसके लिए विवेक और संवेदना दोनों जरूरी हैं। यदि किसी अस्पताल के बाहर बार-बार एक जैसी स्थिति बनती है, तो पुलिस को अस्पताल प्रशासन को भी नोटिस देना चाहिए कि वह आगंतुकों के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश और पार्किंग व्यवस्था सुनिश्चित करे।
सिर्फ चालान काटने से व्यवस्था नहीं सुधरेगी, बल्कि संवाद और समन्वय से ही समाधान निकलेगा।

जनता की भूमिका भी अहम

सड़क सार्वजनिक संपत्ति है। नागरिकों की भी जिम्मेदारी है कि वाहन वहां खड़ा करें जहां अनुमति हो। अस्पताल प्रबंधन चाहे तो अल्पकालिक पार्किंग पास या पहचान पत्र व्यवस्था शुरू कर सकता है, ताकि मरीजों के परिजन थोड़े समय के लिए वाहन खड़ा कर सकें। इससे ट्रैफिक भी बाधित नहीं होगा और परिजनों को भी राहत मिलेगी।

साझा जिम्मेदारी से बनेगी व्यवस्था

यह मुद्दा जनता बनाम पुलिस का नहीं, बल्कि समन्वय की कमी और जिम्मेदारी के बंटवारे का है। नगर पालिका, स्वास्थ्य विभाग, ट्रैफिक पुलिस और अस्पताल प्रशासन अगर मिलकर नीति बनाएं, तो न सिर्फ मरीजों के परिजनों की परेशानी घटेगी बल्कि शहर का यातायात भी सुचारू रहेगा।

कानून का उद्देश्य दंड देना नहीं, समाधान खोजना होना चाहिए।
इसलिए अगली बार जब किसी अस्पताल के बाहर चालान काटा जाए, तो यह सवाल जरूर पूछा जाए

क्या गलती सिर्फ जनता की है, या अस्पतालों की भी कुछ जिम्मेदारी बनती है?

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