सितम्बर माह में बाजरे की फसल का प्रबंधन करना अति लाभकारी
कानपुर । बाजरे का अच्छा उत्पादन और अधिक लाभ कमाने के लिए किसानों को उन्नत तकनीक अपनाना आवश्यक है। सितंबर माह में बाजरे की फसल का प्रबंधन करना जरूरी होता है, जिससे बाजरे का उत्पादन अधिक और लाभकारी होगा। यह जानकारी गुरूवार को चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय कानपुर के वैज्ञानिक डॉक्टर राम कुमार सिंह ने दी।
उन्होंने बताया कि अधिक बाजरे का उत्पादन और लाभ हेतु उन्नत तकनीक अपनाना आवश्यक है। भारत विश्व का अग्रणी बाजरा उत्पादक देश है यहां लगभग 85 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में बाजरे की खेती की जाती है। जिसमें 87% क्षेत्र राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, हरियाणा एवं उत्तर प्रदेश में है। उन्होंने बताया कि देश के शुष्क एवं अर्ध शुष्क क्षेत्रों में यह प्रमुख खाद्य फसल है और साथ ही पशुओं के पौष्टिक चारा उत्पादन के लिए भी बाजरे की खेती की जाती है।
डॉ राम कुमार सिंह ने बताया कि पोषण की दृष्टि से इसके दाने में अपेक्षाकृत अधिक प्रोटीन 10.8 से 14.5% और वसा 0.4 से 8 % मिलती है। वही कार्बोहाइड्रेट, खनिज तत्व, कैल्शियम, कैरोटीन, राइबोफ्लेविन, विटामिन B2 और नाइसीन, विटामिन बी6 भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। गेहूं एवं चावल की अपेक्षा इस में लौह तत्व भी अधिक होते हैं। उन्होंने बताया कि अधिक ऊर्जावान के कारण इसे सर्दियों में खाना अधिक पसंद किया जाता है। भारत में कुल बाजरे का क्षेत्रफल लगभग 95% असिंचित है उन्होंने कृषकों को सलाह दी है कि वर्षा न होने के कारण भूमि में नमी बनाए रखें।
डॉ सिंह ने कहा कि सितंबर माह में बाजरे की फसल में लगभग बालियां निकलने लगती हैं जिसमें रोगों का प्रकोप अधिक होता है इनका समय से प्रबंधन करना उचित रहता है। मृदुरोमिल आशिता रोग बालियों पर दानों के स्थान पर छोटी-छोटी हरी पत्तियां उग जाती हैं। इसकी रोकथाम हेतु 0.35% कॉपर ऑक्सिक्लोराइड का पर्णीय छिड़काव कर दें। दूसरे रोग के लिए बताया कि अरगट रोग लगता है जो बालियों में शहद जैसा चिपचिपी बूंदे दिखाई देती हैं इसके नियंत्रण के लिए खड़ी फसल में बावस्टीन 0.1% का दो तीन बार पर्णीय छिड़काव कर दें।