
जन एक्सप्रेस हरिद्वार:हरिद्वार के पुण्य भूमि में स्थित देव संस्कृति विश्वविद्यालय एक ऐसा स्थान है, जो केवल शिक्षण संस्थान नहीं बल्कि आत्म विकास और जीवन साधना का माध्यम है। यहां योग केवल एक विषय नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला के रूप में सिखाई जाती है। यहां का प्रमुख उद्देश्य है- ऐसे विद्यार्थियों का निर्माण करना जो शरीर से स्वस्थ, मन से शांत और विचारों से सकारात्मक हों।
महर्षि पतंजलि ने अपने योग सूत्रों में कहा है —योगश्चित्तवृत्तिनिरोध:। अर्थात्- चित्त की वृत्तियों का निरोध (मन को स्थिर करना)। इसका मतलब है मन को इधर-उधर भटकने से रोकना और उसे एक ही वस्तु या विचार पर एकाग्र करना। देव संस्कृति विश्वविद्यालय में योग को केवल शरीर के व्यायाम के रूप में नहीं, बल्कि आत्मिक अनुशासन के रूप में सिखाया जाता है। यहां विद्यार्थी आसन, प्राणायाम, ध्यान और योग दर्शन के माध्यम से अपने भीतर की शक्ति को पहचानते हैं और अपने जीवन के लक्ष्य को साधते हैं।देव संस्कृति विश्वविद्यालय में प्रतिदिन छात्र-छात्राएँ योग एवं ध्यान करते हैं और अनुशासन, शांति एवं सकारात्मक सोच अपने अंदर विकसित करते हैं और अपने विचारों में स्पष्टता, व्यवहार में संयम और जीवन में संतुलित रहते हैं। यही कारण है कि देव संस्कृति विश्वविद्यालय के छात्र केवल डिग्री नहीं, वरन् जीवन में नैतिक संस्कार लेकर निकलते हैं।गुरुदेव का योग के प्रति दृष्टिकोणदेवसंस्कृति विश्वविद्यालय के कुलपिता युगऋषि पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने कहा है- योग केवल शरीर को नहीं, जीवन को संतुलित करता है। यह मनुष्य को आत्मबोध की ओर ले जाने वाला विज्ञान है।
देव संस्कृति विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति युवा आइकॉन डॉ चिन्मय पण्ड्या बताते हैं कि योग शिक्षा का नहीं, साधना का माध्यम है। यहां योग और ध्यान मिलकर विद्यार्थियों में समग्र विकास की भावना जागृत करते हैं, जिससे वे न केवल अपने जीवन को श्रेष्ठ बनाते हैं, बल्कि समाज में भी सकारात्मक परिवर्तन के वाहक बनते हैं। यहाँ के विद्यार्थियों को सदैव परिस्थिति में सकारात्मक दृष्टिकोण बनाये रखने के लिए प्रेरित किया जाता है।






