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डेमोग्राफी में बड़ा परिवर्तन डेमोक्रेसी के लिए खतरा : बाबूलाल मरांडी

रांची । भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने फिर एकबार संथाल परगना की बदलती डेमोग्राफी पर राज्य सरकार को घेरा। मरांडी शुक्रवार काे मानसून सत्र के पहले दिन विधानसभा परिसर में मीडिया को संबोधित कर रहे थे। मरांडी ने कहा कि पूरे प्रदेश में आदिवासियों की आबादी लगातार घट रही। संथाल परगना क्षेत्र की डेमोग्राफी में अप्रत्याशित बदलाव आए हैं। डेमोग्राफी का यह परिवर्तन डेमोक्रेसी केलिए खतरा है, जो सबके लिए चिंता का विषय है।

मरांडी ने कहा कि इस परिवर्तन में सबसे ज्यादा यदि कोई समुदाय प्रभावित हुआ है वह है जनजाति समाज। उन्होंने 1951 और 201 1के जनगणना रिपोर्ट के आधार पर प्रकाशित आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि झारखंड में वर्ष 1951 में आदिवासियों की आबादी 36 प्रतिशत, सनातनी हिंदू 87.9 प्रतिशत और मुस्लिम आबादी 8.9 प्रतिशत थी जबकि 2011 में आदिवासी 26 प्रतिशत हो गए और मुस्लिम 14.5 प्रतिशत और सनातनी 81.17 प्रतिशत हो गए यानी आदिवासी घटे, सनातनी घटे और मुस्लिम बढ़े।

मरांडी ने संथाल परगना का आंकड़ा बताते हुए कहा कि यहां की स्थिति तो खतरे की घंटी तक पहुंच गया। यहां अलार्मिंग स्थिति है। आकड़े बताते हुए उन्होंने कहा कि 1951 में संथाल परगना में आदिवासियों की जनसंख्या 44.67 प्रतिशत, मुस्लिम 9.44 प्रतिशत और अन्य 45.9 प्रतिशत थी जबकि 2011 में आदिवासियों की जनसंख्या घटकर 28.11 प्रतिशत हो गई और मुस्लिम आबादी बढ़कर 22.73 प्रतिशत पहुंच गई। अन्य की आबादी बढ़कर 49.2 प्रतिशत ही हुई।

मरांडी ने कहा कि ये आंकड़े डेमोग्राफी में हुए बड़े बदलाव की ओर स्पष्ट संकेत कर रहे। उन्हाेंने कहा कि इतना ही नहीं, बल्कि विगत दिनों भाजपा द्वारा किए गए मतदाता सर्वे के आंकड़ों पर विचार करेंगे तो संथाल परगना के 10 विधानसभा क्षेत्रों में 2019 से 2024 की मतदाता सूची में एक एक बूथ पर 20 से लेकर 123 प्रतिशत तक मतदाताओं की संख्या में वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा कि भाजपा ने इसे लेकर चुनाव आयोग भी गई है। ज्ञापन सौंपा है और जांच कराने की मांग की है।

मरांडी ने कहा कि देश की संवैधानिक व्यवस्था में जनसंख्या के समानुपातिक अनुपात के अनुसार एसटी एससी के लिए लोकसभा, विधानसभा चुनावों और नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था की गई है। इसलिए आदिवासियों की जनसंख्या घटने से न केवल डेमोग्राफी बदल रही, बल्कि आरक्षण प्रतिशत भी घटने की नौबत आएगी। सर्वाधिक नुकसान आदिवासी समाज को होगा।

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