
जन एक्सप्रेस नैनीताल/देहरादून: हिमालय की गोद में बसा नैनीताल और आसपास का मध्य हिमालयी क्षेत्र तेजी से बदलते मौसम के खतरनाक संकेत दे रहा है। पर्यावरण वैज्ञानिकों की मानें तो क्षेत्र में बढ़ती मानव गतिविधियाँ—जैसे निर्माण कार्य, वाहनों की बढ़ती संख्या और सैलानियों की भीड़— मानसून के पारंपरिक स्वरूप को तोड़ रही हैं। न केवल वर्षा की मात्रा घटी है, बल्कि उसकी तीव्रता भी चिंताजनक रूप से बढ़ी है।
नैनीताल स्थित आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज) के वैज्ञानिकों के अनुसार, जहां पहले मानसून के दौरान औसतन 2000 मिमी वर्षा होती थी, वहीं अब यह घटकर 1400–1500 मिमी तक सिमट गई है। वर्षा के दिन कम हो रहे हैं, लेकिन जब बारिश होती है, तो वह पहले से कहीं अधिक तेज और विनाशकारी होती है।
एरीज के निदेशक डॉ. मनीष नाजा और वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. नरेंद्र सिंह के अनुसार, मानसून में यह बदलाव सिर्फ नैनीताल नहीं, पूरे मध्य हिमालयी क्षेत्र में देखा जा रहा है। उनके मुताबिक, वायु प्रदूषण और ग्रीनहाउस गैसों का स्तर इस क्षेत्र में लगातार बढ़ रहा है। शोध में पाया गया है कि नैनीताल में पिछले पांच वर्षों में कार्बन डाईऑक्साइड में सालाना 2.66 पीपीएम और मीथेन में 9.53 पीपीबी की वृद्धि दर्ज की गई है।
हाल ही में एरीज द्वारा देश के कुछ अन्य वैज्ञानिक संस्थानों के साथ मिलकर किए गए एक संयुक्त अध्ययन में यह भी सामने आया है कि 2000 मीटर से नीचे के इलाकों में बारिश का संतुलन पूरी तरह बिगड़ गया है। हल्की बारिश की घटनाएं कम हुई हैं, जबकि मध्यम और भारी बारिश में उछाल आया है, जिससे अचानक बाढ़, भूस्खलन और अन्य आपदाओं की आशंका बढ़ गई है।
विशेषज्ञों का कहना है कि ये सभी बदलाव न केवल हिमालय की पारिस्थितिकी, जैवविविधता और कृषि को नुकसान पहुंचा रहे हैं, बल्कि पूरे भारत की जल व्यवस्था के लिए भी गंभीर खतरा बनते जा रहे हैं।






