7.92 लाख का गबन और फाइल बंद!
सरकारी अस्पताल में धन की हेराफेरी, जांच पर उठे सवाल

जन एक्सप्रेस लखनऊ (आशीष कुमार सिंह): राजधानी के रानी लक्ष्मीबाई संयुक्त जिला चिकित्सालय, राजाजीपुरम् से एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसने न सिर्फ स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं, बल्कि सरकारी धन की सुरक्षा को लेकर आम जनता की चिंता भी बढ़ा दी है।यह मामला वरिष्ठ सहायक श्रीमती रेखा तोमर से जुड़ा है, जिन पर ₹7.92 लाख की धनराशि के गबन का आरोप है। 31 मार्च 2022 को तत्कालीन मुख्य चिकित्सा अधीक्षिका ने थाना तालकटोरा को पत्र भेजकर एफआईआर दर्ज कराने की संस्तुति की थी। लेकिन इस गम्भीर मामले में जो हुआ, उसने सबको चौंका दिया।
तीन पत्रों में 11 दिन में ‘निस्तारण’?
8 अप्रैल और 11 अप्रैल को भेजे गए दो और पत्रों में यह कहा गया कि आरोपित ने पूरी राशि जमा कर दी है, अतः अब कोई कार्यवाही आवश्यक नहीं है। सवाल यह है कि मात्र धनराशि की वापसी से क्या गबन जैसे गम्भीर अपराध को समाप्त माना जा सकता है?
नियमानुसार देय ब्याज और दण्ड का क्या?
विशेषज्ञों का कहना है कि किसी भी सरकारी गबन में न सिर्फ मूलधन, बल्कि उस पर देय ब्याज और दण्डात्मक कार्यवाही भी अनिवार्य होती है। यहां तो एफआईआर से पहले ही प्रकरण को ‘समाप्त’ मान लिया गया।
प्रशासन की चुप्पी, जवाबदेही नदारद
सबसे बड़ी बात यह है कि 31 मार्च को भेजा गया पत्र उच्च स्तर के निर्देश पर था, लेकिन 8 और 11 अप्रैल को किनके आदेश से पत्र भेजे गए, यह स्पष्ट नहीं है। इससे यह शंका गहराई है कि कहीं यह मामला दबाने का प्रयास तो नहीं?
जनता का सवाल—कब मिलेगा न्याय?
इस प्रकरण से एक बड़ा संदेश यह गया है कि सरकारी धन के गबन पर भी केवल रकम लौटाने से छूट मिल सकती है। यह प्रवृत्ति अगर बढ़ी, तो शासन-प्रशासन की साख और आर्थिक अनुशासन दोनों को नुकसान पहुंचेगा।
जन एक्सप्रेस यह सवाल पूछता है—
गबन का अपराध क्या राशि लौटाने से माफ हो सकता है?
ऐसे मामलों में जिम्मेदार अधिकारियों की भूमिका की जांच क्यों नहीं होती?
क्या भ्रष्टाचार पर कार्रवाई सिर्फ दिखावा बनकर रह जाएगी?
अब समय है कि शासन इस मामले में सख्त रुख अपनाए और यह दिखाए कि कानून सबके लिए बराबर है—चाहे वह कोई भी हो।