चित्रकूट

तेंदू पत्ते के मुनाफे से मालामाल हो रहे तस्कर,सरकार के राजस्व को पहुंच रही भारी क्षति

  • तेंदू पत्ता सरकार के आमदनी का है प्रमुख स्रोत, बावजूद जिम्मेदारी उदासीन
  • अधिकांश फड़ें नहीं हुईं संचालित,डीएलएम बोल रहे फड़ें लगी है
रिपोर्ट – सचिन वन्दन 
चित्रकूट।
एक समय था जब उत्तर प्रदेश के व्यापार में तेंदू पत्ते की आय का खासा योगदान हुआ करता था।
आज भी तेंदू पत्ता मजदूर वर्ग के आय का स्रोत होने के साथ ही सरकार के आमदनी का भी प्रमुख साधन है। सरकार को जिस तरह से शराब,बालू और क्रेसर आदि लीज़ से आमदनी होती है, ठीक उसी तेंदू पत्ता भी सरकार के मुनाफे का प्रमुख स्रोत है। लेकिन प्रदेश सरकार का इस ओर बिल्कुल भी ध्यान नहीं है। इधर कुछ वर्षों से तेंदू पत्ते के संग्रहण कार्य सिमटता जा रहा है। जहां तेंदू पत्ते का उत्पादन लक्ष्य साल दर साल घटने से सरकार के राजस्व की भारी क्षति हो रही है। जबकि बुंदेलखंड के जंगलों में तेंदू पत्ते की उपज बेहतर होने के बाद भी उत्पादन लक्ष्य घट रहा है,जो बड़े चिंता का विषय है‌। इससे साफ हो रहा है कि, वन निगम तेंदू पत्ते के संग्रहण को लेकर बिल्कुल भी संजीदा नहीं है‌। वन निगम की फड़ें भी कागजों पर ही संचालित हो रही हैं। गांवों में फड़ें नहीं लगने से संग्राहक तस्करों को पत्ता देने को मजबूर हो रहे हैं। जिससे सरकार के खजाने को भारी नुक्सान पहुंच रहा है, जबकि तेंदू पत्ता माफिया मालामाल हो रहे हैं। योगी सरकार गुंडों और माफियाओं पर शिकंजा तो कस रही है लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि, तेंदू पत्ता माफियाओं पर कार्यवाही कब करेगी ?
तेंदू पत्ता ठेकेदारों, मजदूरों के मुनाफे के साथ सरकार के आय के आमदनी का भी प्रमुख स्रोत है। एक समय था जब उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में बड़े पैमाने पर तेंदू पत्ता का संग्रहण किया जाता था। एक दशक पहले जिन इकाइयों मे लाखों बोरा उत्पादन लक्ष्य था आज स्थिति यह है कि, लाख से हजार में आ पहुंचा है। जबकि बुंदेलखंड के जंगलों में तेंदू पत्ते का खासा उत्पादन है। फिर भी उत्पादन लक्ष्य घटना कई सवाल खड़े कर रहा है। लक्ष्य घटने के कई प्रमुख कारण सामने आ रहे हैं। लेकिन योगी सरकार का इस ओर बिल्कुल ध्यान नहीं है। जब बुंदेलखंड के बांदा और चित्रकूट में डकैतों का आतंक चरम पर था,तब सरकार तेंदू पत्ते से खासा मुनाफा कमाती थी। लेकिन डकैतों के खात्मे के बाद तेंदू पत्ता सरकार के राजस्व में फायदे के बजाय नुकसान पहुंचा रहा है।
जबकि उस दौर में डकैतों द्वारा ठेकेदारों से खुलेआम रंगदारी वसूली जाती थी‌। अब बुंदेलखंड के जंगल डकैत विहीन हो चुके हैं। बावजूद तेंदू पत्ते की आय सरकारी खजाने तक नहीं पहुंच रही है। तेंदू पत्ते का व्यापार पूरी तरह से माफियाओं के कब्जे में है। अब इसे सिस्टम की नाकामी कहें या सरकार की अनदेखी ?
कर्बी प्रभाग की अधिकांश फड़ें नहीं हुईं संचालित
कर्बी लौगिंग प्रभाग की अधिकांश फड़ें संचालित नहीं होने से यूपी सरकार के राजस्व को भारी क्षति पहुंची है। तेंदू पत्ते का तोड़ान अंतिम चरण में हैं। कर्बी प्रभाग में फड़े नहीं लगने से संग्राहक मजबूरीवश तस्करों को पत्ता दे रहे है‌‌। लेकिन डीएलएम चित्रकूट का कहना है कि, सभी फड़े संचालित हो रही हैं। डीएलएम द्वारा सफेद झूंठ बोला जा रहा है।
जबकि अमचुर नेरूआ, ददरी, टिकरिया,भेड़ा छेरिहा आदि इकाइयों में फड़े लगी ही नहीं है। सवाल यह भी है कि अगर फड़े लगी है तो तेंदू पत्ता फड़ो में ना आकर बाहर क्यों जा रहा है ?
मानिकपुर और मारकुंडी सेक्शन से ट्रेनें और पिकअप से भारी मात्रा में तेंदू पत्ते को एमपी समेत यूपी के गैर जनपद ले जाया जा रहा है। लेकिन जिम्मेदार जानबूझकर अंजान बने हैं। संग्राहक दबी जुबान कह रहे हैं कि , वन विभाग और रेलवे पुलिस वसूली करने के बाद ही पत्ता लें जाने दे रहे हैं।
पाठा में तस्करों की खास नज़र
पहले डकैतों द्वारा तेंदू पत्ता व्यापार प्रभावित होता रहा है। दस्युओं के खात्मे के बाद अब तस्करों से हरे सोने पर संकट छाया हुआ है। चित्रकूट के पाठा इलाके में तेंदू पत्ता तस्करों की विशेष नज़र है। पाठा के मारकुंडी, बहिलपुरवा, मानिकपुर, रैपुरा ,मऊ, बरगढ आदि थाना क्षेत्रों में व्यापक पैमाने पर तेंदू पत्ते की तस्करी का कारोबार फल-फूल रहा है। रेल मार्ग और अंदरूनी सड़कों से तेंदू पत्ता निकाला जा रहा है। ऐसा भी नहीं है कि वन विभाग और पुलिस को इसकी जानकारी न हो लेकिन सब आंख मूंदकर इस गोरखधंधे में शामिल हैं।
लोकल ट्रेनों से चोरी-छिपे परिवहन हो रहा तेंदूपत्ता
चित्रकूट में लोकल ट्रेनें और सड़क मार्ग द्वारा तेंदू पत्ते की तस्करी का कारोबार जोरों पर है।
बहिलपुरवा,ओहन, मानिकपुर,पनहाई,बरगढ, मारकुंडी, टिकरिया,बारामाफी,बांसा पहाड़ आदि रेलवे स्टेशनों से ट्रेनों मे तेंदू पत्ता लोड कर प्रयागराज,सतना आदि बड़े शहर ले जाया जा रहा है‌। ट्रेनों में सवार रेलवे सुरक्षा बल वसूली कर इस काले कारोबार को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसी तरह से मुख्य मार्ग समेत गुप्त रास्तों से भी तेंदू पत्ते की तस्करी की जा रही है।
अधिक दाम भी तस्करी की वजह
तेंदू पत्ते के तस्करी का कारण फड़ें न लगना तो है ही लेकिन अन्य राज्यों में तेंदू पत्ते का दाम अधिक होना भी है। तेंदूपत्ता की खरीद मानक बोरा के हिसाब से होती है। एक गड्डी में सौ पत्ते होते हैं। एक मानक बोरा में एक हजार गड्डी तेंदूपत्ता होता है। इसकी दर छत्तीसगढ़ में 4500 रुपये मानक बोरा है। जबकि मध्य प्रदेश में 3000 रुपये, उत्तर प्रदेश में 2500 रुपये प्रति मानक बोरा दर निर्धारित है। उत्तर प्रदेश से अन्य राज्यों में तेंदू पत्ते का अधिक दाम होने से अन्य राज्यों में तस्करी की जा रही है। अधिकतर तेंदू पत्ता मध्यप्रदेश ले जाया जा रहा है।
वर्षों से तेंदू पत्ता का लक्ष्य नहीं हुआ पूरा
मध्य प्रदेश की सीमाओं से लगा उत्तर प्रदेश के चित्रकूट की एक पहचान तेंदू पत्ता भी है। देश के कई राज्यों में यहां के पत्ते से बीड़ी बनाने का काम किया जाता है। कर्बी लौगिंग प्रभाग मे पिछले कई वर्षों से तेंदू पत्ते का लक्ष्य पूरा नहीं हो पा रहा है। लक्ष्य लगातार घटता ही जा रहा है, जबकि तेंदू पत्ते की उपज पर्याप्त मात्रा में होने के भी लक्ष्य पूरा न होना की सवाल खड़े कर रहा है। विभागीय सूत्रों की माने तो इस बार का लक्ष्य का पचास फीसद ही लक्ष्य पूरा हुआ है।
रेलवे पुलिस और वन विभाग की मदद से निकल रहा तेंदूपत्ता
पाठा क्षेत्र के संग्राहकों ने बताया कि, मारकुंडी क्षेत्र के ठीका, अमचुर नेरूआ, मनगवां, टिकरिया जमुनिहाई, बम्भिया, इंटवां डुड़ैला आदि गांवों में फड़ नहीं लगने से मजबूरीवश हमें तेंदू पत्ता बाहर ले जाना पड़ रहा है। मारकुंडी, टिकरिया, इंटवा डुड़ैला आदि गांवों की महिलाओं ने बताया कि वन विभाग, जीआरपी और पुलिस द्वारा वसूली करने के बाद ही हमें ट्रेनों में पत्ती चढ़ाने दिया जा रहा है। टिकरिया की सुशीला,मैना, रानी,पियरिया आदि महिलाओं ने बताया कि प्रति बोरा 50 रूपये वसूली की जा रही है‌‌। इसी तरह से मारकुंडी की मुन्नी देवी, प्रेमा,जानकी, आदि महिलाओं ने बताया कि रेलवे स्टेशन व ट्रेन के अंदर पैसों की वसूली की जाती है। बातचीत में कहा कि, साहब इस बात को किसी से बताना नहीं‌‌। अगर यह बात पैसा लेने वाले साहब को पता चलेगी तो हमारा पत्ता लें जाना बंद हो जाएगा‌।

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