जानिए,कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा को लेकर योगी सरकार ने क्या उठाया बड़ा कदम…
लखनऊ। प्रदेश में सरकारी कामकाजी महिलाओं के कार्यस्थल पर शोषण और लैंगिक उत्पीड़न को रोकने के लिए योगी सरकार ने विगत 7 वर्ष में गंभीरता से प्रयास किए हैं। अब इसी क्रम में उत्तर प्रदेश सचिवालय में गठित शिकायत समिति (विशाखा समिति) को आंतरिक परिवाद समति/शिकायत समिति के रूप में नई संरचना के साथ पुनः गठित किया गया है।
पहले इस समिति के दायरे में सिर्फ सचिवालय सेवा के कार्मिक ही आते थे, लेकिन नई संरचना वाली इस समिति में संपूर्ण सचिवालय को एक इकाई मानते हुए सचिवालय में कार्यरत आईएएस संवर्ग के अधिकारियों को छोड़कर शेष सभी अधिकारी, कर्मचारी दायरे में लाए गए हैं।
प्रमुख सचिव, आयुष तथा स्टांप एवं रजिस्ट्रेशन विभाग लीना जौहरी को समिति का अध्यक्ष/पीठासीन नियुक्त किया गया है। इस कदम से सचिवालय में कार्य करने वाली महिलाओं की सेफ्टी और सिक्योरिटी में और इजाफा होगा और उनके आत्मविश्वास में भी वृद्धि होगी।
नई संरचना वाली समिति का गठन
सचिवालय प्रशासन ने महिलाओं के कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न पर अंकुश लगाने के लिए 4 फरवरी 2021 को शिकायत समिति का गठन किया था। हालांकि, यह सचिवालय सेवा के कार्मिकों पर ही लागू होता था। अब इसके स्थान पर आईएसएस अधिकारियों को छोड़कर सचिवालय सेवा संवर्ग, प्रांतीय लोक सेवा, भारतीय वन सेवा सहित सचिवालय में तैनात सभी सेवा संवर्ग के अधिकारियों व कर्मचारियों सभी पर यह लागू हो सकेगा।
सचिवालय प्रशासन के कार्यालय ज्ञापन के अनुसार आयुष तथा स्ट्रांप एवं रजिस्ट्रेशन विभाग की प्रमुख सचिव लीना जौहरी इसकी अध्यक्ष होंगी, जबकि सचिवालय प्रशासन के विशेष सचिव/संयुक्त सचिव इसके संयोजक सदस्य होंगे।
वहीं, सूचना विभाग के विशेष सचिव जय प्रकाश भारती को समिति का सदस्य नामित किया गया है और एसोसिएशन फॉर एडवोकेसी एंड लीगल इनीसिएटिव्स (आली) को बतौर गैर सरकारी संस्था (एनजीओ) के रूप में समिति में जोड़ा गया है। यह एनजीओ एक नारीवादी कानूनी वकालत और संसाधन समूह है जो महिलाओं के लिए कार्य करता है।
2021 में गठित हुई थी समिति
मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट ने 1997 में एक केस की सुनवाई करते हुए कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए कुछ दिशानिर्देश बनाए, जिन्हें विशाखा दिशानिर्देश (विशाखा गाइडलाइंस) कहा जाता है। कोर्ट ने निर्देश दिया कि इन दिशानिर्देशों का भारतीय संविधान के अनुसार कानून की तरह पालन किया जाना चाहिए। बाद में, ये दिशानिर्देश कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 नामक एक वास्तविक कानून का आधार बन गए।