अयोध्या मेडिकल कॉलेज के संविदाकर्मी की आत्महत्या मामले में बड़ा खुलासा

जन एक्सप्रेस/अयोध्या: अयोध्या मेडिकल कॉलेज के संविदाकर्मी प्रभुनाथ मिश्रा की आत्महत्या मामले ने अब एक खौफनाक मोड़ ले लिया है। CDFD हैदराबाद की DNA रिपोर्ट ने जो खुलासा किया है, वह न केवल पोस्टमार्टम प्रक्रिया पर सवाल खड़े करता है, बल्कि पूरे मेडिकल सिस्टम की साख पर भी गहरा धब्बा छोड़ता है।
27 मार्च 2025 को जारी CDFD की रिपोर्ट को लखनऊ पुलिस ने 12 अप्रैल को मृतक के परिजनों को सौंपा। रिपोर्ट के अनुसार, मृतक के बिसरा नमूनों का जब माता-पिता के रक्त से DNA मिलान किया गया, तो यह चौंकाने वाला सच सामने आया कि बिसरा में मौजूद अंगों का प्रभुनाथ से कोई जैविक संबंध ही नहीं है। यानी, यह नमूना किसी और डेड बॉडी का था, जिसे प्रभुनाथ के नाम से संरक्षित किया गया। DNA जाँच रिपोर्ट में CDFD की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. पूजा त्रिपाठी ने साफ़ लिखा कि बिसरा में मौजूद अंग प्रभुनाथ के नहीं थे। इससे यह स्पष्ट हो गया कि KGMU मोर्चरी के डॉक्टर, जिन्होंने प्रभुनाथ का पोस्टमार्टम किया, उन्होंने जानबूझकर नमूनों की अदला-बदली की। आरोप है कि इस साजिश में मुख्य आरोपी डॉ. ज्ञानेंद्र कुमार की मिलीभगत भी है।
मानवता के पेशे में कलंकित चेहरे
सफेद कोट पहनकर सेवा की शपथ लेने वाले डॉक्टरों की इस करतूत ने न केवल एक परिवार को न्याय से वंचित करने की कोशिश की, बल्कि पूरे चिकित्सा तंत्र को कठघरे में खड़ा कर दिया है। मृतक के परिवार का कहना है कि यह आत्महत्या नहीं, बल्कि एक सोची-समझी साजिश का हिस्सा हो सकता है, जिसमें सबूतों को जानबूझकर मिटाया गया।
डिप्टी सीएम ने दिए जाँच के आदेश
मामले की गंभीरता को देखते हुए उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने उच्च स्तरीय जांच के आदेश दे दिए हैं। अब सवाल उठता है कि क्या दोषियों को सजा मिलेगी या यह मामला भी प्रशासनिक फाइलों में दबकर रह जाएगा?
क्या कहता है कानून और नैतिकता?
इस प्रकरण ने न केवल पोस्टमार्टम प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल उठाए हैं, बल्कि यह भी दर्शाया है कि मेडिकल कॉलेजों और मोर्चरियों में किस हद तक भ्रष्टाचार व्याप्त हो चुका है। अब देखना यह है कि जांच किस दिशा में जाती है और दोषियों पर क्या कार्रवाई होती है।