वित्तीय संस्थानों के अधिकारियों के निजीस्वार्थ उपभोक्ताओं के दर्द का मुख्य

जान एक्सप्रेस :दिल्ली एनसीआर सहित देश भर में आम जनता का एक ही सपना होता है कि बड़े शहरों में अपना एक आशियाना हो। जहां जीवन सकून से गुजार सके और बच्चों का भविष्य उज्ज्वल कर सके । उसके लिए वह अपने जीवन की कुल जमा पूंजी जोड़कर और बैंकों के ऋण लेकर आशियाना बनाने की सोचता है। लेकिन यहीं वह कुचक्र की दहलीज से भविष्य के दुखदाई गुफा में प्रवेश करता है। जहां उसे कोई रास्ता अथवा निकलने की कोई आशा नहीं दिखती । बिल्डर और वित्तीय संस्थानों के मिली भगत से आम नागरिकों के हितों पर जो कुठाराघात हुआ उसकी मलाई बिल्डर और वित्तीय संस्थानों के तथाकथित अधिकारियों ने जमकर खाया। जिसमें निजी क्षेत्र के वित्तीय संस्थानों से लेकर सरकारी वित्तीय संस्थान तक खूब शामिल रहे हैं। यहां तक कि बिल्डरों को राजनीतिक संरक्षण तक दिया गया । जिसके कारण आम जनता की आवाज सत्ता के शूरवीरों के कानों तक नहीं पहुंच सकीं अथवा खुद वह देखना सुनना नहीं चाहे।
आखिर थक हार कर जनता देश के सर्वोच्च न्यायालय में गई और न्यायालय के निर्देश पर सीबीआई ने आरंभिक जांच शुरू करते हुए जनता के पैसों से धन कुबेर बने बिल्डरों के प्रतिष्ठानों पर छापेमारी शुरु कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद भ्रष्टाचार के जनक और भ्रष्ट अधिकारियों सहित बिल्डरों की तथाकथित जमात पर असर पड़ेगा यह सोचनीय है।
बैंक ,गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थान और बिल्डर कीे सांठ गांठ
रियल स्टेट के धंधे में बैंक और गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थानों ने छोटे से व्यापारी को बड़ा धन कुबेर बनाया है। जिसका लाभ बैंकों और गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थानों के उच्च पदस्थ अधिकारियों ने भी ख़ूब लिया। आरबीआई और एनएचबी के दिशा निर्देशों की धज्जियां उड़ाते हुए निजी लाभ के लिए कतिपय बैंकों और गैर वित्तीय संस्थानों के अधिकारी बिल्डरों के हाथों खेले। जिसमें सबसे ज्यादा नुकसान जनता और वित्तीय संस्थानों का हुआ और मौज मस्ती और लाभ बिल्डर और वित्तीय संस्थानों के तथाकथित अधिकारियों ने लिया । नई नई स्कीम बिल्डर्स के लिए बैंक और एनबीएफसी मिलकर बनाते थे । जिसके जाल में आम।जनता फंसती गई ।
सबवेंशन स्कीम के नाम पर जनता से हुआ धोखा , निर्माण कार्य बिना देखे हुआ भुगतान
जनता के विश्वास के साथ खिलवाड़ का खेल कतिपय बैंकों और एनबीएफसी संस्थानों ने जमकर किया । वित्तीय संस्थानों में उच्च स्तर के अधिकारियों और बड़े बिल्डरों की सांठ गांठ से एक स्कीम निकली जिसका नाम था सबवेंशन स्कीम । जिसमें बुकिंग के बाद पजेशन तक घर खरीदार को कोई किश्त नहीं देनी थी ।उसका भुगतान बिल्डर करता । जिसमें जमकर आम जनता ने विश्वास जताया और अपने खून पसीने और अल्प बचत को आशियाने की चाह में बिल्डरों की अंधे कुएं वाली झोली में डाल दिया । उसके बाद खेल शुरू हुआ वित्तीय संस्थानों का उन्होंने बिल्डरों के दरवाजों पर घुटने टेक करके बिना निर्माण की प्रगति देखे ही सबवेंशन प्लान में स्वीकृत गृहऋण पर जमकर भुगतान बिल्डर्स को किया । आम खरीदार भी निश्चिन्त था कि हमें तो भुगतान घर बनने के बाद ही करना है तो उसे कोई आर्थिक क्षति नहीं होगी। लेकिन तथाकथित बिल्डरों की लापरवाही और प्रोजेक्ट बढ़ाने की भूख साथ बैंकों और वित्तीय संस्थानों की उदासीनता ने आम जनता के आशाओं पर पानी फेरा । बिल्डर्स स्कीम के अनुसार किश्त चुकाने में चुके तो बैंक और वित्तीय संस्थान सीधे जबरदस्ती पर उतर आया और गृहऋण लेने वाले उपभोक्ताओं को किश्त वसूली के नोटिस भेजने लगा । बैंकिंग अथवा वित्तीय संस्थानों की दबंगई कहे अथवा असीमित अधिकार उन्होंने खरीदारों के क्रेडिट रेटिंग तक खराब कर दिए । अपनी खून पसीने की पूंजी लगाने के बाद भी आम नागरिक बिल्डर और वित्तीय संस्थानों के कुचक्र में पिसता रहा । अब समय आया है ऐसे भ्रष्टाचारियों को सबक सिखाने की केवल बिल्डर्स ही नहीं वित्तीय संस्थानों के उन अधिकारियों उच्च प्रबंधन समेत क्षेत्रीय, जोनल और शाखा स्तर पर जिन्होंने भी जनता के हितों से खिलवाड़ किया उसको सज़ा मिलनी चाहिए ।
इन बिल्डरों पर दर्ज हुए मुकदमें
सुपरटेक लिमिटेड, एविजे डेवलेपर्स,शुभकामना बिल्डटेक, जियो टेक, साहा इंफ्राटेक, ड्रीम प्रोकान , अर्थकान यूनिवर्सल, बुलंद बिल्डटेक, जे पी इंफ्राटेक, सिक्वल बिल्डकॉन, अजनारा इंडिया , वाटिका लिमिटेड, जे पी स्पोर्ट्स / जयप्रकाश एसोसिएट्स, आइडिया बिल्डर्स,मंजू जे होम्स,लॉजिक्स सीटी डेवलेपर्स सहित अन्य बिल्डर्स शामिल हैं।
वित्तीय संस्थान जो जांच के रडार में हैं
जनता के हितों से खिलवाड़ करने में महत्वपूर्ण भूमिका वित्तीय संस्थानों की रही है। वित्तीय संस्थानों के उच्च प्रबंधन में।शामिल आधिकारियों की बिल्डर्स के साथ सांठगांठ ने पूरे कुचक्र को रचा । जब जनता को स्कीम दिया गया तो फिर उसमें परिवर्तन क्यों हुआ अथवा निर्माण कार्य की प्रगति के अनुसार निर्माणक्रम में भुगतान में क्यों अनदेखी हुई ऐसे बहुत से अनुत्तरित प्रश्न हैं जो वित्तीय संस्थानों को कटघरे में।खड़ा करता है। जिसका जवाब जनता चाहती है।
जिन प्रमुख संस्थानों पर के अधिकारी कानूनी जांच की जद में आए हैं उनमें आईसीआईसीआई बैंक , एक्सिस बैंक, पीएनबी हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड, इंडिया बुल्स जो वर्तमान सम्मान कैपिटल के साथ साथ कुछ सरकारी अधिकारियों को भी जांच के घेरे में रखा गया है।






