सेवा संगम का संदेशः कला कौशल सीखो एक बार, नहीं होंगे कभी बेरोजगार

जयपुर। राजस्थान की राजधानी जयपुर से करीब 12 किलोमीटर दूर जामडोली स्थित केशव विद्यापीठ में चल रहे राष्ट्रीय सेवा संगम में लगी प्रदर्शनियों के माध्यम से स्वावलंबी भारत, पर्यावरण संरक्षण, गो सेवा और गांवों की खुशहाली के संदेश दिए जा रहे हैं। ये प्रदर्शनियां सेवा संगम में जुटे समाजसेवियों के अलावा स्थानीय लोगों के लिए भी आकर्षण की केंद्र बनी हुई हैं।
कार्यक्रम स्थल पर पांच विशाल प्रदर्शनियां लगी हैं, जिनमें सेवा भारती के सभी प्रान्तों के सेवा कार्य प्रदर्शित किए गए हैं। भारतीय विकास परिषद और वनवासी कल्याण परिषद सहित अन्य सेवाधर्मी संगठनों के भी सेवा कार्य इनमें शामिल हैं। सेवा कार्य के लिये समर्पित महापुरुषों की प्रतिमाएं भी यहां लगी हैं। ‘‘कला कौशल सीखो एक बार, नहीं होंगे कभी बेरोजगार’’, ‘‘सहकारिता हम अपनाएंगे, रोजगारयुक्त देश बनाएंगे’’ जैसे तरह-तरह के प्रेरक नारे भी प्रदर्शनी मंडपों में लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बने हुए हैं।
प्रेरक उद्यमियों की संघर्ष गाथाः प्रदर्शनी मंडप में प्रेरक उद्यमियों के संघर्ष की गाथाएं भी कपड़ों के बने आकर्षक पोस्टरों में उकेरी गई हैं, जो स्वावलंबी भारत अभियान को रफ्तार दे रहे हैं। इनमें बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश के रहने वाले मुनेन्द्र सिंह के बारे में दर्शाया गया है कि इंजीनियरिंग और एमबीए करने के बाद वह इंग्लैंड में नौकरी करने लगे थे। कुछ समय बाद वह विदेश की नौकरी छोड़कर अपने गांव आ गए और मात्र 13 बकरियों के साथ गोट फार्म शुरू किया। करीब सात साल की मेहनत के बाद आज मुनेन्द्र का व्यवसाय तीन करोड़ रुपये सालाना का हो गया है।
इसी तरह महाराष्ट्र के किसान विलास शिंदे के बारे में दर्शाया गया है कि एक लाख रुपये निवेश कर आज वह 525 करोड़ रुपये टर्नओवर वाली कृषि कंपनी के मालिक हैं। रूस, अमेरिका और विभिन्न यूरोपीय देशों सहित 42 देशों में उनके उत्पादों का निर्यात होता है। अमेरिका की नौकरी छोड़ गांव में अपनी हजारों करोड़ की आईटी कंपनी, जोहो का आफिस खोलने वाले पद्मश्री श्रीधर वेम्बू भी इस प्रदर्शनी में युवाओं के प्रेरणास्रोत बने हैं। प्रदर्शनी पंडाल में सेवा भारती के प्रयास से स्वरोजगार के लिए देश भर में संचालित सौंदर्य वर्धन प्रशिक्षण केंद्रों, सिलाई केंद्रों जैसे विभिन्न कौशल विकास के बारे में माडल भी दर्शाए गए हैं।
एक पेड़ देश के नामः कार्यक्रम स्थल के प्रवेश द्वार के पास ही बने एक प्रदर्शनी पंडाल का नामकरण ही ‘‘एक पेड़ देश के नाम’’ से किया गया है। यह पंडाल जहां जल, जंगल, जमीन को बचाने की सीख दे रहा है, वहीं पंडाल के बाहर बनी फूस की झोपड़ी, उसके पास स्वच्छ जल से भरा तालाब, बगल में मंदिर और दरी व कालीन की बुनाई में लगे कारीगर भारत के समृद्ध गांव की तस्वीर प्रस्तुत कर रहे हैं। इस पंडाल के मध्य में ग्रहों और नक्षत्रों के अनुसार पौधे लगाए गए हैं। एक वैन से जल संरक्षण का संदेश दिया जा रहा है। वहीं कूड़ा प्रबंधन की अच्छी सीख देने के लिये घर की अनुपयोगी वस्तुओं में छोटे-छोटे पौधे लगाए गए हैं, जैसे पुराने जूतों में उगाए गए पौधे लोगों को आश्चर्यचकित कर रहे हैं।
गो आधारित खेती और गो पालन का संदेशः ग्राम विकास के नाम से बने एक प्रदर्शनी पंडाल में गो आधारित खेती और गो पालन के व्यापक लाभ को दर्शाया गया है। इस पंडाल में गो माता के विभिन्न उत्पाद भी प्रदर्शित किये गये हैं। गोबर और गोमूत्र से बनने वाले उत्पादों के बनाने की प्रक्रिया भी दर्शायी गई है। पौराणिक प्रसंगों के उद्धरण के साथ पंचगव्य द्वारा मनुष्य की चिकित्सा का उल्लेख विस्तार से इस पंडाल में किया गया है। इसके अलावा महानगरों में घरों की छतों पर कृषि और बागवानी करने की विधि और उससे होने वाले लाभ भी इस प्रदर्शनी पंडाल में दर्शाये गये हैं।