उत्तराखंडदेहरादून

बागेश्वर में ‘जोशीमठ पार्ट-2’ की आहट! NGT रिपोर्ट ने खोली खनन माफिया की पोल

सोपस्टोन खनन से दरक रहे पहाड़, सूख रहे जल स्रोत; विशेषज्ञों की चेतावनी—अब भी न संभले तो तबाही तय

जन एक्सप्रेस, देहरादून: उत्तराखंड के बागेश्वर जिले में हो रहा अनियंत्रित खनन अब एक बड़े खतरे की दस्तक बन चुका है। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) को 30 जुलाई को सौंपी गई एक विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट ने साफ किया है कि यहां के हालात ठीक वैसे ही हो चले हैं जैसे जोशीमठ में भूस्खलन से पहले थे। रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है—अगर फौरन सख्त कदम नहीं उठाए गए तो बागेश्वर दूसरा जोशीमठ बन सकता है।

खनन के कारण जमीन कमजोर, जल स्रोत सूखे, घरों में दरारें

विशेषज्ञों की समिति, जिसमें भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण, भूविज्ञान व खनन विभाग, सुदूर संवेदन संस्थान सहित कई तकनीकी एजेंसियां शामिल थीं, ने बागेश्वर, कांडा और डुगनाकूरी तहसीलों की 61 सोपस्टोन खदानों का निरीक्षण किया। रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि खनन नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं—बिना ‘बेंचिंग’, मलबे को नालों में फेंकना, घरों और खेतों से महज कुछ मीटर दूर खुदाई। परिणामस्वरूप जल स्रोत सूख गए हैं, पहाड़ दरकने लगे हैं और कई घरों में दरारें आ चुकी हैं। सैटेलाइट डेटा और क्षेत्रीय सर्वेक्षणों से भी यह पुष्टि हुई है कि खनन स्थलों के आसपास जमीन लगातार खिसक रही है। यह इलाका भूकंप संवेदनशील जोन V में आता है, जिससे खतरा और भी गंभीर हो जाता है।

अदालत सख्त: खनन रोका जाए, जिम्मेदारों पर हो कार्रवाई

रिपोर्ट के आधार पर NGT ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि जब तक भूकंपीय अध्ययन पूरा नहीं हो जाता, तब तक संवेदनशील क्षेत्रों में किसी भी तरह का खनन दोबारा शुरू न किया जाए।
दिसंबर 2024 में अदालत द्वारा नियुक्त टीम को सरकारी अफसरों के हस्तक्षेप, रिश्वत की पेशकश और जांच में अड़चन की शिकायतें मिली थीं, जिसके बाद हाईकोर्ट ने खनन पर पूरी तरह से रोक लगाई थी।

फरवरी 2025 में, भारी मशीनों के इस्तेमाल पर सवाल उठाते हुए कोर्ट ने खनन संचालकों पर सख्त कार्रवाई के आदेश दिए। 124 उत्खनन मशीनें जब्त हुईं, 100+ खदानों की अनुमति रद्द की गई, और 54 ऑपरेटरों को नोटिस भेजे गए।

मानसून से पहले बनी कृत्रिम झीलें भी बना रहीं खतरा

हालिया निरीक्षण में अदालत ने पाया कि बंद पड़ी खदानों में बारिश का पानी भर गया है, जिससे कई कृत्रिम जलाशय बन गए हैं। यह पानी पहाड़ों की स्थिरता को कमजोर कर सकता है। कोर्ट ने कहा कि समय रहते इनका समाधान नहीं हुआ तो भारी बारिश में बड़ा हादसा हो सकता है।ग्रामीणों की मानें तो जिनके पास साधन हैं, वो पहले ही इलाका छोड़ चुके हैं, लेकिन गरीब और असहाय परिवार अब भी खतरे के मुहाने पर जीने को मजबूर हैं।

समिति के सुझावों में शामिल हैं:

पहाड़ों की स्थिरता का वैज्ञानिक आकलन

सैटेलाइट डेटा और भूकंप नेटवर्क से निगरानी

खनन पट्टों का डिजिटल रिकॉर्ड

जल स्रोतों का मैप बनाना

बफर जोन की व्यवस्था

नियम तोड़ने वालों पर कड़ी कार्रवाई

अब सवाल ये है: क्या बागेश्वर भी जोशीमठ की तरह दरकने के बाद ही जगेगा सिस्टम?
जब चेतावनी सामने है, तो कार्रवाई क्यों नहीं?

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