जंगल में खिले पलाश के मनमोहक फूल कर रहे आकर्षित
टेसू के फूलों से जंगलों में बिखरी लालिमा

जन एक्सप्रेस/सचिन वन्दन/चित्रकूट: अप्रतिम सुंदरता की मूर्ति सरीखे पलाश के रक्ताभ फूल खिलना शुरू हो गए हैं। जंगल में खिले चमकीले नारंगी रंग के टेसू के फूलों को देख कर ऐसा प्रतीत होता हो रहा है, जैसे किसी ने धधकते अंगार रख दिए हों।हूबहू दीपक की लौ के आकर के कारण अंग्रेज साहित्यकारों टेस के फूल को “फ्लेम ऑफ फायर” यानि वन ज्योति नाम दिया है। सभी मार्गों के किनारे लगे पलाश के फूल पेड़ों पर इतने घने खिल उठे हैं कि हर व्यक्ति की नजर इन खिलखिलाते टेसू के फूलों पर जाती है। हालांकि इस वर्ष होली के बाद एक हफ़्ते लेट फूल आए हैं।पलाश को ढाक, किंशुक, टेसू, परसा आदि नामों से भी जाना जाता है। पलाश के फूल, छाल, पत्ती और बीज कई तरह की औषधियों में काम आते हैं। पलाश के फूल को उत्तर प्रदेश और झारखंड का राज्य पुष्प माना जाता है। पुराने जमाने में पलाश के फूलों को उबालकर रंग बनाए जाते थे और इससे होली खेली जाती थी। लेकिन समय के साथ तीज-त्योहारों के तरीके बदलते गए। पहले टेसू के फूलों से खेली जाने वाली होली आज हर्बल रासायनिक रंगों से रंगीन है। पलाश के फूल डायबिटीज, बवासीर और त्वचा संबंधी समस्याओं में भी बेहद फायदेमंद है। इसके पत्ते शुद्धता के प्रतीक माने जाते हैं। इनके पत्तों से दोना,पत्तल और थालियां बनाई जाती हैं, जो ग्रामीण अंचलों के लोगों के जीवकोपार्जन का प्रमुख साधन भी है।
जंगलों में बिखरी लालिमा

टेसू बसंत का श्रृंगार है, जो इन दिनों चित्रकूट के जंगलों में खिलखिलाकर अपनी सुन्दरता बिखेर रहा है। चित्रकूट के जंगलों में पलाश के पेड़ बहुतायत मात्रा में पाए जाते हैं, खासकर पाठा क्षेत्र में इनकी संख्या अधिक है। जंगल के अंदर और बाहरी किनारों पर टेसू के फूल इस कदर खिले हैं कि पूरा जंगल लालिमा से भर उठा है। लाल केसरिया रंग के टेसू के फूल बसंत की उद्दयनकारी रूप को प्रदर्शित करते हैं। टेसू के फूल जब पेड़ों से झड़ते हैं तो ऐसे लगते हैं जैसे पेड़ खुद अंजुलियों में भर-भरकर धरती मां पर न्योछावर कर रहे हो। इसे देख नीरस मन भी प्रसन्न हो जाता है।
टेसू के फूलों से प्रकृति कर रही अपना श्रृंगार

पलाश के रक्ताभ फूल बसंत के आगमन होते ही खिलना शुरू हो जाते हैं। पेड़ों पर लदे टेसू के फूलों की ओर नज़र पड़ते ही बरबस लोगों का मन मोह लेते हैं। रक्ताभ फूलों से पुष्पित हो रहे फूल वसंत काल में वायु के झोंकों से हिलती हुई शाखाएँ वन की ज्वाला के समान लग रहीं हैं और इनसे ढकी हुई धरती लाल साड़ी में सजी हुई कोई नववधू के समान लग रही हैं। पत्ते झड़े पेड़ अर्थात पर्णहीन वृक्ष पर लदे पलाश के लाल फूल देखने वालों को सुखद, नयनाभिराम और आकर्षक प्रतीत हो रहे हैं। छोटे अर्द्ध चंद्राकार गहरे लाल पलाश पुष्प मध्य फाल्गुण से ही जंगलों में दिखाई देने लगते हैं, जो चैत्र मास के अंत तक दिखाई देते हैं।
विलुप्त होने की कगार में पीला पलाश

जिले के जगंल में यूं तो केसरिया पलाश के पेड़ बहुतायतता में मौजूद हैं, लेकिन पीले पलाश के पेड़ बेहद कम नज़र आते हैं। पीला पलाश दुर्लभ हो गया है। कहीं लुप्त न हो जाए इसलिए संरक्षण मिलना जरूरी है। चित्रकूट के जंगलों से पीला पलाश(टेसू) लगभग खत्म हो चुका है। यदाकदा ही जंगलों मे पीला टेसू देखने को मिलता है। दुर्लभ किस्म के पीले फूलो के पलाश के पेड़ो को संरक्षण की दरकार हैं।अगर समय रहते वन विभाग द्वारा इसका संरक्षण नहीं किया गया तो इसकी प्रजाति पूरी तरह से खत्म हो जाएगी। जबकि चित्रकूट के जंगलों मे लाल टेसू बहुतायत मात्रा मे पाया जाता है। जब कोई पीला पलाश का पेड़ नजर आता हैं, इसे दुर्लभ माना जाता है। प्रत्येक वर्ष वन विभाग द्वारा बड़े एरिए मे वृक्षारोपण कराया जाता है। लेकिन इस विलुप्त प्रजाति के औषधिय गुणों से भरपूर पौधों के संरक्षण के दिशा मे बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया जा रहा है। अगर समय रहते पीले टेसू के संरक्षण को लेकर जिम्मेदारों द्वारा प्रभावी कदम नहीं उठाए गए तो बचेकुचे पीले पलाश को पूरी तरह से खत्म होने से कोई नहीं रोक पाएगा।
तराई क्षेत्र मे यदाकदा नजर आता पीला टेशू
रानीपुर टाइगर रिजर्व से सटे मध्य प्रदेश क्षेत्र के मझगवां वनपरि क्षेत्र के जंगलों मे पीला टेसू विरला ही दिखता है। बुंदेलखंड के चित्रकूट के जंगलों से अधिक मझगवां के जंगल मे पीला टेसू दिखता है। जिसे संरक्षण की दरकार है। अगर इसका संरक्षण नहीं किया गया तो जल्द ही खत्म हो सकता है।