पटना फिर बना पॉलिटिक्स का एपीसेंटर
पटना: ऐतिहासिक गांधी मैदान जहां तपती दोपहर में जून के ही महीने में 49 साल पहले जयप्रकाश नारायण ने संपूर्ण क्रांती की घोषणा की थी। खराब हो चुकी व्यवस्था के खिलाफ सबसे जबरदस्त हुंकार का मैदान। राजनीतिक या सियासी संघर्ष के दौर की ऐसी तपोभूमि जिसके गर्भ से इतिहास की धाराएं फूटती रही हैं। जून के ही महीने में 45 डिग्री सेल्सियस के साथ पटना एक बार फिस से तपिश को महसूस कर रहा है। लेकिन मौसम के साथ ही सियासी सरगर्मी भी पारा को और बढ़ा रही है। ये और बात है कि इस बार हुकूमत के खिलाफ आवाज बुलंद गांधी मैदान की बजाए मुख्यमंत्री आवास से हो रहा है। जेपी के चेले ने बीजेपी को सत्ता से हटाने के लिए इंदिरा गांधी वाली पार्टी कांग्रेस के साथ कदमताल करती नजर आ रही है।
पटना में मोदी रोको मोर्चे का मेला शुरु हुआ
क़रीब 18 विपक्षी दलों की यह बैठक पटना में बिहार के मुख्यमंत्री आवास एक अण्णे मार्ग में रखी गई। राहुल गांधी के साथ पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और केसी वेणुगोपाल हैं। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन और ममता बनर्जी तो एक दिन पहले ही पहुंच चुके थे। अरविंद केजरीवाल, पंजाब के सीएम भगवंत मान और राज्यसभा सांसद संजय सिंह, झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन पटना पहुंचे। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और महाराष्ट्र के पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे भी पटना पहुंचे। एनसीपी प्रमुख शरद पवार विपक्षी नेताओं की बैठक में शामिल होने के लिए बिहार के पटना पहुंच गए। इस बैठक में फारुख अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती, और सीताराम येचुरी भी शामिल होंगे।पटना फिर बना सियायत का एपीसेंटर
पटना को विपक्षी एकता की बैठक के लिए चुने जाने के पीछे कई वजहें हैं। 1974 के आंदोलन के जरिए जेपी ने सड़क से संसद को डिगाया और देश की सत्ता पलट दी। इसके अलावा साल 2015 का वो अनूठा प्रयोग जब नीतीश कुमार ने अपराजेय मानी जाने वाली मोदी की सेना के खिलाफ विपक्षी दलों का महागठबंधन बनाकर विधानसभा चुनाव में बीजेपी की ताकत को हवा हवाई कर दिया था। मौजूदा वक्त में भी बिहार में उसी महागठबंधन की सरकार चल रही है। इसमें कांग्रेस, जेडीयी, आरजेडी और वाम दल जैसी बड़ी पार्टियां शामिल हैं। इसके अलावा आपने हालिया वर्षों में देखा होगा कि कर्नाटक, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में सरकारें समय से पहले ही गिर गईं। वहीं बिहार को लेकर भी जेडीयू का आरोप था की आरसीपी सिंह के सहारे बीजेपी ऑपरेशन कमल को अंजाम देने की कोशिश कर रही थी। लेकिन नीतीश कुमार ने वक्त रहते इसे नाकाम कर दिया। यानी नीतीश कुमार को एक ऐसे नेता के तौर पर पेश किया गया, जिसने बीजेपी की तोड़-फोड़ की राजनीति को शिकस्त दी।
कौन देगा बलिदान?
नीतीश कुमार की पार्टी का मानना है कि अगर मोदी को हराना है तो बलिदान देना होगा और तमाम दलों को स्वार्थ त्याग एक होना होगा। लेकिन सबसे बड़ी बात की आखिर ये त्याग की बात 3800 किलोमीटर की भारत जोड़ो यात्रा निकालने वाले राहुल गांधी के लिए कही गई या फिर मोदी से और केंद्र से हर मुद्दे पर दो-दो हाथ करते केजरीवाल के लिए। बंगाल के विधानसभा चुनाव में तीसरी बार सत्ता में वापसी करती ममता दीदी के लिए या फिर शरद पवार और उद्धव ठाकरे के लिए।