न्याय की आस में भटकता रामशरन, तहसील दिवस बना मजाक, सिस्टम के जुल्म से टूटी आत्मा!

जन एक्सप्रेस चित्रकूट/मानिकपुर।“साहब! अब आत्मा थक गई है… लगता है अब कुछ कर लूं, क्योंकि न्याय यहां नहीं मिलेगा!” ये शब्द हैं खिचड़ी मजरा कलवलिया के रामशरन पुत्र राम सिया के, जो पिछले चार साल से तहसील के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन हकबंदी की नाप आज तक नहीं हुई। रामशरन का आरोप है कि 2020 से अब तक दर्जनों लेखपाल, कानूनगो, एसडीएम और डीएम बदले, लेकिन किसी ने उसकी सुध नहीं ली। हर बार एक ही जवाब—”आज नहीं, कल आना।”
तहसील दिवस या ठगी दिवस?
रामशरन ने बताया कि तहसील दिवस में अर्जी लगाई, फरियाद की, अधिकारियों से गुहार लगाई, लेकिन सबने सिर्फ कागजों पर आश्वासन दिया, जमीन पर कुछ नहीं हुआ। योगी सरकार की न्याय प्रणाली की उम्मीद लगाए बैठे इस ग्रामीण की आशाएं अब टूट चुकी हैं।
तहसील दिवस सिर्फ नाम का है, काम का नहीं! यहां न्याय नहीं, सिर्फ दौड़ाया जाता है!” – रामशरन की पीड़ा
जिम्मेदार कौन?
चार सालों में अगर एक जमीन की नाप नहीं हो पा रही है, तो क्या ये सिस्टम की नाकामी नहीं? जिम्मेदारी तय करने वाला कोई नहीं, जवाबदेही लेने को तैयार कोई नहीं। रामशरन जैसे सैकड़ों ग्रामीणों की आवाज इस सिस्टम में दबकर रह जाती है।
अब सवाल ये है:
क्या योगी सरकार के अफसर धरातल पर कुछ कर भी रहे हैं?
क्या तहसील दिवस सिर्फ दिखावा है?
और कितनी आत्माएं टूटेंगी तब जाकर कोई लेखपाल/कानूनगो जमीन नापेंगे?






