उत्तराखंड

अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस पर किया गोष्ठी का आयोजन

जन एक्सप्रेस श्रीनगर;अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस के अवसर पर हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग एवं राष्ट्रीय सेवा योजना के संयुक्त तत्वाधान में“मानवाधिकार और मानव स्वास्थ्य” विषय पर एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में शोधार्थियों, विद्यार्थियों एवं अध्यापकों ने मानवाधिकारों के विभिन्न आयामों पर विचार-विमर्श किया।कार्यक्रम की शुरुआत शोधार्थी गौरव पडियार के वक्तव्य से हुई। उन्होंने मानवाधिकारों की वर्तमान स्थिति पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मूलभूत स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव में मानवाधिकारों की कल्पना अधूरी है। उन्होंने स्वास्थ्य अधिकार को मानव गरिमा से सीधे जुड़ा हुआ बताया।बीएससी के छात्र अभिनव थपलियाल ने अंतर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय और व्यक्तिगत स्तर पर मानवाधिकारों की चुनौतियों पर चर्चा की। उन्होंने इज़राइल–फ़िलिस्तीन मुद्दे के संदर्भ में मानवाधिकार संरक्षण पर संयुक्त राष्ट्र की असंतोषजनक भूमिका की ओर ध्यान आकृष्ट किया।शोधार्थी ऋतिक ने मानवाधिकारों के विकास और स्वास्थ्य से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारत सरकार कई कार्यक्रमों के माध्यम से स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत बनाकर मानवाधिकारों को सुदृढ़ कर रही है।डॉ. सुभाष ने मानवाधिकारों की रक्षा में कर्तव्यों के पालन की महत्वपूर्ण भूमिका पर बल दिया और कहा कि यह नैतिकता पर आधारित होना चाहिए।डॉ. नरेश कुमार ने मानवाधिकारों के उदय में फ्रांसीसी क्रांति, अमेरिकी क्रांति और संयुक्त राष्ट्र की भूमिका पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य का अधिकार केवल संस्थागत सुविधाओं तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह एक व्यापक अवधारणा है। प्रत्येक व्यक्ति को स्वास्थ्य सेवाओं की समान पहुंच मिलनी चाहिए, चाहे वह किसी भी क्षेत्र में रहता हो।राष्ट्रीय सेवा योजना के कोऑर्डिनेटर डॉ. राकेश नेगी ने बताया कि मानवाधिकारों की आवश्यकता मानव द्वारा मानव के प्रति किए गए भेदभाव की उपज है। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार घोषणा के विभिन्न अनुच्छेदों को समझाते हुए मानवाधिकारों की बुनियादी रूपरेखा स्पष्ट की।अंत में प्रो. सेमवाल ने पर्यावरणीय प्रदूषण—वायु, जल एवं ध्वनि प्रदूषण—पर विस्तार से चर्चा की और आपदा प्रभावितों के अधिकारों पर प्रकाश डाला। उन्होंने एम सी महत्ता केस तथा अनुच्छेद 21 के तहत स्वच्छ पर्यावरण के अधिकार और दुर्घटनाग्रस्त व्यक्तियों को प्राथमिक उपचार प्रदान करने संबंधी प्रावधानों को विस्तार से समझाया। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत विभिन्न मानवाधिकारों से संबंधित वादों और उनके निर्णयों पर भी चर्चा की ।प्रो. सेमवाल ने यह भी बताया कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 केवल जीवन के अधिकार तक सीमित नहीं है, बल्कि वह गरिमामय जीवन की सुनिश्चितता का दावा भी करता है। जब जीवन सम्मान, स्वास्थ्य, स्वच्छ पर्यावरण और बुनियादी सुविधाओं से वंचित हो, तब मानवाधिकार अर्थहीन हो जाते हैं।इसलिए गरिमापूर्ण जीवन की स्थिति निर्मित करना ही मानवाधिकार व्यवस्था का केन्द्रीय उद्देश्य है।कार्यक्रम का संचालन नलनि जोशी ने किया।कार्यक्रम के दौरान वक्ताओं ने मानव स्वास्थ्य को मानवाधिकार के रूप में समझने और इसे सशक्त बनाने की दिशा में सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता पर बल दिया।

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