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शीलू ने गाई आल्हा-ऊदल के शौर्य की वीरगाथा, बारिश के बावजूद,देर रात तक डटे रहे श्रोता 

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जन एक्सप्रेस/संवाददाता 

रामनगर-बाराबंकी। शीलू सिंह राजपूत आल्हा गायन में वीर रस का एक नया अध्याय लिख रही है। यूं तो इस गायन में पुरुषों का एकाधिकार था। लेकिन शीलू आल्हा गायन में महिलाओं के लिए मिशाल और वीर रस की नई वीरांगना बन गई है। मंगलवार को नगर पंचायत रामनगर के चेयरमैन रामशरण पाठक द्वारा आयोजित आल्हा गायन कार्यक्रम में शीलू अपना कौशल दिखा रही थी। ढोलक, झांझर और मंजीरे की संगत में शीलू ने जब आल्हा गायन शुरू किया तो कार्यक्रम में मौजूद प्रत्येक व्यक्ति जोश से भर उठा। यहां सैकड़ों की संख्या में लोग एकत्रित रहे।

हालांकि सुबह से देर रात तक हुई लगातार रिमझिम बारिश से इस बार के कार्यक्रम में पिछली बार हुए कार्यक्रम की तुलना में कम लोग एकत्रित हुए। लेकिन आल्हा गायन में रुचि रखने वाले सैकड़ों की संख्या में लोग बारिश के बावजूद भी सुनने के लिए डटे रहे। उनके द्वारा गाई गई आल्हा ऊदल की शौर्य वीर गाथा और जैसे जली थी लंका, वैसे पाकिस्तान जलाना है। सहित अन्य लोक गीतों को लोगों ने खूब सराहा और जमकर तालियां बजाई। आल्हा में रुचि रखने वाले प्रभारी निरीक्षक सुरेश पांडेय ने भी कार्यक्रम में पहुंचकर आल्हा गायन का लुत्फ उठाया।

 “खट खट खट खट तेगा बाजे बोले छपक छपक तलवार चले जुनब्बी औ गुजराती ऊना चले बिलायत क्यार।” बुंदेली भाषा में लिखे और गाए गए इस आल्हा में शौर्य के प्रतीक दो भाइयों आल्हा और ऊदल को युद्ध में लड़ते हुए बताया है। आल्हा गीत के इस छंद में यह बताया गया है कि दोनों भाई युद्ध करते हुए तेज़ी से अपनी तेगा (लंबी तलवार) चलाते हैं। युद्ध में इस्तेमाल होने वाली भारतीय (जुनब्बी और गुजराती) तलवारें ऐसी चलती हैं, कि उनके आगे विदेशी तलवारे भी कम लगती है।

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