आपातकाल जैसी दहशत हमने कभी नहीं देखी : रामगोविन्द चौधरी

बलिया । 25 जून, 1975 को देश में लगाया गया आपातकाल का दौर काफी भयावह था। वैसा दहशत का दौर हमने कभी देखा नहीं था। लोगों पर जुल्म की इंतेहा की गई। ये कहना है आपातकाल के दौरान मीसा बंदी रहे यूपी विधानसभा में पूर्व नेता प्रतिपक्ष रामगोविन्द चौधरी का। उन्होंने आपातकाल के दौर की कहानी हिन्दुस्थान समाचार से शनिवार को साझा की।
आठ बार विधायक रह चुके रामगोविन्द चौधरी जेपी आंदोलन के अगुआ छात्रनेता रहे। उन्होंने आपातकाल से पहले जेपी का आंदोलन चल रहा था। जो देश में मंहगाई, भ्रष्टाचार व बेरोजगारी के खिलाफ गुजरात विद्यापीठ से शुरू हुआ था। जिससे सरकारी डरी हुई थी। तब मोरारजी देसाई छात्रों के पक्ष में 21 दिन तक अनशन पर बैठे थे। लेकिन सरकार सुनने को तैयार नहीं थी। जिसके बाद छात्र जयप्रकाश नारायण के पास आंदोलन की अगुवाई करने के लिए गए। जेपी इस शर्त पर आंदोलन की अगुवाई करने पर तैयार हुए कि हिंसा नहीं होगी। इसके बाद छात्र युवा संघर्ष समिति बनाकर आंदोलन प्रारंभ हुआ। इसका केन्द्र बिहार था। आंदोलन धीरे-धीरे पूरे देश में फैलने लगा। बलिया भी उससे अछूता नहीं था। आंदोलन जैसे-जैसे चरम की ओर बढ़ता गया। इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगा दी। यह देश के लिए काला दिन था। मीडिया से लेकर न्यायालय तक सभी पर प्रभाव डाला गया। लोगों की स्वतंत्रता छीन ली गई।
कई दिन भूखे रहकर चलाया था आंदोलन
रामगोविन्द चौधरी ने कहा कि जेपी के आंदोलन में जो शामिल था वो और जो नहीं शामिल था वह भी जेल में डाल दिया गया। हमलोगों ने बड़ी कठिनाई से आंदोलन चलाया था। कई-कई दिन भूखे रहते थे हमलोग।
उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विजयबहादुर सिंह के घर जाकर हमलोग एक सुबह सत्तू खाए। सत्तू खाने के बाद हमलोग द्वाबा (अब बैरिया) में पम्फलेट बांटने गए। बीच में मझौवा में जनसंघ के नेता सुधाकर मिश्रा के घर लिट्टी-चोखा खाने का कार्यक्रम तय हुआ। हमलोग पम्फलेट बांट कर आए तो वहां कोई नहीं था। हम सभी भूखे ही वहीं सो गए। इसके बाद हमारे साथी त्रिलोकी पाण्डेय ने तब के बड़े भूमिधर रामकृष्ण मिश्रा के यहां चलकर भोजन करने के लिए कहा। पंद्रह किलोमीटर कीचड़ हेल कर हम रामकृष्ण मिश्रा के यहां पहुंचे। खाना बनने लगा और उसकी खुशबू भी आने लगी। हमने वहां पम्फलेट भी गिराए। तभी वहां एक वकील साहब आए तो पम्फलेट और भोजन बनता दिखा तो रामकृष्ण मिश्रा के भाई से पूछा कि ये कौन लोग हैं। उन्होंने जवाब दिया कि ये छात्रनेता रामगोविन्द चौधरी हैं। उन्होंने तेज आवाज में कहा कि रामकृष्ण तो पहले ही जेल चले गए हैं अब घर भी खुदवाने का इरादा है क्या? बंद करो खाना बनाना। किसी तरह से हमने मक्के का भात व थोड़ी सी दाल खाकर रात बिताई। इसके बाद हल्दी होते हुए हम बलिया आये और चार-पांच बैठकें कराई। इसी बीच आंदोलन के राष्ट्रीय नेतृत्व से खबर मिली कि कॉलेज और स्कूल बंद कराने हैं। काफी भय के वातावरण में भी हमने टीडी कालेज बंद कराया। तभी पुलिस पहुंची और हमें कोतवाली ले जाकर इतना मारा कि हम बेहोश हो गए। हमें जेल में डाल दिया गया।
जेल में रहते हुए भी रामगोविन्द चौधरी पर दर्ज हुए थे 48 मुकदमे
रामगोविन्द चौधरी ने खुद पर बीती यातनाओं को याद करते हुए बताते हैं कि जेल में रहने के दौरान भी मुझ पर 48 मुकदमे दर्ज किए गए थे। आपातकाल में पुलिस ने इतना आतंक फैलाया कि लोगों की रूह कांप जाए। कई लोग तो जेल में ही मर गए। आलम यह था कि हमलोग जेल से कचहरी आते थे तो लोग अपना मुंह पीछे कर के भाग जाते थे। ताकि पुलिस यह न देख पाए कि बंदियों से जान पहचान है। लेकिन हम सौ डेढ़ सौ बंदी कचहरी जाते समय खूब नारे लगाते थे। उन्होंने बताया कि आंदोलनकारियों की कुर्की के समान लूट लिए जाते थे। मेरे घर भी कुर्की हुई थी। जेल में बंद काफी लोग माफीनामा देकर चले गए। कुछ लोग डर के मारे आंदोलन से हट गए। लेकिन हमलोग जमानत की अर्जी भी नहीं लगाए। उस समय के रेडियो को हमलोगों ने इंदिरा रेडियो नाम दिया था। क्योंकि रेडियो वही बोलता था जो इंदिरा गांधी चाहती थीं।
रामगोविन्द चौधरी ने आपातकाल को याद करते हुए बताया कि जेल में बंद बाकी लोग 21 मार्च 1977 को जेल से छूट गए लेकिन मैं, ठाकुर जगन्नाथ सिंह, रामविलास सिंह व कुछ और साथी जेल में ही रह गए। इनमें से भी मैं अकेले लोकसभा चुनाव के दौरान उस वक्त जेल से छूटा। जब चन्द्रशेखर अपना नामांकन करने बलिया आये। चन्द्रशेखर कचहरी में अधिवक्ताओं की एक मीटिंग ले रहे थे, उसी दौरान मैं जेल से बाहर आया था। मेरे साथ सैकड़ों लड़के चल रहे थे। मुझे चन्द्रशेखर ने बुलवाया। बाद में रामलीला मैदान की एक सभा में चन्द्रशेखर ने मुझे मंच पर बुलाया तो सामने जुटी भीड़ देख मैं हैरान रह गया कि करीब दो वर्ष बाद मुझे इतनी दूर तक दिख नहीं रहा था। क्योंकि जेल में लंबे समय तक काफी कम दूरी ही देख सका था। भीड़ से चन्द्रशेखर ने कहा कि इस छात्रनेता को यह क्रूर सरकार आज जेल से छोड़ रही है।