वाराणसी

ब्रह्मलीन जगदगुरु शंकराचार्य स्वरूपानन्द सरस्वती का मनाया गया 100वां अवतरण दिवस

वाराणसी ब्रह्मलीन ज्योतिष एवं द्वारकाशारदापीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती का 100वां अवतरण दिवस सोमवार को केदारघाट स्थित श्रीविद्यामठ में मनाया गया। सुबह 09 बजे से ब्रह्मलीन शंकराचार्य की चरण पादुका का पूजन किया गया। वैदिक विधि से पूजन अर्चन के बाद आरती हुई। इस अवसर पर आयोजित धर्मसभा में वक्ताओं ने ज्योतिष एवं द्वारकाशारदापीठाधीश्वर के विशाल व्यक्तित्व को याद कर कहा कि महाराज स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी थे । उन्होंने स्वतन्त्रता संग्राम में दो बार कठोर करावास की सजा काटी और अकेले दम पर एक पूरा गांव अंग्रेजों से खाली करा दिया था।

अंग्रेज उन्हें क्रांतिकारी साधु के नाम से पहचानते थे। वक्ताओं ने कहा कि चौदह वर्ष की अवस्था में संन्यास ग्रहण करने के पश्चात ब्रम्हलीन शंकराचार्य ने अपना पूरा जीवन सनातनधर्म के लिए समर्पित कर दिया था। वक्ताओं ने कहा कि द्विपीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने तत्कालीन प्रधानमंत्री अब स्वर्गीय राजीव गांधी से कहकर राम मंदिर का ताला खुलवाया और राम मंदिर के लिए रामालय ट्रस्ट का गठन किया था। इसके बाद उन्होंने राष्ट्र के समस्त धर्माचार्यों को एक मंच पर लाकर राम मंदिर के लिए ऐतिहासिक संघर्ष किया। अपने अधिवक्ता पी.एन. मिश्रा के माध्यम से राम जन्म भूमि व राम मंदिर का मुकदमा लड़कर व वर्तमान ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती से अकाट्य गवाही दिलवाकर राम जन्मभूमि व राम मंदिर का फैसला हिदुओं के पक्ष में करवाया। वक्ताओं ने कहा कि रामसेतु को टूटने से बचाने के लिए ब्रह्मलीन शंकराचार्य महाराज ने कठिन संघर्ष किया।

राष्ट्र के समस्त धर्माचार्यों को दिल्ली के जंतर मंतर में एकत्र कर ऐतिहासिक धर्मसभा का आयोजन किया। जिसमें सभी शंकराचार्यों सहित सभी प्रमुख धर्माचार्य व धर्मप्राण सनातनी जनसमुदाय उपस्थित था। स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज के इच्छा व आदेश से गंगा जी को राष्ट्रीय नदी घोषित कराने क लिए राष्ट्रव्यापी ऐतिहासिक धर्मान्दोलन का बिगुल फूंका गया। इसी तरह धर्मसम्राट स्वामी करपात्री ने जब दिल्ली में गौरक्षा आंदोलन किया था, उस समय उस आंदोलन में द्विपीठाधीश्वर स्वामी स्वरूपानंद ने मुख्य भूमिका का निर्वहन किया था ।

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