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गाजियाबाद में भाजपा संगठन बनाम प्रशासन: सत्ता के भीतर उठते असंतोष के सुर

शैलेश पाण्डेय
जन एक्सप्रेस/ गाजियाबाद: सत्ता दल के नेताओं की चाहत परवान चढ़ने से पहले ही प्रशासन के उठाए कदमों से धूल धूसरित हो रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में जिस प्रकार से शासन प्रशासन में अधिकारियों की चल रही उसको लेकर विपक्ष के साथ साथ भाजपा के नेता भी नाराज़ है ।अपने ही दल के केंद्र और राज्य दोनों में शासन होने के बाद भी प्रशासन के बैठे अधिकारियों के कार्यशैली के खिलाफ जिले से लेकर प्रदेश तक असंतुष्ट नेताओं की संख्या लगातार बढ़ने लगी है। उनमें से कुछ तो सत्ता पक्ष के विधायक होने के बाद भी जमकर प्रशासनिक अधिकारियों के खिलाफ बयान देने में लगे है । जिससे जनता में यह सीधा संदेश जा रहा है कि नेताओं की नहीं अब अधिकारियों की चलती है। जनता समस्याओं के लिए अब नेताओं की जगह खुद अधिकारियों के पास सीधे जाना पसंद करने लगी है। जनपद गाजियाबाद में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है । महापौर हो या विधायक अंदरखाने अपनी ही सत्ता में अपने अधीनस्थ अधिकारियों की कार्यशैली से असंतुष्ट हैं। जनपद में जिस प्रकार से अधिकारियों ने पूरे प्रशासन को अपने शक्ति के अधीन किया है , उससे राजनेताओं के अपनी राजनीतिक वर्चस्व और दबाव की राजनीति के मंसूबे विफल साबित होने की साजिश लगने लगी है। गाजियाबाद की राजनीति में कुछ ऐसे मामले रहे हैं जो खूब सुर्खियों में तो रहे लेकिन प्रशासनिक अधिकारियों के हनक के आगे अपनी सत्ता के बाद भी कद्दावर पद पर होने के बाद भी नेताओं को मुंह की खानी पड़ी ।

सुनीता दयाल

सुनीता दयाल महापौर बनाम विक्रमादित्य मालिक निगमायुक्त
गाजियाबाद नगर निगम का चुनाव सर्वाधिक मतों और भारी संख्या वाले पार्षदों का नेतृत्व करने वाली महापौर सुनीता दयाल और निगमायुक्त विक्रमादित्य सिंह मलिक के बीच विवाद सुर्खियों में रहा । मामला यहां तक पहुंचा कि निगमायुक्त को अपने मातहतों को निर्देश तक जारी करने पड़े कि महापौर के पति को बिना उचित अनुमति के फाइले नहीं दिखाई जाय , क्योंकि यह सरकारी गोपनीयता अधिनियम 1923 का उल्लंघन है। इससे कुपित महापौर को बयान देना पड़ा कि उनके पति की निगम के कार्यों के कोई हस्तक्षेप नहीं है। तब से शुरू हुई तकरार आज तक जारी है। निगमायुक्त का जलवा आज भी कायम है। जबकि भाजपा नेताओं की खीझ लगातार बढ़ रही है। जिसका परिणाम यह है कि निगम में अधिकारियों के कार्य शैली की शिकायत बेअसर साबित हो रही है।इससे पहले महापौर बनते ही सुनीता दयाल का स्वास्थ्य अधिकारी डॉ मिथिलेश कुमार के खिलाफ दिल्ली का कूड़ा गाजियाबाद में डंप करने को लेकर सख्त तेवर अपनाए उनके खिलाफ कार्यवाही तक की बात कही । मामला सुर्खियों में भी खूब रहा लेकिन महापौर के असंतुष्ट होने के बाद भी अधिकारी का बाल बांका नहीं हो सका ।

पुलिस कमिश्नर अजय मिश्र बनाम विधायक नन्द किशोर गुर्जर
कमिश्नरेट के गठन के बाद और पहले कमिश्नर के रूप पदस्थ अजय कुमार मिश्र ने जिस तरह से पुलिस विभाग के पैटर्न को बदला उससे ना सिर्फ पुलिस विभाग की कार्यशैली परिवर्तित हुई वरन उसके सकारात्मक परिणाम सबने महसूस किया । अपने अभिनव प्रयोग और इसी बेबाकी के कारण राजनीतिक दलों के लगातार निशाने बनते चले गए । जिसमें गाजियाबाद के लोनी विधायक नन्द किशोर गुर्जर सबसे पहले मुखर होकर सत्ता पक्ष का होने के बाद भी उपेक्षा के आरोप लगाने लगे । गनर हटाने के आरोप लगाने से शुरू हुई रार किसी भी कानून व्यवस्था के मुद्दे पर जिला पुलिस के ऊपर फूटने लगा । जिले में गौकशी का मामला हो या अवैध वसूली का सबसे पहला बयान विधायक का आता है। जो मिडिया के लिए मसाला साबित होता है ,लेकिन यह संगठन के लिए सिरदर्द और विपक्ष के लिए मुद्दा ।
पहले टर्म की योगी सरकार में विधानसभा सत्र के दौरान सैकड़ो भाजपा विधायकों के असंतोष उभरने की घटना और शासन और संगठन के बीच व्यवस्था का प्रश्न बन जाना उसके केंद्र में नंद किशोर गुर्जर बने रहना उनके राजनीतिक रसूख को प्रभावित किया । जिसके कारण उनके राजनीतिक कद बढ़े जरूर लेकिन वर्तमान परिवेश में उनके रसूख आज पुलिस प्रशासन के सामने ठंडे पड़े हुए हैं। जिसका असर यह है कि पुलिस के खिलाफ मामलों में सबसे ज्यादा मुखर लोनी विधायक ही रहते हैं। पिछले दिनों बागपत जिले की महिला भाजपा नेत्री की शिकायत को लेकर खूब हाई वोल्टेज ड्रामा हुआ लेकिन पुलिस ने जिस प्रकार से मामले में तथ्य रखकर पूरे मामले को ठन्डे बक्से में डालकर कानूनी कार्यवाही को पुष्ट किया उससे भी विधायक की तल्खी बढ़ी है। चार चार विधायक साथी और अब एक मंत्री का सहयोगी होने के बाद भी सुनवाई क्यों नहीं हो पा रही अब जनता भी जानने लगी है।

महानगर युवा मोर्चा अध्यक्ष बनाम पुलिस
अब नए मामले में इंदिरापुरम कोतवाली द्वारा खोड़ा भाजयुमो के मंडल अध्यक्ष अनुज कसाना के खिलाफ गैंगस्टर एक्ट लगाकर जेल भेजना और कार्यवाही सार्वजनिक करना मुद्दा बन गया है। जबकि इस मामले में धरना प्रदर्शन पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बना । नव निर्वाचित विधायक सदर और महानगर अध्यक्ष संजीव शर्मा और भाजपा नेताओं की पुलिस प्रशासन से हुई वार्ता में शाम तक पुलिस चौकी प्रभारी के खिलाफ़ कार्यवाही का अल्टीमेटम और निष्पक्ष जांच की मांग के बाद भले धरना समाप्त हो गया लेकिन देर शाम पुलिस की जारी विज्ञप्ति और गैंगस्टर में हुई कार्यवाही आग में घी का काम कर दिया । लेकिन पुलिस ने अपने मंसूबे भी दिखा दिया कि कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी अगर है, तो उसको बिना दबाव करके दिखा भी देगा ।

उदिता त्यागी और यति नरसिंहानन्द गिरी
डासना शिव शक्ति धाम के महंत और जुना अखाड़े के महामंडलेश्वर यति नरसिंहानन्द गिरी द्वारा धर्म संसद की अनुमति को लेकर विवाद भी सुर्खियों में रहा । जिसमें भाजपा नेत्री उदिता त्यागी को कौशांबी थाने तक जाकर जवाब देना पड़ा । धर्म संसद पर अड़े महंत की जिद्द और मंसूबे पुलिस प्रशासन ने ऐसा तोड़ा कि इन्हें उत्तरांचल राज्य में जाकर यज्ञ करके अपनी बात कहनी पड़ी । आजतक तक यति नरसिंहानन्द गिरी और पुलिस के बीच छत्तीस का आंकड़ा है ।

यति नरसिंहानन्द

भाजपा को याद आ रहा सपा बसपा का शासन
भले ही भारतीय जनता पार्टी के नेता सपा बसपा के खिलाफ़ बोलकर उनके कानून व्यवस्था और नीति को लेकर दुबारा सत्ता में काबिज़ हुई हो लेकिन संगठन के नेता और सक्रिय कार्यकर्ता आज भी समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के शासन में नेताओं के राजनीतिक रसूख को याद करते हैं। जहां जिलाध्यक्ष और मंडल का अध्यक्ष भी थाना पुलिस से लेकर प्रशासनिक अधिकारी तक जनता के समस्याओं को रखकर अपनी बात भारी कर लेता था । लेकिन भारतीय जनता पार्टी के ट्रिपल इंजन वाली सरकार में भी बड़े बड़े नेता और भारी भरकम पद हासिल करने के बाद भी नेता थाने की राजनीति में फीसड्डी साबित हो रहे हैं। आज उनको समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के दिन याद आ रहे है । जबकि यही भाजपा नेता बाहर अनुशासन और कानून की बात कहकर सच्चाई से कन्नी काटकर निकलते दिखते हैं।

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