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अमेठी में तीन कार्यों के आवंटन में घोटाले का आरोप: सुविधा शुल्क के नाम पर भ्रष्टाचार की पोल खुली

 

जन एक्सप्रेस। राज्य मुख्यालय

उत्तर प्रदेश के अमेठी जिले में जिला पंचायत द्वारा 15 अक्टूबर 2024 को आयोजित ई-टेंडर के माध्यम से 179 कार्यों के आवंटन में एक गंभीर घोटाले का आरोप सामने आया है। दुर्गन भवानी इंटरप्राइजेज, जो कि गौरीगंज स्थित एक प्रतिष्ठित फर्म है, को इन कार्यों में से तीन प्रमुख कार्य सौंपे गए थे। लेकिन फर्म की संचालिका किरन अग्रहरि ने आरोप लगाया है कि विभागीय अधिकारियों ने उन्हें जानबूझकर काम में देरी करने के साथ-साथ सुविधा शुल्क के रूप में 10 प्रतिशत अतिरिक्त रकम जमा करने की मांग की।

क्या है पूरा मामला?

किरन अग्रहरि के अनुसार, उनकी फर्म ने 02 दिसंबर 2024 को एग्रीमेंट के लिए सभी जरूरी दस्तावेज और एफडीआर विभाग को सौंपे थे, लेकिन महीनों तक कोई कार्रवाई नहीं की गई। जब उन्होंने कई बार कार्यालय में जाकर स्थिति की जानकारी ली, तो अधिकारियों ने स्पष्ट रूप से कहा कि एग्रीमेंट तब ही होगा, जब वह पीयूष ट्रेडर्स, प्रो० अशोक सिंह के पास 10 प्रतिशत का अतिरिक्त शुल्क जमा करें। किरन अग्रहरि के अनुसार, जब उन्होंने इस असंवैधानिक और अवैध मांग का विरोध किया, तो उन्हें वापस भेज दिया गया और उनके काम में कोई प्रगति नहीं हुई।

किरन ने यह भी बताया कि उनके पति रामजी अग्रहरि को विभागीय अधिकारियों ने धमकी दी कि बिना इस शुल्क को जमा किए उनके कार्यों को नहीं शुरू किया जाएगा। यह पूरी प्रक्रिया न केवल भ्रष्टाचार की ओर इशारा करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि किस तरह से सरकारी सिस्टम में भ्रष्टाचार और अवैध मांगों को बढ़ावा दिया जा रहा है।

टेंडर की रद्दीकरण और भ्रष्टाचार की जड़

किरन अग्रहरि ने बताया कि इस अवैध शुल्क के विरोध के बाद विभाग ने उनका टेंडर कैंसिल कर दिया और 10 जुलाई 2025 को नई निविदा जारी कर दी। इस स्थिति ने पूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी और सरकारी सिस्टम में फैले भ्रष्टाचार को उजागर किया है। उनका आरोप है कि विभागीय अधिकारियों ने जानबूझकर काम में देरी की, ताकि इस तरह के अतिरिक्त शुल्क की मांग की जा सके और इस भ्रष्टाचार में अपने हिस्से का लाभ उठाया जा सके।

उच्चस्तरीय जांच की मांग

किरन अग्रहरि ने जिलाधिकारी अमेठी से अपील की है कि इस मामले की गंभीरता को समझते हुए इसे उच्च स्तर पर जांचा जाए और दोषियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाए। उन्होंने कहा, “मैंने सभी नियमों का पालन किया, लेकिन मुझे सिर्फ चक्कर काटने के लिए मजबूर किया गया। विभागीय अधिकारियों द्वारा अवैध मांगों के कारण मेरी फर्म को भारी नुकसान हो रहा है। मैं चाहती हूं कि इस मामले में उच्चस्तरीय जांच हो और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए।”

सरकारी सिस्टम पर सवाल उठते हैं

यह मामला उत्तर प्रदेश सरकार की ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति की पोल खोलता है, जो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भ्रष्टाचार के खिलाफ कठोर कार्रवाई का दावा करती है। अगर इस मामले में दोषियों के खिलाफ कोई ठोस कदम नहीं उठाया जाता, तो यह सरकार की भ्रष्टाचार विरोधी नीतियों की गंभीर विफलता को साबित करेगा। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या सच में सरकार अपनी नीति पर ईमानदारी से अमल करती है, या फिर सरकारी अधिकारियों का भ्रष्टाचार उसी गति से बढ़ रहा है, जैसा पहले था।

किरन अग्रहरि का यह मामला एक बड़े भ्रष्टाचार के उदाहरण के रूप में सामने आता है, जिसमें न केवल भ्रष्टाचार के कई पहलू हैं, बल्कि आम नागरिकों और व्यापारियों के लिए यह एक बड़ा उदाहरण बन गया है कि किस तरह से सिस्टम में भ्रष्टाचार की जड़ें गहरी हैं और कैसे एक ईमानदार व्यक्ति को अपने कानूनी अधिकारों के लिए संघर्ष करना पड़ता है।

क्या होगी न्याय की उम्मीद?

अमेठी जिले में इस तरह की घटनाओं के बाद अब उम्मीद जताई जा रही है कि जिला प्रशासन और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार इस मुद्दे पर गंभीर कदम उठाएगी। इस मामले में यदि उचित कार्रवाई होती है और दोषियों को सजा मिलती है, तो यह न केवल आम जनता के लिए एक अच्छा उदाहरण बनेगा, बल्कि सरकारी सिस्टम में सुधार की दिशा में एक कदम और बढ़ेगा।

किरन अग्रहरि की अपील को लेकर अब लोगों का ध्यान इस ओर है कि क्या प्रशासन अपनी जिम्मेदारी निभाएगा और भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी सख्ती दिखाएगा, या फिर यह भी एक और मामले के रूप में दबा दिया जाएगा।

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