उत्तर प्रदेशचित्रकूटधर्म

‘राजधर्म में साधु और संतों की राय जरूरी’ आचार्य रामचन्द्र दास “जय महाराज” 

जन एक्सप्रेस/संवाददाता 

चित्रकूट। आचार्य रामचन्द्र दास (उत्तराधिकारी-पद्मविभुषण जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य जी महाराज) ने कहा, ”रामचरितमानस में राजधर्म बताया गया है. राजनीति और राजधर्म अलग है. राजनीति में साम, दाम, दंड, भेद आते हैं. राजधर्म में इनमें से कुछ नहीं आता है. राजधर्म वो है, जिसमें सबसे पहले साधु का मत लिया जाता है, फिर लोक का मत लिया जाता है. हम सनातन के मानने वाले हैं तो वेद का मत लिया जाए. रामायण और महाभारत से भी मत लें. ये चार चीज जिसमें मिलें, उसे राजधर्म कहते हैं.” उन्होंने कहा कि संविधान सनातन की छाया में होना चाहिए. उन्होंने कहा, भारत में सनातन पहले फिर संविधान होना चाहिए।

उन्होंने कहा कि जिस तरह से श्रीराम जन्मभूमि को मुक्त कराया है, अब उसी तरह से काशी के साथ मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि को मुक्त कराएंगे।

आचार्य रामचन्द्र दास ने कहा कि देश में सनातन धर्म का अपमान हो रहा है। कुछ लोग और राजनीतिक दल अपनी राजनीति चमकाने के लिए रामायण जैसे पवित्र ग्रंथ का अपमान कर रहे हैं। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

आचार्य रामचन्द्र दास जी ने कहा कि मानव को अपने जीवन की डोर राम जी के हाथों में छोड़ देनी चाहिए। प्रभु सबका कल्याण करते हैं, भगवान एक क्षण में बिगड़ी बना देते हैं। इसलिए मानव को अहंकार त्याग कर प्रभु की भक्ति करनी चाहिए।

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