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खेत की जमीन में पड़ी दरार, सूख रही फसल, रो रहा किसान

जन एक्सप्रेस/शोभित शुक्ला

बाराबंकी। अगर पंचांग पर विश्वास करें तो बरसात के कई नक्षत्र बीत चुके है। अब पुख्य नक्षत्र चल रहा है। वर्षा होने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे है। किसान परेशान है, इतना ही नहीं किसान खेतों में जाकर जब दुर्दशा देखता है तो तो उसका माथा पसीने और चिंताओं की लकीरों से भर जाता है।

ऐसे में बस किसान सिर पर हाथ रख कर रोने को मजबूर है। वैसे तो खरीफ फसल के लिए बरसात का होना अति आवश्यक है। बिना पानी ना तो खेतों में धान की रोपाई हो सकती है और ना ही फसलें पनप सकती है। पंचांग के मुताबिक वर्षा ऋतु के कई नक्षत्र बीत चुके है। जिनमे बरसात अधिक होने की आस लगाए किसान बैठे थे। लेकिन बरसात शून्य रही। धान की नर्सरी सूखने लगी तो किसानों ने पंपिंग सेट का इस्तेमाल शुरू किया।

किसानों ने सोचा किसी तरह रोपाई कर ले फिर तो इंद्र भगवान रहम करेंगे ही। लेकिन ऐसा भी होता नहीं दिख रहा। कहावत है “का बरसा जब कृषि सुखानी” जैसी पंक्तियों को चरितार्थ करने का काम इन दिनों पूर्वी उत्तर प्रदेश का मौसम कर रहा है। राज्य मुख्यालय लखनऊ से लेकर बिहार राज्य तक के आखिरी गांव में मौसम लगभग एक जैसा है। यहां बीते एक हफ्ते से बारिश नहीं हुई है। लगभग एक हफ्ते पहले हुई बारिश से जिन किसानों के चेहरे खिल उठे थे। आज उन्हीं किसानों के चेहरे फिर से मुरझा गए है। किसान खेत में पड़ रही दरारों को देखकर अपना हाथ सिर पर रखकर भगवान से अच्छी बारिश की आस लगाए बैठे हुए है। किसान तुलसीराम एक कहावत सुनाते है जाकर बना आशढबा, ताकर बारह मास। मसलन जिस किसान ने आषाढ़ में अच्छी उपज हासिल कर ली उसे साल भर रोना नहीं पड़ेगा। लेकिन इस बार बरसात ना होने से कुछ ऐसा ही लग रहा है।

तहसील रामनगर के ग्राम मीतपुर के किसान बाबूलाल बताते है कि पिछले एक हफ्ते से बारिश के न होने से खेत में दरारे पड़ने लगी है। पौधों ने भी मुरझाना शुरू कर दिया है। जिसके चलते किसानों की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही है। वह बताते हैं कि किसी तरह पानी की व्यवस्था कर धान की रोपाई तो कर दी गई लेकिन अब फसल पर संकट मंडरा रहा है। इस सूख रही धान की फसल को बचाने के लिए हमें कोई उपाय नहीं सूझ रहा है। पिछले साल की तुलना में इस बार शुरुआती दौर में बारिश तो अच्छी हुई लेकिन अब बारिश के एकाएक रुक जाने से फसलें बर्बाद हो रही है। ऐसे में सबसे ज्यादा दिक्कत उन सीमांत किसानों को हो रही है। जिनके पास खेती का रकबा बहुत कम है। वह पंपिंग सेट से महंगी सिंचाई करने में पूर्णतया असमर्थ है। जिसके चलते उनकी फसल बर्बाद होने के कगार पर है।

खेतों की सिंचाई नहीं संभव

इसी गांव के किसान सुधीर त्रिवेदी, मंसाराम व कैलाश रावत बताते हैं कि बारिश की कमी से धान की फसल पर संकट के बादल छाए हुए है। पिछले दिनों में हुई जोरदार बारिश से सूखे पेड़ खेतों में नमी आते ही खरपतवार आना शुरू हो गया है। अब खेत की सिंचाई के साथ-साथ मजदूर लगाकर खेत की निराई भी करानी पड़ेगी। ऐसे में बारिश ना होने के कारण किसानों के ऊपर अतिरिक्त भार पड़ रहा है। अब इन फसलों को बचा पाना आम किसान के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है। धान की रोपाई के बाद अब तक एक भी ऐसी बारिश नहीं हुई है कि कुछ दिन तक खेतों में पानी भरा रहे। गरीब किसान के पास खेती किसानी को लेकर इतना पैसा नहीं होता कि वह पंपिंग सेट से खेत में पर्याप्त सिंचाई कर सके। पंपिंग सेट पानी नहीं उठा रहे हैं कारण है जलस्तर का गिरना।

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