चित्रकूट

गर्मी आते ही पाठा में गहराने लगा पेयजल संकट,ग्रामीणों का संघर्ष शुरू

 

  • पाठा के दुधवनिया गांव में चोहड़े के पानी से ग्रामीण बुझा रहे प्यास
  • जलस्तर घटने से हैंडपंपों ने दिया जवाब, उगल रहे हवा

जन एक्सप्रेस संवाददाता | चित्रकूट पाठा क्षेत्र हमेशा से दो समस्याओं के लिए मशहूर रहा है। एक तो पेयजल समस्या और दूसरा डकैतों का आतंक। वैसे तो यहां समस्याओं का अंबार है, लेकिन यह दो समस्याएं यहां के लिए प्रमुख रही हैं। पेयजल समस्या के लिए अपनी ख़ास पहचान बनाने वाले पाठा में तपन बढ़ने के साथ ही पेयजल समस्या भी गंभीर हो चली है। कहते हैं “बिन पानी सब सून” यानी बगैर पानी के सब निरर्थक है। वाकई में जहां पानी नहीं वहां कुछ भी नहीं। जिस तरह से बगैर पानी के मनुष्यों और पशु-पक्षियों का जीवन असंभव है। ठीक उसी तरह से जल बिना कुछ भी संभव नहीं है। पथरीली भूमि होने के कारण चित्रकूट के पाठा क्षेत्र में गर्मी की आहट होते ही पेयजल समस्या अपना पांव पसारना शुरू कर दिया है। मुख्यालय से तकरीबन 40 किलोमीटर दूर मानिकपुर क्षेत्र के कई गांवों मे पेयजल की किल्लत शुरू हो गई है।

 

हैंडपंपों ने दिया जवाब 

 

गांवों मे लगे हैंडपंप वर्षों से खराब होने से समस्या गंभीर होती जा रही है। गर्मी आते ही जलस्तर खिसकने से हैंडपंप भी जवाब दे रहे हैं। गर्मी बढ़ने के साथ ही हैंडपंप हवा फेंकना शुरू कर देते हैं। मीलों दूर से लोग साइकिल और बैलगाड़ियों से पानी लाने को मजबूर हो जाते हैं। जलस्तर गहराने का करण वर्षाजल का संचय न होना है। जल संचयन के नाम पर तो सरकार द्वारा भारीभरकम बजट आता है लेकिन वह भी लूटखसोट का शिकार हो जाता है। जब तक सरकार पाठा के पेयजल समस्या के तह तक नहीं जाएगी,तब तक इस समस्या को खत्म नहीं किया जा सकता है। गर्मी शुरू हो चुकी है। इसके साथ ही पानी की समस्या भी विकराल होती जा रही है। पाठा क्षेत्र के दर्जनों गांवों मे भीषण जल संकट मंडरा रहा है।

इन गांवों में समस्या

मानिकपुर क्षेत्र के करौंहा गोपीपुर,छेरिहाखुर्द, मड़ैयन, चुरेह कशेरुआ, ऊंचाडीह,रामपुर कल्याणगढ,खिचरी, इंटवा डुड़ैला, बराहमाफी, कर्कापड़रिया, ऐलहा बढैया, मारा चन्द्रा के दुधवनिया आदि गांवो मे पेयजल समस्या का खतरा मंडरा रहा है। पेयजल समस्या को लेकर पाठा मे करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं। लेकिन इसका कोई खास असर देखने को नहीं मिल रहा है।

 

चित्रकूट जिले का पाठा क्षेत्र पिछड़ेपन और डकैतों के लिए हमेशा से जाना जाता रहा है। समस्याओं और डकैतों को लेकर हमेशा सुर्खियों में रहने वाला पाठा क्षेत्र मे डकैतों के खात्मे के बाद भी अनेकों समस्याओं से जूझ रहा है। डकैतों का सफाया हुआ, लेकिन समस्याओं का हल आज भी नहीं निकल पाया। अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि, आखिर किसकी लापरवाही से ग्रामीणों को मूलभूत सुविधाएं भी नसीब नहीं हो पाई हैं ?

स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल रहा गंदा पानी 

 

चोहड़ो, कुओं और तालाबों का गंदा पानी पीने ग्रामीणों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है।
गंदा पानी पीने से लोगों को तमाम तरह की बीमारियां घेर रही हैं। पेट दांत,आर्सेनिक और फ्लोराइड से प्रभावित होने का खतरा मंडरा रहा है। पेट संबधित बीमारियों के लोग भारी संख्या मे शिकार हो रहे हैं। जलस्तर घटने के साथ कुंआ और तालाब तो सूख ही जाते हैं,जिसका गंदा पानी पीने को मजबूर होते हैं।

 

जल संरक्षण की होती बड़ी-बड़ी बातें, लेकिन धरातल पर काम नहीं 

 

सरकार जल संरक्षण की बात तो करती है लेकिन सही तरीके से योजनाओं पर काम नहीं होने से कोई भी योजना साकार रूप नहीं ले पाती। अगर जल संरक्षण पर सही तरीके से काम किया जाये तो काफी हद तक समस्या का हल हो सकता है।

दौड़ने लगीं बैलगाड़ियां 

पाठा क्षेत्र के कई गांवों मे पानी की समस्या प्रारंभ हो गई है। बैलगाड़ियां दौड़ने लगी हैं। ग्रामीण कोसों दूर से बैलगाड़ी से पानी लाना शुरू कर दिया है। पेयजल संकट गहराते ही बैलगाड़ी में ड्रम रखकर ग्रामीण पानी लाना शुरू हो गए हैं। पानी लाना लोगों के लिए दिनचर्या बन चुकी है।

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