उत्तराखंड

जंगलों में लग रही आग से पर्यावरणविद चिंतित

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उत्तरकाशी । जिला मुख्यालय के वरुणावत की तलहटी और निम रोड पर मांडव, टकनोर, मुखेम रेंज सहित अन्य वन प्रभागों में वनाग्नि से भारी नुकसान हुआ है वहीं वनों में भड़की आग शहर की बस्तियों तक पहुंचने लगी है। जिले में वनों की आग टकनोर रेंज, मुखेम, धरासू, यमुना वन प्रभाग और टौंस वन प्रभाग में धुआं साफ दिखाई दे रहा है। आग के अंगारों से बचने के लिए वन्य जीव उच्च हिमालय और शहर की ओर भाग रहे हैं।

नदी बचाओ अभियान के सुरेश भाई बताते हैं कि चौरंगी खाल के पास जंगल में लगी भीषण आग की तबाही से जंगली जानवर बहुत संकट में हैं। उन्होंने बताया कि मैंने एक हिरण को जले हुए जंगल के बीच (लगभग 6000 फीट की ऊंचाई) में देखा। उसके लिए यहां न तो कहीं पीने के लिए पानी बचा है और न ही खाने के लिए हरी घास बची है। यह बहुत चिंताजनक है कि जंगल में लग रही आग के कारण हजारों जीव-जंतु मारे गए हैं। जो शेष बचे हुए हैं वे अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं।

गौमुख ग्लेशियर हिमालय बचाओ अभियान की ग्लेशियर लेडी शांति ठाकुर ने वनाग्नी पर चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि उत्तरकाशी के वनों में अप्रैल माह से वनों में आग ने विकराल रूप धारण कर लिया है। इस जून में भी आग का तांडव जारी है। भीषण गर्मी के दौरान लंबे समय से बारिश न होने के कारण उत्तरकाशी जिले के टौंस, यमुना वन प्रभाग सहित समूचे जिले के रेंजों में आग ने तांडव मचा रखा।

उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड के कुल क्षेत्रफल 54834 वर्ग किलोमीटर में से 34434 वर्ग किलोमीटर हिस्से में वन क्षेत्र है। अकले उत्तरकाशी में 88 प्रतिशत क्षेत्रफल में वन है। किसी भी देश में आदर्श पर्यावरण के लिए 33 प्रतिशत भूभाग में जंगल होने चाहिए। देश में 1952 में पहली बार जब देश की वननीति बनी तब देश में कुल 23 प्रतिशत वनक्षेत्र ही थे जो अब घटकर मात्र 11 प्रतिशत प्रतिशत ही बच गए हैं। अगर जंगलों की आग इसी तरह प्रतिवर्ष भीषण रूप लेती रही तो बचे जंगलों को समाप्त होने में समय नहीं लगेगा।

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