उत्तर प्रदेश

जिला मजिस्ट्रेटों व पुलिस अधीक्षकों की कार्य प्रणाली से हाईकोर्ट नाराज

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प्रयागराज । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गैंगचार्ट की स्वीकृति देते समय पूर्व में टाइप शुदा संतुष्टि पर हस्ताक्षर करने, गैंग चार्ट पर हस्ताक्षर तिथि का उल्लेख न करने और एफआईआर दर्ज करते समय संगत प्रावधानों का उल्लेख न करने पर पुलिस अधीक्षकों, जिला मजिस्ट्रेटों या पुलिस आयुक्तों की कार्यप्रणाली पर कड़ी नाराजगी जताई है।

कोर्ट ने कहा है कि ये अधिकारी अपने गैंग चार्ट की स्वीकृति देते समय अपने विवेक का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं। साथ ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा सन्नी मिश्रा, हासिम और राजीव कुमार उर्फ रज्जू के मामले में दिए गए आदेशों की अवहेलना कर रहे हैं। लिहाजा, सरकार गैंगस्टर अधिनियम के तहत सक्षम प्राधिकारियों को प्रशिक्षण या क्रैश कोर्स के लिए भेजे, ताकि वे गैंगस्टर और असामाजिक गतिविधियां (रोकथाम) नियम 2021 के साथ-साथ इस न्यायालय द्वारा जारी कई निर्देशों के अनुसार गैंग चार्ट तैयार करना सीख सकें। कोर्ट ने प्रमुख सचिव, गृह सचिव को जरूरी कदम उठाने को भी निर्देश दिया है।

यह आदेश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा और न्यायमूर्ति अरूण कुमार सिंह देशवाल की खंडपीठ ने महोबा के अब्दुल लतीफ, इटावा के हेतराम मित्तल और तस्लीम, बिजनौर के रितिक, मैनपुरी के अनूप उर्फ अनुज की ओर से दाखिल पांच अलग-अलग आपराधिक याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए दिया है।

कोर्ट ने कहा कि गैंग चार्ट को देखने से प्रतीत होता है कि जिला मजिस्ट्रेट ने इसे स्वीकृत करते समय अपने हस्ताक्षर के ठीक नीचे कोई तारीख नहीं लिखी। इसलिए उनकी संयुक्त बैठक के बारे में संदेह पैदा होता है। जबकि, नियम के मुताबिक संयुक्त बैठक कर गैंग चार्ट की स्वीकृति देते समय पूर्व में टाइप संतुष्टी की बजाय अपनी संतुष्टी को स्पष्ट रूप से दर्ज करना चाहिए था। कोर्ट ने कहा कि सन्नी मिश्रा उर्फ संजयन कुमार मिश्रा बनाम स्टेट ऑफ यूपी व अन्य के मामले में न्यायालय ने कहा था कि संयुक्त बैठक के सम्बंध में सामग्री न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत की जानी चाहिए। हालांकि, वर्तमान मामले में न्यायालय के समक्ष केवल पुलिस अधीक्षक और जिला मजिस्ट्रेट द्वारा हस्ताक्षरित प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया, जिसे गैंग चार्ट को अनुमोदित करने के बाद भी तैयार किया जा सकता था।

ऐसी परिस्थिति में यह न्यायालय प्रमुख सचिव (गृह), उत्तर प्रदेश सरकार, लखनऊ को निर्देश देता है कि वह सभी एसपी, एसएसपी, पुलिस आयुक्तों और जिला मजिस्ट्रेटों को उचित निर्देश जारी करें कि गैंगस्टर नियम- 2021 के नियम 5 (3)(ए) के अनुसार आयोजित संयुक्त बैठकों के प्रस्तावों को रिकॉर्ड करने के लिए एक रजिस्टर बनाया जाय। यह भी निर्देश दिया जाता है कि सभी एसपी, एसएसपी, पुलिस आयुक्त और जिला मजिस्ट्रेट और नोडल अधिकारी गैंग चार्ट पर हस्ताक्षर करते समय अपने हस्ताक्षर के नीचे तारीख का उल्लेख करेंगे। कोर्ट ने हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार अनुपालन को उसके आदेश के अनुपालन का निर्देश भी दिया है। मामले में याचियों ने कहा था कि एसपी और डीएम के द्वारा गैंग चार्ट की स्वीकृति देते समय अपने विवेक का इस्तेमाल न करते हुए नियमों को दरकिनार कर दिया गया है। याचियों ने इस स्वीकृति को हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी थी। कोर्ट ने सभी पांचों याचिकाओं के मुद्दों में एकरूपता पाई और एक साथ सुनवाई करते हुए सभी पांचों याचियों के खिलाफ गैंगस्टर में दर्ज प्राथमिकियों को रद्द कर दिया। हालांकि, अधिकारियों को यह छूट दी है कि वह नियमों के तहत याचियों के खिलाफ कार्रवाई कर सकते हैं।

हाईकोर्ट ने 7 बिन्दुओं के अनुपालन का दिया सुझाव

कोर्ट ने कहा कि कई पुलिस अधिकारी-जिला मजिस्ट्रेट अभी भी इस न्यायालय के विभिन्न निर्णयों द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का पालन नहीं कर रहे हैं। जबकि उन्हें राज्य सरकार के 21 जनवरी 2024 के परिपत्र द्वारा विधिवत जानकारी दी गई थी। यह तथ्य इन अधिकारियों की ओर से घोर लापरवाही को दर्शाता है। इसलिए मुख्य सचिव उत्तर प्रदेश और अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह), उत्तर प्रदेश को इस मामले को देखना चाहिए और उचित कार्रवाई करनी चाहिए। उन्हें प्रशिक्षित किया जाए, जिससे कि गैंगस्टरों के गैंगस्टर अधिनियम के चंगुल से बच पाना मुश्किल हो सके और छोटे तथा एक या दो मामलों में शामिल का बचाव हो सके। कोर्ट ने सुझाव दिया है कि यह प्रशिक्षण लखनऊ जेटीआरआई में भी चरणबद्ध तरीके से दिया जा सकता है। कोर्ट ने अपने आदेश में कुल सात बिंदुओं को भी रेखांकित किया है।

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