उत्तर प्रदेशचित्रकूट

नैनो डीएपी से बीज शोधन अभियान का चित्रकूट से शुभारंभ

इफको की स्वदेशी तकनीक से रबी फसलों में होगा 50% तक डीएपी की बचत, गुणवत्ता और उत्पादन में बढ़ोतरी

जन एक्सप्रेस, चित्रकूट।रबी फसलों की तैयारी को लेकर अब स्वदेशी तकनीक आधारित नैनो डीएपी (Nano DAP) किसानों की पहली पसंद बनने जा रही है। लखनऊ से पधारे इफको के राज्य विपणन प्रबंधक यतेंद्र कुमार ने चित्रकूट की पावन भूमि से नैनो डीएपी से बीज शोधन अभियान का शुभारंभ किया।इस अवसर पर ग्राम खुटहा के प्रगतिशील कृषक उदयभान सिंह के खेत में आलू की फसल में नैनो डीएपी से बीज उपचार किया गया। कार्यक्रम में मौजूद किसानों को इस तकनीक की प्रयोग विधि और लाभ की विस्तृत जानकारी दी गई।

क्या है नैनो डीएपी और इसके लाभ?

नैनो डीएपी एक किफायती और पर्यावरण हितैषी उर्वरक है, जो पारंपरिक दानेदार डीएपी की तुलना में कई गुना प्रभावी है।इससे 50% तक डीएपी की बचत होती है।उत्पादन में 10-15% तक वृद्धि देखी गई है।बीज उपचार के लिए आलू के कंदों पर प्रति लीटर पानी में 10 मिली नैनो डीएपी मिलाकर छिड़काव किया जाता है और 30 मिनट छाया में सुखाया जाता है।अन्य फसलों में 5-10 मिली प्रति किलो बीज की दर से बीज शोधन किया जाता है।30-35 दिन बाद 500 मिली नैनो डीएपी को 120 लीटर पानी में मिलाकर एक एकड़ खेत में छिड़काव किया जाता है।

क्यों है यह तकनीक खास?

नैनो डीएपी का प्रयोग करने से: फसल की गुणवत्ता और एकरूपता बढ़ती है।कीट व बीमारियां कम लगती हैं, खरपतवार नियंत्रण में मदद मिलती है।90% तक उर्वरक उपयोग क्षमता होती है, जबकि दानेदार डीएपी केवल 15-20% ही उपयोग में आ पाती है।इससे सरकार को सब्सिडी खर्च नहीं करना पड़ता, जबकि पारंपरिक डीएपी में भारी सब्सिडी खर्च होती है। यदि किसान नैनो डीएपी को अपनाते हैं, तो इससे विदेशी डीएपी आयात पर निर्भरता घटेगी, भारत की उर्वरक जरूरतें देश में ही पूरी होंगी, मिट्टी की सेहत सुधरेगी, और खाद्य पदार्थ अधिक पौष्टिक बनेंगे। कार्यक्रम में इफको चित्रकूट के उप क्षेत्र प्रबंधक राजबीर सिंह, इफको प्रयागराज से क्षेत्र प्रबंधक अक्षय कुमार पांडेय, एसएफए आदित्य कुमार पटेल, आईएफएएसडीसी केंद्र सीतापुर के संचालक नीरज गर्ग, प्रगतिशील किसान शिव कुमार शुक्ला, छेलबिहारी, रमेश, राहुल नायक, गोरेलाल, खुशबू, लालता, राधा सहित ग्राम के कई किसान बंधु और महिलाएं मौजूद रहीं।कृषक शिवकुमार सिंह ने इफको का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि, “तकनीकी ज्ञान का यह प्रयास बिल्कुल सही समय पर किया गया है। इससे न केवल हमारी फसल में सुधार होगा, बल्कि अन्य किसान भी प्रेरित होंगे।”

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