राजधानी की जड़ें काटी जा रही हैं: सदर तहसील में पेड़ों का कत्ल और अवैध प्लॉटिंग का तांडव
अर्जुनगंज से लेकर भरवारा, अमराई गांव से लेकर गढ़ी कनौरा तक — हरियाली मिटा, ईंटें उगा रहे हैं प्लॉटिंग माफिया, और प्रशासन मौन है

रिपोर्ट: जन एक्सप्रेस विशेष संवाददाता, सदर तहसील (लखनऊ) लखनऊ की हृदयस्थली कही जाने वाली सदर तहसील, जहां से राजधानी का प्रशासनिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक संचालन होता है, अब भू-माफियाओं के निशाने पर है। विकास के नाम पर पेड़ काटे जा रहे हैं, बाग उजाड़े जा रहे हैं, और तालाब, ग्रीन बेल्ट, और खेती योग्य भूमि पर अवैध कॉलोनियों का विस्तार किया जा रहा है।
यह सब कुछ इतना खुल्लमखुल्ला हो रहा है, जैसे कानून और पर्यावरण की कोई परवाह ही न हो।
अब ये गांव भी बन चुके हैं अवैध प्लॉटिंग का हब
पहले जो खतरा भरवारा, अर्जुनगंज, अमराई गांव, पीजीआई क्षेत्र और वृंदावन योजना तक सीमित था, अब वह तेजी से फैल चुका है:
गढ़ी कनौरा, खुर्रमनगर एक्सटेंशन, रजौली, पिपरसंड, भिलावल खेड़ा, चंद्रावती, ऐरा खेड़ा, अहिमामऊ, रायबरेली रोड किनारे गांव,
इटौंजा रोड के संपर्क गांव,
उपटा, हसनगंज तिराहा से सटे खेत,
डालीगंज के बाहरी इलाके,
और यहां तक कि सैन्य क्षेत्र की सीमाओं से लगे गांवों तक
इन गांवों में रातों-रात पेड़ काटे जा रहे हैं, बागों को जेसीबी से समतल कर सीमांकन किया जा रहा है, और ‘बुकिंग शुरू’ के बोर्ड टांग दिए जा रहे हैं।
हरियाली की जगह कंक्रीट: विकास या विनाश?
हर बाग अब एक संभावित कॉलोनी का खाका बन चुका है। जहां कल तक आम, जामुन, नींबू और पीपल के पेड़ छाया देते थे, वहां आज सिर्फ सीमांकन की रेखाएं, ईंट की दीवारें और नकली सड़कों का ढांचा बन रहा है।
ग्रामीणों के अनुसार, कई प्लॉट बिना किसी वैधानिक अनुमति के बेचे जा रहे हैं, और खरीदारों को न बिजली, न पानी, न सीवर — सिर्फ धोखे का सपना दिया जा रहा है।
ग्रामीणों की पीड़ा और डर
गढ़ी कनौरा के किसान रामदीन यादव कहते हैं:
“हमारे गांव में रात में जेसीबी घुस गई, बाग के पेड़ उखाड़ दिए गए। सुबह देखा तो चूने की लकीरें बन चुकी थीं।”
पिपरसंड की शकुंतला देवी कहती हैं:
“गांव का तालाब तक पाट दिया। जब शिकायत की तो बोले ‘ऊपर तक सब सेट है’।”
कानून का कोई डर नहीं?
रिपोर्ट के अनुसार, इन क्षेत्रों में न कोई नक्शा पास है, न भूमि उपयोग परिवर्तन किया गया है, न पर्यावरणीय मंज़ूरी। फिर भी खुलेआम प्लॉट बेचे जा रहे हैं। यह सवाल खड़ा करता है कि:
क्या प्रशासन की आंखों पर पर्दा पड़ा है?
या कहीं न कहीं मिलीभगत का जाल बिछा है?
राजधानी की छवि पर संकट
लखनऊ को ‘स्मार्ट सिटी’, ‘हरित राजधानी’, ‘नवीन भारत का मॉडल शहर’ कहा जाता है। पर सदर तहसील में जो हो रहा है, वह इस छवि के ठीक उलट है।
अगर यही हाल रहा तो आने वाले वर्षों में:
राजधानी में हरियाली 50% तक घट सकती है,
गर्मी और जल संकट चरम पर पहुंच सकता है,
और हजारों परिवारों का पैसा फंसेगा अवैध कॉलोनियों में।
जनता की 5 मांगें
1. हर गांव की ज़मीन की स्थिति (रिकॉर्ड व नक्शा) सार्वजनिक हो
2. हर अवैध प्लॉटिंग की GPS मैपिंग और ड्रोन सर्वे हो
3. फर्जी दस्तावेज़ों पर कार्रवाई करते हुए FIR दर्ज हो
4. बागों को ‘हरित क्षेत्र’ घोषित कर संरक्षित किया जाए
5. जिस भूमि पर एक भी पेड़ काटा गया हो, वहां निर्माण पर प्रतिबंध लगे
फोटो कैप्शन सुझाव:
“गढ़ी कनौरा में कटे हुए आम के पेड़ के पास बना प्लॉटिंग बोर्ड” — कैप्शन: ‘एक पेड़ की कीमत, एक प्लॉट की कमाई’
“तालाब में गिरी मिट्टी और ट्रैक्टर” — कैप्शन: ‘पानी की जगह अब प्लॉट बनेगा’
“ग्रामीणों का प्रदर्शन, पुलिस के साथ बहस” — कैप्शन: ‘धरती हमारी, हक क्यों नहीं?’
निष्कर्ष: राजधानी को बचाने की अंतिम चेतावनी
सदर तहसील केवल एक प्रशासनिक क्षेत्र नहीं — यह लखनऊ की आत्मा है।
अगर यहां हरियाली कटती रही, पेड़ गिरते रहे और प्लॉटिंग चलती रही, तो लखनऊ अपनी पहचान खो देगा।
प्रशासन को अब ‘देखेंगे’ नहीं, तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए — वरना आने वाली पीढ़ियां हमें माफ नहीं करेंगी।
मुख्यमंत्री की सख्त नीति के बावजूद कैसे सक्रिय हैं भू-माफिया?
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भले ही राज्य में भू-माफियाओं के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति को लेकर सख्त रुख अपनाए हुए हैं। उन्होंने कई बार मंचों से यह स्पष्ट किया है कि “भूमि पर अवैध कब्जा करने वालों को किसी भी हाल में बख्शा नहीं जाएगा”, और “सरकारी व ग्राम समाज की भूमि पर कब्जा करने वालों के खिलाफ कठोरतम कार्रवाई होगी”, लेकिन जमीनी हकीकत इन दावों से मेल नहीं खा रही।
वास्तविकता यह है कि राजधानी लखनऊ की तहसीलों में ही भू-माफिया सक्रिय हैं, और प्रशासनिक मशीनरी की निष्क्रियता या मिलीभगत के चलते ये लोग खुलेआम:
पेड़ों की कटाई कर हरियाली को नष्ट कर रहे हैं,
सरकारी व ग्राम समाज की ज़मीन पर अवैध कॉलोनियां बसा रहे हैं,
और मासूम जनता को फंसाकर भूखण्ड बेच रहे हैं।