पीपा पुल पर चढ़ा पानी, जान जोखिम में डालकर नाव से नदी पार कर रहे ग्रामीण
नारायणी नदी का हाल
ग्रामीणों के लिए 50दिन चलने के बाद बेकार साबित हो रहा पीपा पुल
जन एक्सप्रेस/गिरीश चन्द्र पांडेय
कुशीनगर। कुशीनगर जिले में सीमा से होकर तेज गति से बहने वाली नारायणी नदी में समय से पहले पानी बढ़ने से नदी में बने पीपा पुल के उपर पानी चढ़ गया है। जिससे चलते दीयारा क्षेत्र के ग्रामीणों को आवागमन में करने में परेशानीयों का सामान करना पड़ रहा है ।पुल पर पानी चढ़ने से ग्रामीण जान जोखिम में डालकर नाव के सहारे नदी पार कर रहे है। जबकि प्रत्येक वर्ष नारायणी नहीं में चैत नवरात्रि के समय में ही पानी बढ़ता है किन्तु इस बार नवरात्र से पहले नदी में पानी के बढ़ने से नदी में बने पीपा के पुल पर पानी चढ़ गया है। जनपद के दीयारा क्षेत्र के आधा दर्जन व महराजगंज के तीन गांवों के लोग जान जोखिम में डालकर खड्डा की यात्रा तय करने को मजबूर हैं।
ग्रामीणों के लिए नारायणी नदी में पानी बढ़ने से भैंसहा घाट पर लगाया गया पीपा पुल 50दिन चलने के बाद बेकार साबित हो रहा है।
बताते चलें कि प्रत्येक वर्ष नवरात्र के दिनों में नारायणी नदी में पानी का बढ़ना शुरू होता था लेकिन इस वर्ष नवरात्र से पहले ही बीती रात नारायणी नदी में पानी तेजी से बढ़ने लगा है जिससे नारायणी नदी पार के गांव कुशीनगर जिले के गांव नारायनपुर, हरिहरपुर,शिवपुर, बसन्तपुर, मरिचहवां, बालगोविंद छपरा व बकुलादह तथा महराजगंज जिले के सोहगी बरवां, शिकारपुर व भूतहां के लोगों को खड्डा के लिए आवागमन में भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। अचानक नदी में पानी बढ़ने को देख लोग नाव से आते और जाते हैं। नाव वाले किराया के नाम पर उनका शोषण कर रहे हैं पानी बढ़ने पर नदी पार के मरिचहवा गांव के प्रधान इजहार अंसारी, शिवपुर के निजामुद्दीन अंसारी हरिहरपुर के रामायण ,संजय सिंह, अंगूर आदि ने बताया कि परिवार चलाने के लिए रोजमर्रा के समान के लिए बाजार आना जाना मजबुरी है नदी में पानी बढ़ने से हम लोगों को बाजार से सामान लाने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। नाव से 5 किलोमीटर की जगह बिहार होकर आने-जाने में 60 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है। ग्रामीणों का कहना है आज तक आजादी के बाद से चुने हुए किसी भी जनप्रतिनिधि ने हम लोगों की दुर्दशा पर ने ध्यान नहीं दिया है। जब बाढ़ से हम लोगों का गांव टापू बन जाता है तो नेता लोग आकर ढांढ़स बधाते हैं और फिर चले जाते हैं उसके बाद कोई सुधि लेने नहीं आता है। प्रकृति से की मार से हमेसा हम दीयारा में वासियों दो चार होना पड़ता है। भाग्य में शायद हम लोगों को यही लिखा है।