पर्यावरणविदेश

50 हाथियों को काटने का आदेश: मांस बंटेगा घर-घर, दुनिया में उठे सवाल

जन एक्सप्रेस/नई दिल्ली: जहां पूरी दुनिया हाथियों को बचाने के प्रयासों में जुटी है, वहीं अफ्रीकी देश ज़िंबाब्वे ने एक ऐसा फैसला लिया है, जिसने वन्यजीव प्रेमियों को स्तब्ध कर दिया है। सरकार ने 50 हाथियों को “हटाने” का आदेश जारी किया है। इन हाथियों से प्राप्त मांस स्थानीय समुदायों में वितरित किया जाएगा, जबकि उनके दांत सरकार को सौंपे जाएंगे।

यह कोई फिल्मी कहानी नहीं, बल्कि अफ्रीका के Save Valley Conservancy में लिया गया वास्तविक निर्णय है, जिसे सरकार ने एक “जरूरी पर्यावरणीय संतुलन” का नाम दिया है। लेकिन यह फैसला अब एक वैश्विक नैतिक बहस का केंद्र बन चुका है।

क्या है इस फैसले के पीछे की वजह?

ज़िंबाब्वे के अधिकारियों के अनुसार, Save Valley Conservancy में लगभग 2,550 हाथी मौजूद हैं, जबकि यह क्षेत्र सिर्फ 800 हाथियों को ही पर्यावरणीय रूप से सहन कर सकता है।

वन्यजीव विभाग का कहना है कि:

हाथियों की बढ़ती संख्या से पारिस्थितिकी तंत्र पर गंभीर दबाव पड़ रहा है। जंगल समाप्त हो रहे हैं, जलस्रोत सिकुड़ रहे हैं और मानव-वन्यजीव संघर्ष बढ़ रहा है।”

सरकार पहले भी 200 हाथियों को अन्य पार्कों में ट्रांसफर कर चुकी है, लेकिन मौजूदा हालात में उसे यह कदम “आवश्यक” लग रहा है।

हाथियों का मांस, दांत और विवाद

सरकार की योजना के अनुसार:

चयनित हाथियों को हटाया जाएगा।

उनका मांस ग्रामीण समुदायों में वितरित किया जाएगा।

हाथी दांत को सरकार के पास सुरक्षित रखा जाएगा, ताकि अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन न हो।

गौरतलब है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हाथी दांत के व्यापार पर प्रतिबंध है, जिससे ज़िंबाब्वे जैसे देशों को इसकी बिक्री से आमदनी नहीं हो पाती।

संरक्षण बनाम नैतिकता: क्या कोई और रास्ता नहीं था?

यह कदम सिर्फ एक प्रशासनिक निर्णय नहीं है, बल्कि एक गहरी नैतिक और भावनात्मक बहस को जन्म देता है –
क्या संरक्षण का मतलब “संख्या घटाना” हो सकता है?
क्या हम सिर्फ इसलिए किसी प्रजाति को नियंत्रित करें क्योंकि हमने उसकी प्राकृतिक सीमाएं खुद ही कम कर दी हैं?

जलवायु परिवर्तन, सूखे और जंगलों के सिकुड़ने के कारण हाथियों को इंसानी इलाकों में जाना पड़ रहा है। यह संघर्ष किसी एक देश की नहीं, पूरी दुनिया की समस्या बन चुकी है।

आख़िर सवाल यही है: क्या हमने उनके लिए कोई जगह छोड़ी है?

यह खबर केवल 50 हाथियों की नहीं…
यह कहानी है उस अदृश्य संघर्ष की, जो इंसानों और प्रकृति के बीच दिन-ब-दिन गहराता जा रहा है।

इस फैसले से संबंधित कई अंतरराष्ट्रीय संगठन चिंता जता चुके हैं। कुछ का मानना है कि यह देश की छवि और पर्यटन उद्योग के लिए भी नुकसानदायक हो सकता है।

आप क्या सोचते हैं?

क्या ज़िंबाब्वे सरकार का यह फैसला सही है?
या इस पर दोबारा विचार किया जाना चाहिए?

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