भ्रष्टाचारमहोबा
पुरातत्व विभाग में संरक्षित चंदेल कालीन मठ मंदिर तथा जलाशय अतिक्रमण की चपेट में
जन एक्सप्रेस/विजय प्रताप सिंह
महोबा। केन्द्र सरकार द्वारा पुरातत्व विभाग का गठन शायद इस मंशा से किया होगा कि पुरातत्व सम्पदा को नष्ट होने से बचाने और जीर्णोद्धार अवस्था में पड़े मठ मंदिरों का जीर्णोद्धार कराकर उन्हे पूर्व के वैभव से सुशोभित किया जा सके।
पुरातत्व महत्व के स्मारकों, मठ, मंदिरों और जलाशयों को जमीदोज होने से बचाने की मंशा से 2010 में भारत की संसद में स्मारक एंव पुरातत्व स्थल को संरक्षित करने बावत शासनादेश जारी किया था जिसमें कि 100 मीटर की परिधी में किसी प्रकार निर्माण कार्य नहीं किया जायेगा।
शासनादेश में यह भी स्पष्ट किया गया है कि निर्माण कार्य भले ही लोक परियोजना ही क्यों न हो शासनादेश में स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि प्राचीन स्मारक की सीमा से चतुर्दिक न्यूनतम 100 मीटर तक के क्षेत्र को प्रतिनिषिद्ध सम्मलित करते हुए सरकार के प्रति दृढ निश्चित को प्रदर्शित किया था। अधिसूचना संख्या 13 द्वारा जारी किया गया अधिनियम प्राचीन स्मारक एंव पुरातत्व स्थल एंव अवशेष अधिनियम 1958 का हवाला भी दिया गया था। प्रतिनिषिद्ध क्षेत्र के पूरे चतुर्दिक न्यूनतम 200 मीटर के क्षेत्र को विनियमित क्षेत्र माना गया है। किसी भी स्मारक अथवा संरक्षित स्थल के वर्गीकरण के परिप्रेक्ष्य में और बढ़ाया जा सकता है। शासनादेश में कहा है कि केन्द्रीय संरक्षित स्मारक के प्रतिनिषिद्ध के भीतर लोक परियोजना सहित किसी भी प्रकार के निर्माण की अनुमति नहीं होगी तथा विनियमित क्षेत्र मे निर्माण एंव पुनःनिर्माण गतिविधियों की अनुमति विरासत उपविधियो वायलय के आधीन नियंत्रित होगी। यहाॅ एक दशक से प्राचीन स्मारकों मठ, मंदिरों तथा जलाशयों के भूतलों तट सरोबरों के तट बंधो में आलीशान भवनों के निर्माण कार्य की होड़ मची हुई है। पुरातत्व विभाग में संरक्षित रामकुण्ड कीरत सागर, मदन सागर और कल्याण सागर तथा बड़ी चंद्रिका देवी मंदिर, आल्हा की गिल्ली, ढेवा की बैठक आदि शहर के प्राचीन स्मारकों के आस पास अतिक्रमण कारियों ने पुरातत्व विभाग के अधिकारियो की निष्क्रियता पूर्ण कार्य प्रणाली के चलते आलीशान भवनो का निर्माण करा लिया है।
मदन सागर के लगभग 2 किलो मीटर के लम्बे तटबंध पर आलीशान भवनों का निर्माणकर अपने शौचालयों के पाईप सरोवर में डाल दिए है। जिससे मदन सागर का पानी विशाख्त हो रहा है। कीरत सागर तथा कल्याण सागर के भूतल में भी अनेकों आलीशान हवेलियां खड़ी हो गयी हैं। प्राचीन स्मारकों को जीवन्त प्रदान करने के लिए जिला प्रशासन को शीघ्र अति शीघ्र कदम उठाना होगा। अन्यथा की स्थिति में मिली प्राचीन धरोहरों को हम गवां बैठेगे। इतिहास के पन्नों में धार्मिक स्थलों और जलाशयों को पढ़ेगें परंतु धरा पर उन प्राचीन स्मारकों को खोजते रहे जायेगें।