कॉपी, किताब, ड्रेस की वसूली से निजी स्कूलों का प्रबंधन मस्त लेकिन अभिभावक हुए त्रस्त
जमकर खेला जा अभिभावकों के आर्थिक शोषण का खेल

जन एक्सप्रेस/गाजियाबाद: मार्च का सत्र आरम्भ होते ही साल भर उत्तम शिक्षा के नाम पर मोटी फीस उगाही करने वाले निजी शिक्षण संस्थान स्टेशनरी की दुकान में परिवर्तित हो जाते हैं। कॉपी, किताब, स्कूली कपड़े , स्टेशनरी , जूते, मोजे बेचने का एकल स्थान विद्यालय के परिसर को बना दिया जाता है। जबकि सरकारी नियमावली की माने तो ऐसे मनमानी और आर्थिक शोषण वाले तंत्र विकसित करने पर रोक है। उसके बाद भी सरकार के निर्देशों की अनदेखी और नियमों को दर किनार करके शिक्षण संस्थान स्टेशनरी , रेडीमेड कपड़े और जूते मोजे की दुकान बन गए हैं।
सूत्रों की माने तो निजी प्रकाशकों की किताबों का उत्तम शिक्षण की जरूरत दिखाकर महंगी किताबों को संचालित करने की छूट दिया जाता है। ऐसी किताबें खुली मार्केट में जहां 30 से 40 प्रतिशत छूट के साथ अभिभावक प्राप्त करते हैं, वही निजी शिक्षण संस्थान स्कूलों से ही किताबों कॉपी का बंडल बनाकर बिना छूट के लेने को विवश है। स्कूल ड्रेस हजार बारह सौ वाली ढाई से तीन हजार तक वसूले जा रहे हैं। ऐसे ही हर जरूर के समानों में ऐसी वसूली निर्बाध रूप से जारी है।
शिक्षा विभाग निजी स्कूलों के प्रबंधकों के सामने नतमस्तक
जिले का शिक्षा विभाग भले सोशल मीडिया और अखबारों में सरकार के शिक्षण व्यवस्था को लेकर ढोल पीट रहा हो लेकिन ढोल पीटने वाले के बच्चे भी निजी शिक्षण संस्थानों में ही नामांकन करवाकर अपना सीना गर्व से ऊंचा रखते है । साहब की जिम्मेदारी इतनी रहती है कि निजी विद्यालयों में कब भ्रमण कर आते हैं, प्रबंधन से सरकार की नीतियों और नियमों का अनुपालन की वार्ता करते हैं केवल वह खुद जानते होगे ।
राजनीतिक रसूख और शासन तक पहुंच के आगे प्रशासन निढाल
जनता के शब्दों में कहे तो बड़े बड़े निजी शिक्षण संस्थान राजनीतिक रसूख और बड़े बड़े उद्योगपतियों द्वारा संचालित हैं या प्रबंधन उनकी बड़ी भूमिका है। जिसके कारण प्रशासनिक अमला चाहकर भी कोई कड़ी कार्यवाही नहीं करता और आम जनता आर्थिक लुट का शिकार होती है। जिसपर चाहकर रोक नहीं लग सकती । जिसका नमूना जिला और प्रबंध समिति की बैठकों में उपस्थिति को देखकर समझा जा सकता है।
बच्चों के भविष्य से डरते मां बाप, अभिभावक संघ उदासीन
निजी स्कूलों के आर्थिक शोषण की शिकायत अथवा विरोध आम अभिभावक नहीं करना चाहता क्योंकि दबंग प्रबंधन बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ पर उतारू हो जाता है। जिसकी शिकायत प्रशासनिक अमले में केवल गूंजती है, लेकिन कार्यवाही परवान नहीं चढ़ पाती है। जिसका असर यह पड़ता है कि अभिभावक चुप चाप अपना आर्थिक शोषण होते चुप चाप देखता है।