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कैलाश मानसरोवर भवन इंदिरापुरम: निजीकरण की सुगबुगाहट

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सपनों का महल निजी क्षेत्र को सौंपने की कयावद

शैलेश पाण्डेय
जन एक्सप्रेस गाजियाबाद

गाजियाबाद। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ड्रीम प्रोजेक्ट कैलाश मानसरोवर भवन जो चार धाम सहित मानसरोवर यात्रियों की सुविधाओं के लिए तैयार हुआ प्रशासनिक बेरुखी और नोडल एजेंसी की असक्रियता के कारण अब निजी क्षेत्र की भेंट चढ़ने के कगार पर है। उत्तर प्रदेश में सितम्बर 2017 में शिलान्यास करने के बाद रिकॉर्ड समय में बने योगी आदित्यनाथ के ड्रीम प्रोजेक्ट जो कि कैलाश मानसरोवर , चार धाम एवं कांवड़ तीर्थ यात्रियों के संबंधित कैलाश मानसरोवर भवन का उद्घाटन 3 साल के अंदर निर्माण करके दिसम्बर 2020 में लोकार्पित कर दिया । सैकड़ों करोड़ की लागत से बना कैलाश मानसरोवर भवन प्रशासनिक उपेक्षा विभागीय कमियों के चलते आज अपने अनुरक्षण के लिए आंसू बहाने को मजबूर है। 2020 में बनकर तैयार होने नोडल एंजेसी के रूप में गाजियाबाद विकास प्राधिकरण को नियुक्त करके प्रदेश का नया नया बना धर्मार्थ विभाग खुद चीर निद्रा में सो गया । जिसका परिणाम यह निकला कि यह धार्मिक भवन तमाम यात्राएं होने के बाद भी भक्तों के लिए कभी लाभकारी सिद्ध नहीं हो सका । लेकिन भाजपा की मीटिंग, कार्यकर्ता सम्मेलन और प्रवचन में जरूर यदा कदा इस्तेमाल करके इसके अस्तित्व को जिंदा जरूर रखा गया है। आम जनता के उपयोग अथवा धार्मिक यात्राओं अथवा कांवड़ के समय भी इसके दरवाज़े लगभग बंद ही रहे ।
इंदिरापुरम में स्थित कैलाश मानसरोवर भवन अपनी सांस्कृतिक, सामाजिक और धार्मिक उपयोगिता के लिए स्थापित किया गया । यह भवन क्पूरे प्रदेश में एक नायाब स्थल बना ।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ड्रीम प्रोजेक्ट के रूप में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा निर्मित कैलाश मानसरोवर भवन एक धार्मिक स्थल , सामुदायिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन के केंद्र के रूप ख़ूब प्रचारित किया गया । यहां ख़ूब धार्मिक और संस्कृति रक्षक योजनाओं को लेकर मिडिया में खबरें गढ़ी गई । लेकिन यह खबरें और प्रचार ही रह गया ।
हाल ही में कैलाश मानसरोवर भवन का संचालन निजी क्षेत्र में सौंपने की सुगबुगाहट ने स्थानीय लोगों और हितधारकों के बीच चिंताओं को जन्म दिया है। बार बार आम जनता के लिए खोले जाने की मांग अनसुनी होने के बाद से ही इसे निजी घरानों को देने की प्रशासनिक अधिकारियों की मंशा पर प्रश्नचिह्न जनता खड़ी कर रही थी। जो अब फलीभूत होते दिख रही है। सूत्रों की माने तो गाजियाबाद विकास प्राधिकरण के पास जिले के हुक्मरान की पत्रावली भेजी जा चुकी है । ऐसे रसूखदार कौन हैं ,जिनकी सत्ता के गलियारों धमक ऐसी है जो प्रदेश के मुखिया के ड्रीम प्रोजेक्ट तक को ऐसी स्थिति में ले जाए। सालों से धूल फांकता और अनुरक्षण के अभाव में अपनी अलौकिक आभा खोने वाला मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का ड्रीम प्रोजेक्ट अब अपनी आभा संजोने के लिए निजी हाथों की बाट जोह रहा है।

निजीकरण की पृष्ठभूमि

सूत्रों की मानें तो भवन के रखरखाव और संचालन में आने वाले खर्चों और प्रशासनिक चुनौतियों का हवाला देते हुए, इसे निजी क्षेत्र को सौंपने की योजना बनाई जा रही है। इस निर्णय के पीछे तर्क दिया जा रहा है कि निजी क्षेत्र इसे और अधिक कुशलता से प्रबंधित कर सकेगा, साथ ही इसे आर्थिक रूप से लाभदायक भी बना सकेगा।

संभावित लाभ की भूमिका बेहतर प्रबंधन और सेवाए

निजी क्षेत्र द्वारा भवन के प्रबंधन से इसकी सेवाओं में सुधार हो सकता है। उन्नत तकनीकी समाधान और बेहतर सुविधाएँ प्रदान की जा सकती हैं।

आय के नए स्रोत
निजीकरण के बाद, भवन का उपयोग अधिक व्यावसायिक कार्यक्रमों, कॉन्फ्रेंस, और विवाह आयोजनों के लिए किया जा सकता है, जिससे आय के स्रोत बढ़ सकते हैं।

*रखरखाव और संरचना में सुधार:*
निजी निवेश के साथ भवन की संरचना और सौंदर्य को और अधिक उन्नत बनाया जा सकता है।

आम नागरिक और धार्मिक संगठन निजीकरण के खिलाफ़

जबकि धार्मिक स्वयंसेवी संगठन और नागरिकों का मानना है कि निजीकरण के बाद भवन का उपयोग वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए अधिक हो सकता है, जिससे धार्मिक और सामुदायिक गतिविधियाँ प्रभावित हो सकती हैं। इतना ही नहीं जब वाणिज्यिक रूप से इसका उपयोग होगा तो करोड़ों लोगों के आस्था और धर्म की शुद्धता और सात्विकता कितनी बरकरार रह पाएगी यह सोचनीय है। शराब और अन्य असामाजिक क्रिया कलाप पर क्या निजी संचालक रोक लगा सकेंगे । यह सोचनीय विषय है । कैलाश मानसरोवर भवन के अगल बगल स्कूल और रिहायशी इलाके भी है। पहले से ही इस इलाके में रिहायशी प्लाटों पर अवैध निर्माण करके और गाजियाबाद विकास प्राधिकरण के कर्मियों की कृपा से होटल और बैंक्वेट हाल संचालित हो रहे हैं। जो आम नागरिकों के लिए मुसीबत बने हैं। अब ऐसे धार्मिक प्रयोजन वाले ईमारत को धर्मार्थ विभाग निजी क्षेत्र को सौंप कर धन कमाने और अनुरक्षण की बात कर रहा है। यह हाल तब है जब कि यह सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ का ड्रीम प्रोजेक्ट है।

कैलाश मानसरोवर भवन एक नज़र में
पांच सितारा इमारतों की तरह 9 हजार वर्गफुट में नक्काशीदार जयपुरी पत्थरों से निर्माण हुआ । भवन में 46 कमरे चार सीटर , 48 कमरे 2 सीटर हैं। एक बार में इस भवन में 280 व्यक्ति रुक सकते है । इसके साथ ही योग ,साधना और प्रवचन के लिए हाल की सुविधा भी है। चार मंजिला कैलाश मानसरोवर भवन को केंद्रीकृत वातानुकूलित करने दावा तो किया गया लेकिन कमरों सहित भवन कितना शीतल दे पाया यह कोई नोडल एंजेसी गाजियाबाद विकास प्राधिकरण से पूछे अथवा धमार्थ विभाग के जिम्मेदार अधिकारी से जो वास्तविकता जानते हुए भी कुछ कहने से बचते हैं।

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