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दो बीघा जमीन में बड़ा प्रशासनिक एक्शन – लेकिन क्या पूरे UP के किसान अब भी जूझ रहे सिस्टम से

जन एक्सप्रेस / लखनऊ: उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में एक किसान, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े पदाधिकारी भी हैं, की महज 2 बीघा जमीन की पैमाइश में छह साल की देरी पर शासन ने बड़ी कार्रवाई की। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर एक आईएएस और तीन पीसीएस अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया। इस कार्यवाही को प्रशासनिक सख्ती का प्रतीक माना गया, लेकिन जमीनी सच्चाई यह है कि आज भी प्रदेश के हजारों किसान जमीन की नाप, सीमांकन और दाखिल-खारिज जैसे बुनियादी अधिकारों के लिए राजस्व विभाग की चौखट पर सालों से धक्के खा रहे हैं।

कौन-कौन हुए थे निलंबित?

इस मामले में नाप न करने की लापरवाही पर शासन ने जो चार अधिकारी निलंबित किए, वे थे-

धनश्याम सिंह (आईएएस), अपर आयुक्त, लखनऊ मंडल

अरुण कुमार सिंह, एडीएम (राजस्व), बाराबंकी

विधेश सिंह, नगर मजिस्ट्रेट, झांसी

रेनु, एसडीएम, बुलंदशहर

इन सभी पर आरोप था कि उन्होंने अपने-अपने कार्यकाल में उक्त किसान की भूमि नापने में जानबूझकर देरी की और समस्या को लंबित बनाए रखा।

क्या वीआईपी की पहचान पर ही मिलती है इंसाफ की गारंटी?
यह कार्रवाई उस वक्त की गई जब मामला एक संगठन से जुड़े प्रभावशाली किसान का था। लेकिन वही तत्परता क्या एक सामान्य किसान के मामले में भी दिखाई जाती? राज्य भर में ऐसे सैकड़ों किसान हैं जो वर्षों से केवल इस इंतजार में बैठे हैं कि कोई लेखपाल आए और उनकी ज़मीन की नाप करे ताकि वे अपने खेत पर अधिकार पाएं।

“लेखपाल न आया, नाप नहीं हुई, हम तो इंतजार में बूढ़े हो गए”
जन एक्सप्रेस को बलरामपुर, बाराबंकी, सीतापुर, बहराइच, और हरदोई के कई किसानों ने बताया कि उन्होंने वर्षों पहले अपनी जमीन की पैमाइश के लिए आवेदन दिए, मगर आज तक कोई सुनवाई नहीं हुई। अधिकारियों की ओर से या तो टालमटोल होता है, या फिर फील्ड विजिट के नाम पर रिश्वत की मांग की जाती है। “अगर कोई जान-पहचान वाला नेता नहीं है, तो अधिकारी हमें गंभीरता से ही नहीं लेते,”- यह कहना है बाराबंकी के एक बुजुर्ग किसान रामलाल का।

सिर्फ सस्पेंशन से नहीं सुधरेगी व्यवस्था
यह तो तय है कि लापरवाह अधिकारियों पर कार्रवाई जरूरी है, लेकिन यह केवल कुछ नामों तक सीमित न रहकर पूरी व्यवस्था में सुधार लाने का जरिया बने, तभी इसका असली असर होगा। अगर केवल रसूखदारों के मामलों में ही कार्रवाई होती रहेगी, तो ये संदेश नीचे स्तर तक नहीं पहुंचेगा।

क्या हो सकते हैं समाधान?

सभी नाप संबंधी आवेदनों के लिए 30 दिन की तय समयसीमा

तहसील स्तर पर नाप कार्यों की सार्वजनिक रिपोर्टिंग

किसानों को डिजिटल ट्रैकिंग नंबर दिया जाए

नाप में देरी पर लेखपाल-कानूनगो की जवाबदेही तय हो

आरएसएस पदाधिकारी की 2 बीघा ज़मीन के बहाने सामने आई यह कार्रवाई एक मजबूत संदेश ज़रूर है, लेकिन यह तब तक अधूरा रहेगा जब तक उत्तर प्रदेश के हर आम किसान को न्याय और सम्मान न मिले। अब वक्त आ गया है कि ‘फाइलों में फंसी ज़मीन’ की जगह ‘किसानों के हाथ में अधिकार’ की तस्वीर बदली जाए।

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