मध्यप्रदेश

धीरोदात्त नायक के रूप में उभरे प्रधानमंत्री मोदी

आपदाओं में घर के जो मुखिया जिस सतर्कता, धीरज, विवेक और गंभीरता का परिचय देकर संकट की भयावहता को शून्य करने में सफल होते हैं, वही इतिहास में धीरोदात्त नायक के रूप में स्थापित होते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पिछले नौ सालों के कार्यकाल में यह बार-बार सिद्ध हो चुका है कि वे किसी भी संकट से देशवासियों की प्राण-रक्षा के लिए आपदा में धैर्य नहीं खोते और सुविचारित रणनीतियों के साथ मुकाबला करते हैं; चाहे वह चक्रवात हो, अन्यस प्राकृतिक संकट हों या अतिवृष्टि और बाढ़, देश की सुरक्षा और अखंडता को कोई खतरा हो या कोविड-19 जैसी वैश्विक महामारी हो। अपनी कार्य-योजनाओं से वे जनहानि और अन्य नुकसान की रोकथाम का बेहतर प्रबंधन करने में कामयाब रहे हैं।

हालिया चक्रवात बिपरजॉय से निपटने में भी प्रधानमंत्री मोदी का मार्गदर्शन और रणनीतियां कारगर सिद्ध हुईं। उन्होंने बिपरजॉय के संकट से निपटने के लिए शासनिक और प्रशासनिक मशीनरी को समय पूर्व सजग किया। स्वयं, केंद्र और गुजरात की एजेंसियों के साथ उच्च स्तरीय बैठक कर चक्रवात के प्रभावी क्षेत्र के रहवासियों को सुरक्षित स्थानों पर पहुमचाना और बिजली, पानी, स्वास्थ्य और दूरसंचार जैसी आवश्यक व्यवस्थाओं के रख-रखाव को सुनिश्चित किया। प्रधानमंत्री ने पशुओं की सुरक्षा भी सुनिश्चित की, जो उनकी संवेदनशीलता का प्रमाण है। प्रधानमंत्री के निर्देशों का परिणाम ही रहा कि चक्रवात से निबटने की तैयारियों के अहम अंग नियंत्रण कक्षों ने दिन-रात कार्य किया और कर रहे हैं।

पिछले लगभग एक दशक में भारत के विभिन्न क्षेत्र में आये चक्रवातों से जनहानि को रोकने के भरपूर प्रयास हुए हैं। कुछ खतरनाक चक्रवातों में जनहानि भी हुई। लेकिन बिपरजॉय चक्रवात से निपटने के लिये जो अग्रिम व्यवस्थाएं सुनिश्चित की गई उसमें जन-सुरक्षा को प्राथमिकता पर रखा गया। जैसा कि मौसम विभाग के पूर्वानुमान के मुताबिक भारत के कई राज्यों में तेज हवाओं के साथ बारिश भी हो सकती थी। इन परिस्थितियों को देखते हुए प्रभावी कार्य-योजना बनाकर संबंधित राज्यों में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किये गये। मेरा मानना है कि इन तमाम व्यवस्थाओं के चलते बिपरजॉय के प्रभाव से होने वाली जनहानि को रोका जा सका।

कैसे हो पाता है यह सब

जैसा कि हम जानते हैं कि भारत में लगभग 58 प्रतिशत भू-भाग सामान्य से लेकर बहुत अधिक तीव्रता वाला भूकंप संभावित क्षेत्र है और 40 मिलियन हेक्टेयर से ज्यादा क्षेत्र यानी देश के 12 प्रतिशत भू-भाग में बाढ़ की संभावना बनी रहती है। हमारे यहां 7516 किलोमीटर तक तटीय क्षेत्र में लगभग 5700 किलोमीटर क्षेत्र चक्रवात और सुनामी संभावित क्षेत्र है। प्रधानमंत्री ने इन सब बातों का ख्याल रखते हुए ही आपदा प्रबंधन की रणनीतियों पर बहुत ध्यान दिया है ताकि आपदा से प्रभावित होने वाले गरीब लोगों को जान-माल का नुकसान न हो।

प्रधानमंत्री मोदी ने आपदा प्रबंधन की जो रणनीति अपनाई है उसमें पहला और सबसे महत्वपूर्ण बिंदु है आपदा के पूर्व प्रबंधन और तैयारी। इसके बाद भी आपदा घटित हो और तैयारियां नाकाफी साबित हों और आपदा से नुकसान हो जाए तो पुनर्वास की पूरी तैयारी। पुनर्वास के बाद पुनर्निर्माण और सामान्य स्थिति की बहाली। प्रधानमंत्री ने इन सभी बिन्दुओं को एक साथ अपनी प्रबंधन रणनीति में पिरोया है। उनके प्रयासों से आज हमारे देश में आपदा प्रबंधन अनिवार्य रूप से विकास की प्रक्रिया में शामिल है।

इसके अलावा प्रधानमंत्री ने आपदा प्रबंधन से जुड़े सभी मंत्रालयों की भूमिका को और ज्यादा सुदृढ़ बनाया है। परमाणु ऊर्जा, नागरिक उड्डयन, भू-विज्ञान, पर्यावरण एवं वन, गृह, स्वास्थ्य, रेल, अंतरिक्ष और जल संसाधन जैसे मंत्रालयों को उन्होंने आपदाओं के प्रबंधन की तैयारियों से जोड़े रखा है।

प्रधानमंत्री ने आपदाओं के पूर्वानुमान और चेतावनी देने वाली प्रणालियों को आधुनिकतम बनाने और नवीनतम प्रणालियों के उपयोग करने पर भी जोर दिया है, जिससे सभी संबंधित एजेंसियां अपनी सक्रिय भूमिका निभाते हुए आपदाओं के पूर्वानुमान के प्रति सचेत रहती है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन, पैसिफिक सुनामी चेतावनी प्रणाली और अन्य क्षेत्रीय एवं ग्लोबल संस्थाओं के साथ भी मोदी का निरंतर संपर्क बना रहता है।

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