गाजियाबाद में गुजरात की तरह भाजपा का गढ़ बनने के बाद जनप्रतिनिधि जनता के प्रति उदासीन
जन एक्सप्रेस/गाजियाबाद: गाजियाबाद में नगर निगम प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की भूमिका पर सवाल अब उठने लगे हैं। वर्षों से जिस जनसमर्थन के सहारे ये जनप्रतिनिधि संसदीय सत्ता से लेकर निगम की सत्ता में बने रहे, अब वही अंध समर्थन क्या जनता की मजबूरी समझा जा रहा है ? या फिर इसे जनता की सहनशीलता की परीक्षा माना जा रहा है ? जनता बढ़े गृहकर और विकास योजनाओं में लगातार उदासीन रवैये के कारण ट्रिपल इंजन के प्रदर्शन से नाखुश और नाराज होती जा रही है।
ट्रिपल इंजन सरकार की टैक्स की मार: जनता पर बढ़ता बोझ
शहर में बढ़ते अव्यवस्थाओं और अवैध अतिक्रमण सहित भ्रष्टाचार की बढ़ती बेल के बाद अब गृहकर में अप्रत्याशित वृद्धि ने नागरिकों को झकझोर कर रख दिया है। बिना किसी ठोस तर्क के टैक्स बढ़ाना जनता के आर्थिक बोझ को और बढ़ा रहा है, जिससे आम नागरिकों में आक्रोश पनपने लगा है। अब गाजियाबाद की जनता खुलकर अपने जनप्रतिनिधियों से जवाब मांग रही है। विभिन्न सामाजिक और नागरिक संगठनों में यह चर्चा तेज हो गई है कि यदि नगर निगम प्रशासन ने इस बढ़े हुए गृहकर को वापस नहीं लिया, तो बीते 35 वर्षों से शहर की सत्ता पर काबिज व्यवस्था को बदलने के लिए जनता मजबूर हो जाएगी। जिसका खामियाजा भाजपा और राज्य सरकार को भी भुगतना पड़ सकता है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या जनप्रतिनिधि जनता की आवाज सुनेंगे या फिर इस असंतोष की लहर उन्हें सत्ता से बेदखल कर देगी, गाजियाबाद में केंद्र, राज्य और नगर निगम तीनों में भी भारतीय जनता पार्टी की सरकार होने के बावजूद जनता को राहत देने के बजाय उस पर टैक्स का अतिरिक्त बोझ डाला जा रहा है। इसे लोग “ट्रिपल इंजन सरकार” की विफलता मान रहे हैं, जहां जनता के कल्याण की बजाय राजस्व बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है। गृहकर में भारी वृद्धि ने आम नागरिकों की कमर तोड़ दी है। पहले से ही महंगाई और बढ़ते बिजली-पानी के बिलों से जूझ रही जनता पर यह अतिरिक्त कर थोपना जनता की सहनशीलता की परीक्षा लेने जैसा है। सवाल यह उठता है कि जब नगर निगम में भ्रष्टाचार चरम पर है, बुनियादी सुविधाएं लचर हैं, तो फिर इस टैक्स वृद्धि का औचित्य क्या है? अब गाजियाबाद की जनता खुलकर विरोध जता रही है। स्थानीय संगठनों और नागरिक समूहों के बीच यह चर्चा जोरों पर है कि अगर यह अन्यायपूर्ण टैक्स वृद्धि वापस नहीं ली गई, तो आगामी चुनावों में जनता इसका जवाब देगी। ट्रिपल इंजन सरकार से राहत की उम्मीद लगाए बैठे लोगों को अब ऐसा महसूस होने लगा है कि यह सरकार राहत देने के बजाय उनकी जेबें खाली करने में जुटी है।
अंसल के मसले पर अब नगर निगम की भी जाग गया है
नगर निगम गाजियाबाद में अधिकारियों की कार्यशैली को लेकर भाजपा संगठन के आरोप की सुनवाई नहीं होने से अंदरखाने भ्रष्टाचार की बेल लगातार बढ़ रही है। जिसका उदाहरण अंसल समूह की सीवर ट्रीटमेंट प्लान के बिना ही सीधे नाले में गंदा पानी बहाने देने की खुली छूट है। क्षेत्रीय पार्षद के विरोध और निगम बैठक में इसका मुद्दा उठाने के बाद महापौर और निगम प्रशासन इसपर जाग गया है। जबकि पार्षद द्वारा कई बार इसका संज्ञान निगम कार्यालय दिया था । ऐसा केवल अंसल में ही नहीं है । वसुंधरा जोन में भी बड़े बड़े बिल्डरों को मिली भगत करके छोटी छोटी सीवर लाइन में बड़े बड़े मल्टी स्टोरी बिल्डिंग के सीवर निजी स्वार्थ की पूर्ति के बाद किया गया है। अधिकारियों की हठधर्मिता और शासन में बैठे आका टाइप अधिकारियों के शह पर ऐसे कार्य बदस्तूर कर रहे हैं। विकास प्राधिकरण अथवा आवास विकास परिषद के द्वारा विभागीय सुविधा नहीं देने के पत्र निर्गत होने के बाद भी वसुंधरा जोन में बैठे अधिकारियों की नजरें उन पत्रों को नहीं देख पा रही है और धड़ल्ले से निजी स्वार्थ की पूर्ति करके नियम कानूनों से खिलवाड़ किया जा रहा है।