देशभर में पतियों की हत्या के बढ़ते मामलों पर चिंता, क्या अब पुरुष आयोग की आवश्यकता?

जन एक्सप्रेस/लखनऊ।हाल के वर्षों में देशभर में पतियों की हत्या के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी देखी जा रही है। विभिन्न रिपोर्टों और पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार, कई घटनाओं में पत्नियों द्वारा अपने पतियों की हत्या करने के मामले सामने आए हैं। इस प्रवृत्ति ने समाज में गंभीर बहस को जन्म दिया है, जहां कई लोग पुरुषों के लिए भी एक अलग आयोग की मांग कर रहे हैं, जैसा कि महिलाओं के लिए महिला आयोग मौजूद है।
पतियों की हत्या के बढ़ते मामले
देश के विभिन्न राज्यों से आए आंकड़े बताते हैं कि कई मामलों में पारिवारिक विवाद, संपत्ति संबंधी झगड़े, विवाहेतर संबंध, और घरेलू हिंसा की प्रतिक्रिया स्वरूप पत्नियों द्वारा अपने पतियों की हत्या कर दी रही है। हाल ही में उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और दिल्ली से कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जहां पत्नियों ने या तो अपने प्रेमी के साथ मिलकर या स्वयं ही अपने पति की हत्या की।
पुलिस और समाजशास्त्रियों के अनुसार, यह प्रवृत्ति समाज में बदलते रिश्तों और अधिकारों को लेकर बढ़ती असमानता को भी दर्शाती है। जहां एक ओर महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया जा रहा है, वहीं पुरुषों की सुरक्षा और उनके अधिकारों को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
पुरुष आयोग की मांग तेज
कई सामाजिक संगठनों और पुरुष अधिकार कार्यकर्ताओं ने इस बढ़ती प्रवृत्ति को देखते हुए पुरुष आयोग की स्थापना की मांग उठाई है। उनका तर्क है कि जैसे महिलाओं की सुरक्षा और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए राष्ट्रीय महिला आयोग और राज्य महिला आयोग बनाए गए हैं, वैसे ही पुरुषों के लिए भी एक समर्पित आयोग होना चाहिए।
पुरुष अधिकारों के लिए काम करने वाले विजय शर्मा का कहना है, “हम समाज में समानता की बात करते हैं, लेकिन जब पुरुष घरेलू हिंसा या झूठे आरोपों का शिकार होते हैं, तो उनके लिए न्याय पाने का कोई उचित माध्यम नहीं होता। पुरुष आयोग की स्थापना इस असंतुलन को दूर कर सकती है।”
सरकार का क्या कहना है?
अब तक सरकार ने पुरुष आयोग की मांग पर कोई ठोस निर्णय नहीं लिया है, लेकिन इस पर चर्चा तेज हो रही है। कई विधायकों और सांसदों ने भी इस विषय पर आवाज उठाई है और सरकार से इस पर विचार करने की अपील की है।
समाज में संतुलन की आवश्यकता
विशेषज्ञों का मानना है कि समाज में संतुलन बनाए रखने के लिए पुरुषों और महिलाओं दोनों के अधिकारों की रक्षा आवश्यक है। यदि पतियों के खिलाफ हो रहे अपराधों में वृद्धि जारी रही और पीड़ित पुरुषों को न्याय दिलाने की कोई व्यवस्था नहीं हुई, तो सामाजिक तानाबाना और अधिक प्रभावित हो सकता है।
अब देखना यह होगा कि क्या सरकार पुरुष आयोग की स्थापना पर विचार करेगी या फिर इस विषय को अनदेखा कर दिया जाएगा। लेकिन एक बात तय है कि यह मुद्दा धीरे-धीरे राष्ट्रीय बहस का केंद्र बनता जा रहा है।