लखनऊ

गायकों ने परम्पराग गीतों में खेली होली, उड़ा अबीर-गुलाल

लखनऊ। राष्ट्रीय कथक संस्थान की ओर से शुक्रवार को कार्यक्रम ’संगीत संगम‘ का आयोजन किया गया। संस्थान में संगीत का प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे नवांकुरों और पारंगत छात्र-छात्राओं ने कार्यक्रम में प्रस्तुति दी गई।

कार्यक्रम का शुभारम्भ ’ताल वृन्द‘ के अन्तर्गत कलाकार आनन्द दीक्षित के निर्देशन में संस्थान की युवा पीढ़ी ने समूह तबला वादन प्रस्तुत किया। समूह वादन का आरम्भ भगवान महादेव की स्तुति से किया गया। उसके बाद पेशकार, कायदा, रेला, मध्य लय में टुकड़े एवं परन तथा द्रुतलय में जुगलबन्दी प्रस्तुत की गयी। इसमें सत्यप्रकाश, अखण्ड प्रताप, मानसी, मोहित, एकाक्ष, अग्रिम, इस्काॅन, वैदिक, विवान, वेदात्मन, अभ्यांष, नभय, दीपिका थीं। लहरा संगत मीना वर्मा ने दी।

कार्यक्रम की अगली कड़ी में वीणा वादिनी, ज्ञान दायिनी, सुरों की देवी ’मां सरस्वती‘ जी की स्तुति राग हंसध्वनि में निबद्ध ’जयति जय जय मां सरस्वती… से की गई। इसकी शब्द एवं स्वर रचना सुश्री अर्चना कुशवाहा की थी। तत्पश्चात् शास्त्रीय संगीत की परम्परा का निर्वाहन करते हुए व नवरात्रि के पावन पर्व के शुभ आगमन को दर्शाते हुए ‘राग बिलासखानी तोड़ी में निबद्ध बन्दिश ‘जगदम्बिका अम्बिका मर्दनी अम्ब शुम्भ-निशुम्भ’ को आलाप, बोलआलाप, तानो एवं तिहाईयों की गरिमामयी प्रस्तुति दी गयी। श्रृंखला की अंतिम कड़ी में रंग बिरंगी होली की अनोखी रंग भरी, भस्म वाली एवं रस भरी होली गीतों को निराले एवं आकर्षक अंदाज में प्र्र्रस्तुत किया गया। इसमें छात्र-छात्राएं अंजलि, संस्कृति, शैली, श्वेता, रूद्र थे। इसमें सिन्थेसाइजर पर विजय कुमार, तबला पर आनन्द दीक्षित, ढोलक पर अंकित कुमार व साइड रिद्म- दिव्यांशु ने साथ दिया।

कार्यक्रम का प्रारम्भ राग जोग में निबद्ध बंदिश ‘साजन मोरे घर आये… को बोल आलाप तान, बोलतान एवं तिहाईयों के साथ प्रस्तुत किया गया । इसी क्रम में राग जोग में तीन ताल में निबद्ध तराना पेश किया गया, जिसके बोल ’ताना देरेना तदानी दीम‘ थे। इसकी रचना मीना वर्मा ने की थी।

अगली कड़ी में नन्हे मुन्ने बाल कलाकरों ने भजन ’छोटी-छोटी गैया’ को मनोहारी रूप में गाया गया। कार्यक्रम का समापन लखनवी होरी-’एरी आज होरी मैं खेलूंगी डटके‘ से किया गया। उसके बाद पदमश्री इतिहार योगेश प्रवीन की रचना होरी ‘आये नंद जी के लाल‘ और इसी क्रम में ’होली में उड़े रे गुलाल‘ जिसकी शब्द एवं स्वर रचना मीना वर्मा की थी। इसके पश्चात कुछ परम्परागत होरियों को लखनवी गायकी के साथ दोहे एवं बंध लगाते हुए प्रस्तुत किया गया। जिसमें ’मेरो कान्हा गुलाब का फूल‘ ‘रंग डारूंगी नंद के लालन पे’ ’रंग बरसे बरसाने में’ ‘होरी खेल रहे बाॅके बिहारी’ एवं ‘रंग डार गयो रे बाके बिहारी’ आदि होरी गीतों कीे प्रस्तुति दी गई।

इसमें श्रुति, श्रिया, प्रिया, विजेता, प्रीतिका, पूनम, सुगन्ध, रीता, सारा, मोहित, वैष्णवी, रिभू, दिव्यांशु, जिज्ञांशु आयुशि, इन्द्राक्षी, अदिति, वंश, अनय, आद्या, सिद्धी, वाची, सुभ्रांष, श्रेयस, चित्रांषी, कविष्वर, आर्नव, हार्षित, अंकित इत्यादि।कार्यक्रम की प्रस्तुति, परिकल्पना एवं अवधारणा सुश्री सरिता श्रीवास्तव की थी।

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