मंदिर समिति की संपत्तियों से हटाए जाएंगे कब्जे : अजेन्द्र अजय

देहरादून । उत्तराखंड के चार धामों के प्रति जहां देश-दुनिया के लाखों-करोड़ों की आस्था और श्रद्धा है तो वहीं प्रतिवर्ष इन धामों के दर्शन को लाखों लाख लोग आते हैं। पूरे देश में इनकी करोड़ों की संपत्तियां फैली हुई हैं। दान-दाताओं की दान की गईं इन संपत्तियों पर बहुत से लोगों कब्जा कर रखा है। अब बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति अपनी संपत्तियों से ऐसे कब्जों को हटाने का निर्णय लिया है।
बद्रीनाथ-केदारनाथ समिति के अध्यक्ष अजेन्द्र अजय ने कहा कि अब भगवान बद्रीनाथ-केदारनाथ को दी गई करोड़ों के दान की संपत्तियों का ब्योरा लेना प्रारंभ कर दिया गया है। इन संपत्तियों पर वर्षों से लोगों का कब्जा है। मंदिरों, धर्मशालाओं और दुकानों को जिन किरायेदारों ने किराये पर लिया था, उन्होंने इतने वर्षों में न तो किराया बढ़ाया है और न ही समिति को उनकी संपत्ति वापस कर रहे हैं। अब तक के अध्यक्षों ने इस मामले पर बहुत ध्यान नहीं दिया था, लेकिन वे इस मामले में काफी सजग हैं। इन संपत्तियों पर लोगों ने कब्जा तो जमा ही रखा है। साथ ही कुछ लोग ऐसे भी हैं जो नाममात्र का किराया मंदिरों को भेजते हैं जबकि तमाम लोग ऐसे हैं जो अपने भाव और प्रभाव के आधार पर मंदिर की संपत्तियों पर पूरी तरह से स्वामी जैसे काबिज हैं। वे मंदिर समिति को कुछ भी नहीं दे रहे हैं।
कई राज्यों में हैं बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति की संपत्तियां-
मंदिर समिति की जानकारी के अनुसार ऐसी संपत्तियां हरिद्वार, हल्द्वानी, रामनगर, महाराष्ट्र के मुरादनगर, लखनऊ, देहरादून आदि शहरों में हैं, जो इस समय बेशकीमती हैं। ऐसे महत्वपूर्ण स्थानों पर जिनका व्यवसायिक उपयोग हो रहा है। इन जमीनों और संपत्तियों को यदि मंदिर समिति को दे दिया जाए तो इन्हीं से मंदिर समिति को करोड़ों की आय होगी जबकि इन संपत्तियों पर मंदिर समिति को कहीं से केवल नाममात्र का ही किरायामिल रहा है तो कहीं से कुछ नहीं मिल रहा है।
महाराष्ट्र के मुरादनगर में 17 एकड़ जमीन है। इस पर एक परिवार का कब्जा है। लखनऊ में 11 हजार वर्ग फुट की संपत्ति है, जिस पर भी कब्जा है। राजपुर रोड पर बद्री-केदार मंदिर की जो संपत्ति है, वह करोड़ों की है। पहले प्रत्येक शहर में संपत्ति की देखरेख के लिए मंदिर समिति की ओर से एक प्रतिनिधि नियुक्त किया जाता था, लेकिन पिछले काफी समय से यह व्यवस्था ध्वस्त हो गई है। इसके कारण संपत्तियों पर अवैध कब्जे तो हैं ही, मंदिर को आय भी नहीं हो रही है। दूसरी ओर मंदिर संपत्ति पर काबिज लोग इनका व्यवसायिक उपयोग कर रहे हैं और पूरा लाभ स्वयं ले रहे हैं। इसके कारण स्थिति काफी गंभीर हो गई है।