उत्तर प्रदेशगाजियाबाद

साहिबाबाद नवीन सब्जी एवं फल मंडी: आढ़तियों का मनमाना रवैया

जन एक्सप्रेस,गाजियाबाद :साहिबा बाद मंडी में अतिक्रमण के खिलाफ कार्यवाही और आढ़तियों का मनबढ़ व्यवहार एक जटिल और संवेदनशील मुद्दा है, जिसके कई पहलू हैं। यह स्थिति न केवल मंडी की व्यवस्था को प्रभावित करती है, बल्कि इससे जुड़े किसानों, व्यापारियों और आम जनता के लिए भी गंभीर परिणाम हो सकते हैं। साहिबा बाद मंडी प्रशासन भले व्यापारियों के हितों की बात करे लेकिन कुछ दबंग आढ़ती पूरे मंडी की व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करके अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहते हैं। जिसका खामियाजा आम किसान और जनता को भारी महंगाई और अराजकता के रूप में सहना पड़ता है। बड़े बड़े आढ़त की दुकानें साहिबा बाद मंडी में स्थापित हैं ,उसके बाद भी कुछ दबंग सार्वजनिक जगहों को दैनिक किसानों अथवा व्यापारियों को देकर मोटी कमाई करते हैं , जबकि इससे अन्य व्यापारियों के वाहन और किसानों को आवागमन से लेकर अपने कृषि उत्पाद बेचने में भारी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है।

अतिक्रमण के खिलाफ कार्यवाही का महत्व और प्रभाव व्यवस्था में सुधार

साहिबाबाद नवीन फल और सब्जी मंडी में अतिक्रमण लंबे समय से एक समस्या रही है। अवैध निर्माण और कब्जे के कारण किसानों के लिए बनाए गए चबूतरे और जगहें आढ़तियों या अन्य लोगों के नियंत्रण में चली गई थी जिसको वर्तमान मंडी सचिव सुनील कुमार शर्मा और प्रशासनिक सहयोग से खाली कराया गया था। जिसके बाद से कुछ आढ़तियों का गिरोह सरकार और प्रशासन से खार खाया बैठा था । जबकि प्रशासन की कार्यवाही का उद्देश्य इन जगहों को मुक्त कराना और मंडी को मूल रूप से किसानों के लिए उपयोगी बनाना है। यह कदम व्यवस्था को सुचारू करने और जाम, भीड़ जैसी समस्याओं को कम करने में मददगार हो सकता है। जिसका असर बाद में दिखा और मंडी में अवाक के साथ साथ बाहरी किसानों की संख्या बढ़ी । जिसका प्रत्यक्ष लाभ नागरिकों को भी हुआ ।

किसानों पर असर:

अतिक्रमण के कारण किसानों को अपनी फसल बेचने के लिए सड़कों पर मजबूरी में जगह लेनी पड़ती है, जिससे उनकी सुरक्षा और आय प्रभावित होती है। कार्यवाही से उन्हें उचित स्थान मिल सकता है, लेकिन अगर यह प्रक्रिया ठीक से प्रबंधित न हुई, तो अस्थायी रूप से उनकी आजीविका पर संकट भी आ सकता है।

सामाजिक तनाव:प्रशासन की ओर से अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई के दौरान व्यापारियों और आढ़तियों का विरोध देखा गया है। हाल ही में, 7 अप्रैल 2025 को प्रशासनिक टीम को पुलिस बल बुलाना पड़ा, क्योंकि व्यापारियों ने हंगामा किया। यह तनाव हिंसा या कानून-व्यवस्था की समस्या में बदल सकता है, जो सभी पक्षों के लिए घातक साबित हो सकता है।

आढ़तियों का मनबढ़ व्यवहार  कानून का उल्लंघन* आढ़तियों द्वारा अवैध निर्माण करना और प्रशासन के नोटिसों को नजरअंदाज करना उनके मनबढ़ रवैये को दर्शाता है। कुछ आढ़तियों के पास लाइसेंस तक नहीं हैं, फिर भी वे मंडी की जमीन पर कब्जा जमाए हुए हैं। यह न केवल नियमों का उल्लंघन है, बल्कि अन्य व्यापारियों और किसानों के अधिकारों का हनन भी करता है।लेकिन अपने राजनीतिक रसूख और दबंगई के बल पर व्यापारी बने बैठे हैं।

प्रशासन पर दबाव:आढ़तियों का विरोध और हंगामा प्रशासन के लिए चुनौती बन जाता है। अगर यह मनमानी बढ़ती है, तो भविष्य में ऐसी कार्रवाइयाँ करना और मुश्किल हो सकता है। इससे अतिक्रमण की समस्या जड़ से खत्म होने के बजाय और गहरी हो सकती है। जिसका असर प्रशासनिक सेवा पर भी पड़ेगा ।

आर्थिक नुकसान: आढ़तियों का यह रवैया मंडी की कार्यक्षमता को कम करता है। अवैध कब्जे और अनियमितता के कारण मंडी समिति को राजस्व का नुकसान होता है, जो अंततः सरकार और जनता पर बोझ डालता है। साथ ही, इससे व्यापार में पारदर्शिता भी प्रभावित होती है।
कितना घातक?
कानून-व्यवस्था के लिए: अगर आढ़तियों का मनबढ़ व्यवहार हिंसक रूप ले लेता है, जैसा कि पहले पत्थरबाजी जैसे मामलों में देखा गया, तो यह स्थिति पुलिस और प्रशासन के लिए खतरनाक हो सकती है। इससे न केवल कार्रवाई रुक सकती है, बल्कि क्षेत्र में अशांति भी फैल सकती है। अतिक्रमण हटाने की प्रक्रिया में अगर उचित योजना और वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की गई, तो किसानों और छोटे व्यापारियों की रोजी-रोटी प्रभावित हो सकती है। यह उनके लिए आर्थिक संकट का कारण बन सकता है। अगर प्रशासन इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं निकाल पाया और आढ़तियों की मनमानी जारी रही, तो मंडी अपनी मूल उपयोगिता खो सकती है। इससे बाजार में अराजकता बढ़ेगी और उपभोक्ताओं को भी ऊँचे दामों का सामना करना पड़ सकता है।साहिबा बाद मंडी में अतिक्रमण के खिलाफ कार्यवाही जरूरी है, लेकिन इसे सावधानीपूर्वक और सभी पक्षों के साथ संवाद के जरिए करना होगा। आढ़तियों का मनबढ़ व्यवहार निश्चित रूप से घातक है, क्योंकि यह न केवल कानून का मखौल उड़ाता है, बल्कि मंडी की पूरी व्यवस्था को कमजोर करता है। प्रशासन को सख्ती के साथ-साथ वैकल्पिक समाधान जैसे दुकानों का पुनर्वितरण या उचित मुआवजा पर भी ध्यान देना चाहिए, ताकि यह समस्या जड़ से खत्म हो और किसी भी पक्ष को अनावश्यक नुकसान न हो। अन्यथा, यह स्थिति सामाजिक, आर्थिक और प्रशासनिक स्तर पर गंभीर संकट पैदा कर सकती है।

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