दिल्ली/एनसीआर

राहुल गांधी से बेहतर अध्यक्ष साबित हो सकते हैं अशोक गहलोत

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नई दिल्ली: मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने को लेकर चर्चाएं हैं। हालांकि, ये चर्चाएं फिलहाल मीडिया रिपोर्ट्स तक ही हैं, लेकिन अगर ऐसा होता है तो यह दांव मुश्किलों से जूझ रही पार्टी के लिए फायदेमंद हो सकता है। वहीं, अगर राजनीतिक स्थिति को देखें, तो वायनाड सांसद राहुल गांधी मुकाबले गहलोत इस पद के लिए ज्यादा फिट नजर आते हैं।

चर्चा शुरू कहां से हुई
मंगलवार को मौजूदा अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सीएम गहलोत से मुलाकात की। हालांकि, उन्होंने इस बैठक के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं दी, लेकिन इसके तार अध्यक्ष पद के चुनाव से जोड़े जा रहे हैं। इधर, बुधवार को वह इस तरह की बातों से भी इनकार करते नजर आए। उन्होंने कहा कि वह मिली हुई सारी जिम्मेदारियों को पूरा कर रहे हैं और इस तरह की बातें मीडिया से ही जानने को मिल रही हैं।

अशोक गहलोत को क्यों हो सकते हैं सही कप्तान
राजनीतिक करियर के लिहाज से गहलोत का रिकॉर्ड साफ सुथरा और बेहतरीन रहा है। इसके अलावा नेतृत्व के मामले में भी वह मजबूत नजर आते हैं। राजस्थान जैसे अहम राज्य में हाल ही में कांग्रेस ने उपमुख्यमंत्री रह चुके सचिन पायलट की तरफ से विद्रोह का सामना भी किया था। ऐसे में इस परेशानी से पार्टी को उबारने का श्रेय भी गहलोत को दिया जाता है।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल संभावित रूप से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार कहे जा रहे हैं। अब सीएम बनर्जी जैसे नेता राहुल के साथ नहीं चलेंगे। माना जाता है कि कई नेता उन्हें गंभीरता से नहीं लेते हैं। लेकिन बनर्जी की तरह ही कुमार भी सोनिया से सौहार्दपूर्ण तरीके से मिलते हैं। ऐसे में गहलोत को फायदा मिल सकता है।

और राहुल गांधी क्यों नहीं?
राहुल एक बार पहले भी राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की कमान संभाल चुके हैं, लेकिन अगर चुनावी आंकड़े देखें या प्रशासनिक स्तर पर अनुभव तो उनका रिकॉर्ड खास नजर नहीं आता है। उनकी अगुवाई के दौरान कांग्रेस चुनाव में हारी और जब पार्टी जीती तो उसका श्रेय पंजाब के कैप्टन अमरिंदर सिंह, मध्य प्रदेश के दिग्विजय सिंह और छत्तीसगढ़ के भूपेश बघेल या गहलोत को ही दिया गयाकि सोनिया का वफादार होने की वजह से राजनीतिक पूंजी बनाने वाले कई नेता स्वभाविक रूप से न राहुल को स्वीकार करेंगे और न ही पूरे मन से उनके पीछे चलेंगे। साथ ही प्रियंका गांधी वाड्रा के समर्थकों का भी अपना एक हिस्सा है, जो शायद राहुल के हिस्से में न आ सके।

इसके अलावा अगर गांधी परिवार में से कोई 2024 में पार्टी का नेतृत्व करता है, तो इसका अभियान पर भी असर पड़ सकता है। कहा जा रहा है कि मोदी सरकार को भ्रष्ट दिखाने पर बोफोर्स का मुद्दा उठेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दमनकारी बताने पर आपातकाल पर चर्चाएं होंगी। वहीं, विदेश नीति के मामले में पूर्व पीएम जवाहर लाल नेहरू के दौर का चीन मुद्दा उठ सकता है।

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