चित्रकूट

#beautiful teshu flowers: टेसू के फूल बने आकर्षण का केन्द्र

टेसू के फूलों से सजे पाठा के जंगल बिखेर रहे खूबसूरती

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जंगलों में इठला और इतरा रहे टेसू फूलों से प्रकृति ने किया श्रृंगार

 

विशेष रिपोर्ट- सचिन वन्दन

 

जन एक्सप्रेस । चित्रकूट

जंगल मे टेसू के फूलों की बहार आ गई है। समूचा जंगल धधकते अंगार की तरह दिख रहा है। ऐसा लग रहा है मानो जंगल में आग लग गई हो। बुंदेलखंड का समूचा जंगल इन दिनों टेसू-पलाश के फूलों से सज गया है। टेसू फूल इन दिनों जंगल की प्राकृतिक खूबसूरती मे चार चांद लगा रहे हैं। टेसू यूपी का राज्य पुष्प भी है,जो बुंदेलखंड के चित्रकूट समेत यूपी-एमपी तराई के जंगलों और वादियों को जहां सुशोभित कर रहे हैं,वहीं प्रकृति ने भी अपना श्रृंगार कर लिया है। जंगल की लालिमा देखकर ऐसा लग रहा है कि मानो जंगल मे आग लग गई हो। वनों में पलाश के सुंदर लाल पुष्पों से लदे पेड़ों के झुंड ऐसे प्रतीत होते हैं मानों वहां पर अग्नि ज्वाला दहक रही हो और जंगल जल रहा हो जिस कारण इसे जंगल की आग तथा फ्लेम आफ दी फारेस्ट जैसी ढेर सारी उपमाएँ प्रदान की गई हैं। ढाक के वृक्षों में प्राकृतिक पुनर्जनन की विशिष्ट क्षमता बेहद ज्यादा होती है। पेड़ मे लगे लाल फूल बिल्कुल धधकते अंगार की तरह प्रतीत हो रहे हैं।पलाश के पेड़ों मे लदे लाल-लाल रक्ताक्ष फूल पुष्पित हो रहे है। पर्णहीन वृक्ष पर लदे पलाश के लाल फूल देखने वालों को सुखद ,नयनाभिराम और आकर्षक प्रतीत हो रहे हैं। देखने मे लग रहा है मानो जंगल मे आग लग गई है। समूचा जंगल अंगार की तरह दिख रहा है। यह फूल खुशबूदार भले नहीं होता लेकिन देखने मे बेहद आकर्षक और मनमोहक होता है। टेसू फूल से हर्बल कलर तैयार किया जाता है। साथ ही पलाश का धार्मिक महत्व भी। इसका पौधा औषधिय गुणों से भी भरपूर होता है। इसकी छाल, पत्ते और फूलों से औषधि तैयार की जाती है। जो बीमारियों को ठीक करने के काम आती हैं। टेशू को पलाश, छ्यूल,किंशुक इत्यादि नामों से जाना जाता है।

 

टेसू के फूलों से प्रकृति कर रही है अपना श्रृंगार

 

अप्रतिम सुंदरता की मूर्ति सरीखे पलाश के रक्ताभ फूल बसंत के आगमन होते ही खिलना शुरू हो जाते हैं। पेड़ों पर लदे टेसू के फूलों की ओर नज़र पड़ते ही लोगों का मन मोह रहे हैं। भारत के की प्रदेशों के जंगल इन दिनों पलाश के पेड़ों में लदे लाल-लाल रक्ताक्ष फूलों से पुष्पित हो रहे हैं। वसंत काल में वायु के झोंकों से हिलती हुई पलाश की शाखाएँ वन की ज्वाला के समान लग रहीं हैं और इनसे ढकी हुई धरती लाल साड़ी में सजी हुई कोई नववधू के समान लग रही हैं। पत्ते झड़े पेड़ अर्थात पर्णहीन वृक्ष पर लदे पलाश के लाल फूल देखने वालों को सुखद, नयनाभिराम और आकर्षक प्रतीत हो रहे हैं। छोटे अर्द्ध चंद्राकार गहरे लाल पलाश पुष्प मध्य फाल्गुण से ही जंगलों में दिखाई देने लगते हैं, जो चैत्र मास के अंत तक दिखाई देते हैं।

 

सड़कों की बढाई रौनक

 

फूल जंगल की खूबसूरती से लेकर सड़कों की रौनक बढा दी है। सड़क किनारे फूलों से लदे टेशू लोगों के लिए आकर्षक बने हुए हैं। बसंत ऋतु का आगमन होते ही पलाश के फूलों की बहार आ जाती है, जिससे बसंत ऋतु के वातावरण की सुंदरता मे चार चांद लग जाते हैं। सड़क किनारे लगे पलाश के पेड़ में आए फूलों ने सड़कों की रौनक बढ़ा दी है। अगर फूलों के सुंदरता का आनंद लेना है तो मझगवां से चित्रकूट,मारकुंडी, मानिकपुर,चितहरा से धारकुंडी, सरभंग आश्रम आदि मार्गों से गुजरेंगे तो पलाश की खूबसूरत छटा देखने को मिलेगी। आज भले ही हमें केमिकल युक्त रंग, गुलाल की होली का पर्व मनाते हैं, लेकिन एक समय था, जब पूर्वज टेसू-पलाश के फूल से ही होली खेलते थे।

 

 

पलाश औषधीय गुणों से भरपूर

 

 

यह पौधा बेहद उपयोगी है, जैसे इसको पत्तल मे लोग खाना खाते हैं, खाने से उदर से संबंधित बीमारियो का समन होता है। इसके पत्ते छाल आदि औषधीय गुणों से भरपूर है। पहले टेशू के फूलों से रंग, गुलाल बनाए जाते थे, जिसको होली के त्यौहार मे उपयोग किया जाता था।

 

 

तेंदूपत्ते की तरह पलाश संग्रहण के लिए बने योजना

 

 

शासन की ओर से तेंदूपत्ता को संग्रहण कर लाने के लिए मजदूरों को लाभांश दिया जाता है, लेकिन पलाश के फूलों को सहेजने उसका औषधीय उपयोग करने व रंग आदि तैयार करने को लेकर शासन के पास कोई कार्य योजना नहीं है। जबकि तेंदू पत्ते के संग्रहण की तरह पलाश का संग्रहण करने से मजदूरों को अच्छा खासा लाभ मिल सकता है। इससे मजदूर वर्ग समृद्ध होगा। वन विभाग को पलाश के फूल के सरंक्षण पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

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