भाजपा नेताओं ने आपातकाल को काला दिवस के रूप में मनाया
पलामू ।25 जून 1975 में देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी की ओर से लगाई गई इमरजेंसी के विरोध में शनिवार को भाजपा पलामू के नेताओं ने काला दिवस के रूप से मनाया। इस अवसर पर जिला कार्यालय में संगोष्ठी की गई। अध्यक्षता जिलाध्यक्ष अमित तिवारी ने की। संचालन जिलापाध्यक्ष रीना किशोर ने किया। इमरजेंसी के दौरान मेदिनीनगर के एक मीसा बंदी प्रोफेसर के के मिश्रा को सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रदेश उपाध्यक्ष जवाहर पासवान ने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि आपातकाल इस देश में आजादी की दूसरी लड़ाई की तरह थी। सत्ता पर काबिज रहने के लिए देश में आपातकाल लगायी गयी। मीडिया पर शिकंजा कसा गया। इंदिरा गांधी के खिलाफ एक लाइन भी लिखी जाती तो उसे हटवा दिया जाता या पत्रकारों को जेल में डाल दिया जाता।
जिलाध्यक्ष अमित तिवारी ने कहा कि 25 जून 1975 की रात में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लागू कर दिया था। यह भारतीय राजनीतिक इतिहास का काला अध्याय था। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट की ओर से इंदिरा गांधी के खिलाफ दिये गये फैसले इस आपातकाल की सबसे अहम वजह थी, जिसमें इंदिरा गांधी को चुनाव जीतने के लिए सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग का दोषी पाया गया था। कांग्रेस के शासन काल में अराजकता, भ्रष्टाचार, कुशासन से जनता त्राहि-त्राहि कर रही थी। जनता का मूड कांग्रेस सरकार के विपरीत था। ऐसे में सत्ता से बेदखल होने के डर से तत्कालीन प्रधानमंत्री ने आपातकाल लागू किया। आपातकाल के बाद इंदिरा हटाओ देश बचाओ का नारा बुलंद हुआ।
प्रोफेसर के के मिश्रा ने कहा कि अहंकार में डूबी, निरंकुश कांग्रेस सरकार ने एक परिवार के सत्ता सुख के लिए 21 महीनों तक देश में सभी प्रकार के नागरिक अधिकार निलंबित कर दिए थे। इस दौरान उन्होंने मीडिया पर सेंसरशिप लगा दी थी। संविधान में बदलाव किए और न्यायालय तक के हाथ बांध दिए थे। आपातकाल के खिलाफ संसद से सड़क तक आंदोलन करने वाले असंख्य सत्याग्रहियों, समाजसेवियों, श्रमिकों, किसानों, युवाओं व महिलाओं के संघर्ष को नमन करता हूं।
वरिष्ठ भाजपा नेता श्याम नारायण दुबे ने कहा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में लोकतंत्र की हत्या करते हुए आपातकाल लगाया और विरोधी दलों के लोगों पर अमानवीय अत्याचार किए। उन्होंने कहा कि आज हम देश के उन महान नायकों के बलिदान को याद करते हैं, जो आपातकाल के दौरान बहादुरी से लोकतंत्र के संरक्षक के रूप में खड़े रहे।