गोल्डन आवर में इलाज से बचाई जा सकती है मरीजों की जान : राष्ट्रपति
नई दिल्ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने चिकित्सा आपात स्थिति में ‘गोल्डन आवर’ के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि इस अवधि के दौरान इलाज मिलने पर मरीजों की जान बचाई जा सकती है। राष्ट्रपति शुक्रवार को विज्ञान भवन में नेशनल बोर्ड ऑफ एग्जामिनेशन इन मेडिकल साइंसेज के 22वें दीक्षांत समारोह को संबोधित कर रही थीं।
राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में विशेषज्ञ डॉक्टरों को आपातकालीन मरीजों के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील होने की सलाह देते हुए कहा कि कभी भी ऐसे मरीज को इलाज के लिए कहीं और जाने के लिए नहीं कहना चाहिए। न्याय में देरी न्याय न मिलने के समान है कहावत का संदर्भ देते हुए राष्ट्रपति ने जोर देकर कहा कि स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में, समय और भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इलाज में देरी से जीवन से वंचित होना पड़ सकता है।
उन्होंने कहा कि कभी-कभी ऐसे दुखद समाचार मिलते हैं कि यदि समय पर इलाज मिल जाता तो व्यक्ति की जान बचाई जा सकती थी। यदि सौभाग्य से जान बच भी जाए तो भी कई स्थितियों में इलाज में देरी से स्वास्थ्य खराब हो जाता है। ऐसे उदाहरण अक्सर लकवा के मरीजों में देखने को मिलते हैं। समय पर उपचार न मिलने के कारण मरीज अपने अंगों को हिलाने-डुलाने की क्षमता खो देते हैं और दूसरों पर निर्भर हो जाते हैं।
राष्ट्रपति ने पिछले लगभग चार दशकों में चिकित्सा शिक्षा में उनके योगदान के लिए एनबीईएमएस के अतीत और वर्तमान सदस्यों की सराहना की। उन्होंने कहा कि एनबीईएमएस के प्रयासों से देश में विशेषज्ञ डॉक्टरों की उपलब्धता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
राष्ट्रपति ने डॉक्टरों से त्वरित स्वास्थ्य सेवा, संवेदनशील स्वास्थ्य सेवा और सस्ती स्वास्थ्य सेवा पर ध्यान देने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि गरीब मरीजों की सेवा के लिए निशुल्क समय दान करके आप सभी देश और समाज के लिए अपना अमूल्य योगदान दे सकते हैं। उन्होंने मेडिकल छात्रों से कहा कि यदि उन्होंने मेडिकल को पेशे के रूप में चुना है तो उनमें मानवता की सेवा करने की इच्छा जरूर होगी। उन्होंने कहा कि आपको उस सेवा भाव को बचाना, बढ़ाना और प्रसारित करना है।
राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे देश की विशाल आबादी को देखते हुए डॉक्टरों की उपलब्धता लगातार बढ़ाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि सभी का प्रयास होना चाहिए कि संख्या के साथ-साथ गुणवत्ता को भी प्राथमिकता दी जाये। राष्ट्रपति ने कहा कि भारतीय डॉक्टरों ने विश्व स्तर पर अपनी पहचान बनाई है। किफायती मेडिकेयर के कारण भारत चिकित्सा पर्यटन का एक प्रमुख केंद्र बन गया है। उन्होंने डॉक्टरों को देश की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा बताया और विश्वास जताया कि वे देश की स्वास्थ्य सेवाओं को नई ऊंचाइयों पर ले जाएंगे।
उपाधियां प्राप्त करने वाले लगभग 12,400 विद्यार्थियों में छात्राओं की संख्या छात्रों से लगभग 750 अधिक है। स्वर्ण पदक प्राप्त करने वालों में भी लगभग 35 का अंतर है। यानि छात्राओं की संख्या अधिक है। यह देखते हुए कि इस दीक्षांत समारोह में डिग्री और पदक पाने वाले पुरुष डॉक्टरों की तुलना में महिला डॉक्टरों की संख्या अधिक है, राष्ट्रपति ने कहा कि उच्च चिकित्सा शिक्षा में छात्राओं की उपलब्धि हमारे समाज और देश की एक बड़ी उपलब्धि है। उन्होंने कहा कि अधिकांश परिवारों के संदर्भ में यह बात कही जा सकती है कि लड़कियों को सीमाओं का अहसास कराया जाता है। कम आजादी दी जाती है, सुविधाएं भी कम मिलती हैं। परिवार से बाहर भी,समाज में, सार्वजनिक क्षेत्रों में,लड़कियों को अपनी सुरक्षा तथा समाज की स्वीकृति के बारे में अतिरिक्त सचेत रहना पड़ता है। ऐसे परिवेश में, योग्यता के सर्वोच्च मानकों पर अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करके, हमारी बेटियां नए भारत का नया चित्र प्रस्तुत कर रही हैं।