उत्तर प्रदेश

पुश्तैनी कब्रिस्तान में दफन होगा मुख्तार अंसारी का शव…

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UP: माफिया मुख्तार अंसारी को सुपुर्दे-ए खाक करने के लिए उसके घर से करीब 400 मीटर दूर पुस्तैनी कब्रिस्तान में कब्र खोदी गई, जो 7.6 फीट लंबी और पांच फीट गहरी और चौड़ी है। यह कब्र उसके मां-बाप की कब्र से पांच फीट नीचे (पैर की तरफ) बनाई गई है, जिन्हें खोदने वाले तीन हिंदू मजदूर बुलाए गए। हालांकि उनका कहना था कि मुख्तार अंसारी के परिवार से जिन लोगों का इंतकाल होता है उनके लिए वे पहले से ही कब्र खोदने के लिए आते हैं।

इस कब्रिस्तान में अब तक मुख्तार के परिवार से पिता सुबहानल्ला अंसारी और उनकी पत्नी का कब्र अगल-बगल बनाया गया है, जबकि उनके पूर्वजों की कब्र बगल में है। मुख्तार अंसारी की कब्र को उनके कब्र से पांच फीट नीचे सुबह साढ़े सात बजे बनाने का काम शुरू हुआ। यह कार्य उनके भतीजे शोहेब अंसारी की निगरानी में हुई, जिसके लिए तीन हिंदू मजदूर नगीना, संजय और गिरधारी को बुलाया गया।

कब्र की खोदाई के समय भी बड़ी संख्या में लोग पहुंच गए। मुख्तार अंसारी के शरीर के हिसाब से कब्र 7.6 फीट लंबी खोदी गई, जबकि शहर भारी होने के कारण चौड़ाई और गहराई भी पांच फीट रखी गई। कब्र खोदाई का काम दोपहर 12 बजे तक चला। इस दौरान कब्र को देखने के लिए परिवार सहित मुख्तार अंसारी को चाहने और जानने वाले पहुंचते रहे। फोटो और वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर भी अपलोड करते रहे, जो खूब वायरल हो रही है।

मुख्तार को मसीहा तो उसके पिता को गुरू मानते हैं कब्रिस्तान के मुजावर अफरोज अंसारी
मुख्तार अंसारी भले ही पुलिस, सरकार और लोगों की नजर में आईएसआई-191 गैंग सरगना और माफिया हो, लेकिन बहुत से लोगों के लिए मसीहा से कम नहीं था। इनमें मुख्तार अंसारी के पुस्तैनी कब्रिस्तान की देखभाल में लगे मुजावर अफरोज अंसारी भी हैं, जो समीप के स्टेशन के निवासी भी हैं, जो मुख्तार अंसारी को मसीहा से कम नहीं बताते हैं और उनके पिता को अपना गुरू बताते हैं।

अफरोज अंसारी बताते हैं कि वह कक्षा आठ तक ही पढ़ाई किए हैं। लेकिन, मुख्तार अंसारी के पिता सुबहानल्ला अंसारी के पिता ने उन्हें अरबी और उर्दू पढ़ाया था, जिससे वह उन्हें अपना गुरू बनाते हैं। अफरोज अंसारी नम आंखों के बीच कहते हैं कि 2006 के पहले कालीबाग स्थित कब्रिस्तान में बाउंड्री नहीं थी। लेकिन, 29 दिसंबर 2006 में उनकी मौत हो गई, तब मुजावर अफरोज अंसारी को बुलाया गया था।

इसके बाद परिवार के लोगों ने उनसे कब्रिस्तान की देखभाल करने की जिम्मेदारी सौंप दिया और बदले में उनकी हर तरह से मदद करने लगे। अफराज अंसारी बताते हैं कि जब मुख्तार अंसारी आगरा की जेल की में बंद था तब उससे मिलने के लिए भी गए थे। उस समय मुख्तार अंसारी ने उनकी पूरी मदद किया था। वह कहते थे मुख्तार अंसारी कोई माफिया नहीं थे, बल्कि गरीबों के लिए मसीहा थे

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