उत्तर प्रदेशप्रयागराजमहाकुम्भनगर

मुक्ति का मार्ग दिखाते प्रयागराज के तीर्थपुरोहित, झण्डा और निशान से होती पहचान

जनएक्सप्रेस, प्रयागराज: प्रयागराज का नाम आते ही संगम, त्रिवेणी और महाकुंभ का दृश्य सामने आता है। यहां के तीर्थपुरोहित, जिन्हें प्रयागवाल या पंडा कहा जाता है, सनातन परंपरा से जुड़े महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। माना जाता है कि संगम में पिंडदान और अस्थि पूजन के बिना पितरों को मोक्ष प्राप्त नहीं होता। यह कार्य केवल तीर्थपुरोहित ही कर सकते हैं। वर्षों पुरानी परंपरा के अनुसार, संगम तट पर पूजन-अर्चन और माघ मेले में कल्पवास करवाने का अधिकार इन्हीं तीर्थपुरोहितों को है।

पिंडदान और अस्थि पूजन के अधिकारी हैं प्रयागवाल

तीर्थराज प्रयाग का महत्व पौराणिक ग्रंथों में भी वर्णित है। कहा जाता है कि यहां पिंडदान और अस्थि पूजन से पितरों को मोक्ष मिलता है। संगम क्षेत्र के तीर्थपुरोहित राजेश्वर गुरु बताते हैं कि यह परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है। यजमानों के पितरों का पिंडदान और अस्थि पूजन उनके निर्धारित तीर्थपुरोहित ही करवाते हैं। यहां आने वाले श्रद्धालु अपने पितरों की मुक्ति के लिए विशेष रूप से पितृ पक्ष में तर्पण और पूजन करते हैं। श्रीराम ने भी अपने पिता दशरथ का पिंडदान गया में किया था, जो इस परंपरा की प्राचीनता को दर्शाता है।

झंडे और निशान से होती है पहचान

तीर्थपुरोहितों की पहचान उनके झंडे और निशान से होती है। हर तीर्थपुरोहित अपने यजमानों का वंशानुसार लेखा-जोखा अपनी बही खातों में दर्ज रखते हैं। इन बही खातों में पीढ़ियों का विवरण होता है। तीर्थपुरोहित राजेश्वर गुरु बताते हैं कि उनके झंडे और निशान परंपरा से चले आ रहे हैं। इन्हीं झंडों और निशानों से यजमान अपने तीर्थपुरोहित को पहचानते हैं। कोई “दो तुमड़ी वाले पंडा” हैं, तो कोई “टेढ़ी नीम वाले”।

पूजा-पाठ और कल्पवास की संपूर्ण जिम्मेदारी

संगम तट पर गंगा स्नान, गऊदान, पिंडदान, अस्थि पूजन, मुण्डन और कल्पवास जैसे धार्मिक अनुष्ठान तीर्थपुरोहितों की देखरेख में ही होते हैं। माघ मेले और कुंभ में श्रद्धालुओं को कल्पवास करवाने की जिम्मेदारी भी तीर्थपुरोहित निभाते हैं। अपने यजमानों के लिए टेंट लगवाने से लेकर उनके धार्मिक संकल्प पूरे करवाने तक का काम ये करते हैं। प्रयागवाल न केवल धार्मिक परंपराओं के वाहक हैं, बल्कि संगम तट पर सनातन संस्कृति की अमूल्य धरोहर को जीवंत रखते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button