उत्तराखंड

भागीरथी घाटी के पारंपरिक समृद्ध सांस्कृतिक का प्रतीक है ”सेलुकू”

उत्तरकाशी। भागीरथी घाटी के टकनौर क्षेत्र में इन दिनों “सेलुकू” मेले की धूम है। सेलुकू मेले का आयोजन शरद ऋतु के आगमन से पूर्व नई फसलों के आने और उच्च हिमालय के बुग्यालों से नीचे घाटियों की और लौटने वाले चरवाहों, भेड़ पालकों के आगमन की खुशी में होता है।

फूलों को महक से सुरभित गांवों में रातभर लोकनृत्यों व लोक गीतों की धूम के साथ देवी-देवताओं की डोलियों का दिव्य नृत्य और फरसों की पैनी धार पर चलने का कौतुक भरा प्रदर्शन सीमान्त ब्लाक भटवाड़ी के अनेकों गांव में आयोजित होने वाले ”सेलुकू’ लोकोत्सव की समृद्ध सांस्कृतिक परम्परा की एक बानगी भर है।

धार्मिक मान्यताओं व सांस्कृतिक परम्पराओं के क्षरण के दौर में सेलुक् भी अछूता नहीं रहता है, लेकिन अपनी सामाजिक व सांस्कृतिक जड़ों की तरफ प्रबल आग्रह रखने वाले गांव की कुछ लोगों की बदौलत से ही सेलुकू का धार्मिक व सांस्कृतिक स्वरूप अपना वजूद कायम रखे हुए हैं।

क्या होता है सेलुकू ?

”सेलकू” का शाब्दिक अर्थ है सोयेगा कौन के नाम से ही स्पष्ट है कि इस त्योहार में रातभर ग्रामीण देव डोलियों के साथ जागरण करते हैं। पारम्परिक मान्यताओं को अपने में समाहित किए हुए इस मेले के आयोजन के लिए गांव के देव डोलियों द्वारा अभिमन्त्रित फरसे (डांगरे) के साथ चुने हुए ग्रामीणों का एक जत्था ऊंचे बुग्यालों में जाकर फूलों को चुनकर लाते हैं ।

मदहोश कर देने वाली एवं देव पुष्प ब्रह्मकमल खुशबू से लवरेज कैंसरू, रामजयाण, जैसे फूलों व केदारपाती की खेप निर्धारित दिन गांव में पहुंचते ही आस-पास के गांव के लोग अपने गांव की देव डोलियों के साथ पहुंचते हैं। इसके साथ ही देव मन्दिरों व देव चौक पर अखण्ड दीपक जलाने के साथ सेलुकू की परम्परानुसार रातभर जागरण, देव डोलियों के दिव्य नृत्य, ढोल वादकों के पैसारों और नर। पुरुष -महिलाएं सामूहिक नृत्य एवं गीतों का सिलसिला जारी रहता है। अगले दिन बुग्यालों से लाए फूलों को देव चौक पर बिछाते हैं, देव डोलियों के ग्रहण करने के बाद इसे बाद में प्रसाद के रूप में आपस में बांटते हैं।

प्रसाद वितरण के बाद दिव्य आसन लगता है। जिसमें कतारबद्ध लोगों के हाथ में रखे फरसे (डांगरे) की तेज धार पर देवता की सवारी ”मनुष्य” सैकड़ों मीटर तक नंगे पांव चलता है। यह अदभुत और विस्मयकारी प्रदर्शन “सेलुकू” का प्रमुख आकर्षण है। ऐसी मान्यता है कि इस दौरान देवता बिना पूछे लोगों के दिलों में उमड़ रही चिन्ताओं पर सवालों का जवाब और समाधान भी बताते हैं।इस के साथ ग्रामीणों को आशीर्वाद देता है ।

भागीरथी घाटी के टकनौर क्षेत्र में सेलुकू रैथल, गोरशाली,जखोल,सौरा, सारी, स्यावा, लाटा,जसपुर,झाला,धराली मुखवा आदि गांवों में धार्मिक एवं सांस्कृतिक परम्परा का अनूठा लोकोत्सव ” सेलकू” भाद्रपद कुछ कृष्णा उत्सव के बाद हर गांव की निश्चित तिथि तय है। मेले का समापन मुखवा गांव में होता है।

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